नरसिंह द्वादशी आज, 24 को होलिका दहन, यहां है नरसिंह मंदिर
आज नरसिंह द्वादशी है, क्योंकि फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष के बारहवें दिन ईश्वर विष्णु के चौथे अवतार यानी नरसिंह ईश्वर की पूजा की जाती है. इसके चार दिन बाद होली पर भक्त प्रह्लाद की पूजा होती है.
उत्तराखंड के चमोली में है नरसिंह मंदिर
उत्तराखंड का ज्योतिर्मठ जो अब जोशीमठ हो गया है. ये उन चार मठों में से एक है, जिसकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. यहां शंकराचार्य 5 वर्ष रहे. ये कत्यूरी राजाओं की राजधानी रहा है. ऐसी मान्यता है कि ये शहर महाभारत काल से बसा था. तब इस नगरी का नाम कार्तिकेयपुर था. इसका जिक्र पाणिनि के अष्टाध्यायी में भी मिलता है. ये मंदिर कत्यूरी राजा वसंत देव ने 700 ई। में बनवाया था.
अब बात करते हैं मंदिर और मूर्ति की…
बद्रीनाथ धाम के कपाट जब 6 महीने बंद रहते हैं, तो ईश्वर नारायण की पूजा जोशीमठ में ही होती है. यहां ईश्वर विष्णु के नरसिंह रूप की पूजा होती है. माना जाता है कि जोशीमठ में नरसिंह ईश्वर के दर्शन किए बिना बदरीनाथ की यात्रा अधूरी रह जाती है.
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
1. सनत्कुमार संहिता में लिखा है कि जब नरसिंह ईश्वर की मूर्ति का हाथ टूट कर गिर जाएगा तो विष्णु प्रयाग के पास पटमिला नाम की स्थान पर मौजूदा जय-विजय नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे. तब बदरीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे. फिर जोशीमठ के के भविष्य बदरी मंदिर में ईश्वर बदरीनाथ के दर्शन होंगे.
2. महाभारत काल की मान्यता के अनुसार पांडवों ने स्वर्ग रोहिणी यात्रा के दौरान ये मंदिर बनाया था. वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि इस मंदिर की स्थापना आदि शंकराचार्य ने की, क्योंकि वे नरसिंह ईश्वर को अपना ईष्ट मानते थे. इस मंदिर में शंकराचार्य की गद्दी भी है.
नृसिंह द्वादशी व्रत और पूजा से दूर होती है परेशानियां
शास्त्रों के मुताबिक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को नृसिंह द्वादशी मनाई जाती है. इसका जिक्र विष्णु पुराण में आता है. ईश्वर विष्णु ने आधा मनुष्य और आधा शेर के शरीर में नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकश्यप का वध किया था. उसी दिन से इस पर्व की आरंभ मानी जाती है. ईश्वर विष्णु के इस रूप ने प्रह्लाद को वरदान दिया कि, इस दिन ईश्वर नृसिंह का व्रत और पूजन करेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी. रोग, शोक और गुनाह भी समाप्त हो जाएंगे.
भगवान नृसिंह की पूजा विधि
1. भगवान नृसिंह की पूजा के लिए सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और पीले कपड़े पहनें.
2. पीले चंदन या केसर का तिलक लगाएं. सही जल के बाद दूध में हल्दी या केसर मिलाकर अभिषेक करें.
3. भगवान को पीला चंदन लगाएं. केसर, अक्षत, पीले फूल, अबीर, गुलाल और पीला कपड़ा चढ़ाएं.
4. पंचमेवा और फलों का नैवेद्य लगाकर नारियल चढ़ाएं और धूप, दीप का दर्शन करवाकर आरती करें.