रंगपंचमी पर निकलने वाली गेर में अबकी बार बड़ी संख्या में शामिल होंगे प्रवासी इंदौरी
Rang Panchami 2024: राष्ट्र भर में रंगपंचमी का उत्सव मनाया जा रहा है। इसे लेकर लोगों में काफी अधिक उत्साह है। ऐसे ही एमपी के इंदौर की रंगपंचमी देश- दुनिया में काफी अधिक फेमस है। यहां की विश्व मशहूर गेर को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी आते हैं। यहां की गेर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज की लिस्ट में स्थान दिलाने के लिए लगातार काम किया जा रहा है। इंदौर में गेर की आरंभ कब हुई थी और इसे क्यों मनाया जाता है आइए जानते हैं इसके बारे में।
रंगू पहलवान के लोटे से निकली गेर
रंग पंचमी के अवसर पर गेर जुड़े कई किस्से सुनने में आते हैं। इंदौरे के गेर से जुड़े कई किस्से मशहूर है। ऐसा ही एक किस्सा हम आपको बताने जा रहे हैं। बता दें कि शहर के पश्चिम क्षेत्र में गेर 1955-56 से निकलना शुरु हुई थी, लेकिन इससे पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते थे एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते थे। 1955 में इसी क्षेत्र में रहने वाले रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केशरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग मारते थे। यहां से रंग पंचमी पर गेर खलने का चलन प्रारम्भ हुआ।
बताया जाता है ति रंगू पहलवान अपनी दुकान के ओटले पर बैठेक करते थे। वहां इस तरह गेर खेलने सार्वजनिक और बड़े पैमाने पर कैसे मनाएं चर्चा हुई। तब तय हुआ कि क्षेत्र की टोरी कार्नर वाले चौराहे पर रंग घोलकर एक दूसरे पर डालेंगे और कहते हैं वहां से इसने भव्य रूप ले लिया।
ये भी है इतिहास
कहा जाता है गेर निकालने की परंपरा होलकर वंश के समय से ही चली आ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार होलकर राजघराने के लोग पंचमी के दिन बैलगाड़ियों में फूलों और रंग-गुलाल लेकर सड़क पर निकल पड़ते थे। रास्ते में उन्हें जो भी मिलता, उन्हें रंग लगा देते। इस परंपरा का उद्देश्य समाज के सभी वर्गों को साथ मिलकर त्योहार मनाना था। यही परंपरा वर्ष रेट वर्ष आगे बढ़ती रही और आज भी लोग इसे मनाते हैं। इस गेर को मनाने का उद्देश्य है कि लोग इसके रंग में घुल जाते हैं और एक दूसरे से प्रेम और सौहार्द के साथ मिलते हैं।