परमा एकादशी कल, शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए करें ये उपाय
पुरुषोत्तम मास में पड़ने वाली एकादशी का विशेष महत्व है। क्योंकि, यह तीन वर्ष में एक बार आती है। परम एकादशी का व्रत शनिवार को होगा। ज्योतिषियों की मानें तो हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत शुभ और पुण्यकारी माना जाता है। सालभर में 24 एकादशी पड़ती है। ऐसे में हर मास के कृष्ण और शुक्ल पक्ष को एक-एक एकादशी पड़ती है। लेकिन, इस वर्ष अधिक मास होने के कारण दो एकादशी बढ़ गई है।
श्रावण अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को परम एकादशी बोला जाता है। इस दिन व्रत करने और ईश्वर विष्णु की वकायदा पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आचार्य पप्पू पांडेय ने कहा कि इस बार परम एकादशी व्रत शनिवार होने से इसका महत्व और बढ़ गया है। इस दिन ईश्वर श्री हरि विष्णु की पूजा के साथ शनि देव का आशीर्वाद भी प्राप्त होगा। ऐसे में एकादशी के शुभ अवसर पर कुछ खास तरीका करने से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति मिलेगी। जिन जातक को शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती चल रही है। वे परम एकादशी के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों ऑयल का चौमुखी दीपक जलाकर दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें। मान्यता है कि इससे शनि के प्रकोप से मुक्ति मिलती है।
कौआ शनि देव का गाड़ी :
पंडित सूर्यमणि पांडेय ने बोला कि कौआ शनि देव का गाड़ी है। परम एकादशी के दिन कौए को भोजन खिलाने से शनि गुनाह दूर होता है। साथ ही, पितर भी प्रसन्न होते हैं। क्योंकि, कौआ को दिए भोजन के रूप में पूर्वजों को खाना प्राप्त होता है। खासकर एकादशी के दिन ये तरीका करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।
भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं :
पौराणिक मान्यता है कि विधि-विधान से परमा एकादशी व्रत करने से ईश्वर विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्तों को दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त परम एकादशी व्रत में स्वर्ण दान, विद्या दान, अन्न दान, भूमि दान और गोदान का विशेष महत्व कहा गया है। परम एकादशी पर ईश्वर विष्णु की उपासना करने से पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने से विशेष फायदा मिलता है। ईश्वर विष्णु को पंचामृत अर्पित करने से पूजा का विशेष फल मिलता है।
पंचोपचार विधि से पूजन :
परम एकादशी के दिन सुबह शीघ्र उठकर और स्नानादि से निवृत्त हो व्रत का संकल्प लें। इसके बाद ईश्वर विष्णु का पंचोपचार विधि से पूजन करें। निर्जला व्रत रखकर विष्णु पुराण का श्रवण या पाठ करें। इस दिन रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए। व्रती रविवार की सुबह ईश्वर की पूजा करने के बाद व्रत का पारण करें।