राष्ट्रीय

कांग्रेस ने जातियों और उप-जातियों की जातीय जनगणना कराने का किया वादा

कांग्रेस ने आज लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा पत्र का घोषणा कर दिया है. अपने घोषणा पत्र में कांग्रेस पार्टी ने जातियों और उप-जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की गणना के लिए जातीय जनगणना कराने का वादा किया है. साथ ही पार्टी ने दलित, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक करने के लिए संविधान में संशोधन करने का भी घोषणा किया है. कांग्रेस ने घोषणा पत्र में ये भी वादा किया है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में 10 प्रतिशत आरक्षण सभी जातियों और वर्गों के लिए बिना किसी भेदभाव के लागू किया जाएगा.

संविधान संशोधन का एलान

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन करने का भी घोषणा किया है. हिंदुस्तान के संविधान के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों को शिक्षा संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है. बीजेपी गवर्नमेंट में संविधान संशोधन कर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. अब कांग्रेस पार्टी ने वादा किया है कि यदि उनकी गवर्नमेंट सत्ता में आई तो दलितों, आदिवासियों और जनजातियों के लिए जो आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा तय है, उसे संविधान संशोधन कर बढ़ाया जाएगा.

जातीय जनगणना कराने का वादा

राहुल गांधी ने हिंदुस्तान जोड़ो इन्साफ यात्रा के दौरान कांग्रेस पार्टी की गवर्नमेंट बनने पर जातीय जनगणना कराने का वादा किया था. राहुल गांधी ने अपने एक बयान में जातीय जनगणना का समर्थन करते हुए बोला था कि ‘देश का एक्सरे होना चाहिए और सभी लोगों को पता चलना चाहिए कि राष्ट्र में कितने आदिवासी, दलित, पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के लोग हैं. साथ ही ये पता लगाया जाएगा कि राष्ट्र के धन पर किस वर्ग की कितनी हिस्सेदारी है.‘ अब अपने पार्टी के घोषणा पत्र में औपचारिक रूप से जातीय जनगणना कराने का वादा किया गया है.

जातीय जनगणना पर बदला कांग्रेस पार्टी का रुख

कांग्रेस अब भले ही जातीय जनगणना कराने का वादा कर रही है और लोकसभा चुनाव में इसे मामला बनाने की प्रयास कर रही है, लेकिन यूपीए गवर्नमेंट के दूसरे कार्यकाल तक कांग्रेस पार्टी पार्टी जातीय जनगणना की विरोधी रही है. राष्ट्र के पहले पीएम पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर सरदार पटेल, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक ने जाति आधारित जनगणना का विरोध किया था. वर्ष 1931 में पहली और अंतिम बार जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे. इसका कांग्रेस पार्टी पार्टी ने विरोध किया था और इसे समाज को तोड़ने का षडयंत्र करार दिया था. आजादी के बाद भी कांग्रेस पार्टी का जातीय जनगणना को लेकर विरोध जारी रहा.

80 के दशक में मंडल आयोग की रिपोर्ट को भी तत्कालीन इंदिरा गांधी गवर्नमेंट ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था. यूपीए-2 की गवर्नमेंट में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय हुआ, लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए. अब बदले हुए सियासी परिदृश्य में कांग्रेस पार्टी पार्टी सामाजिक इन्साफ की राजनीति को साधने की प्रयास कर रही है ताकि क्षेत्रीय दलों को साधा जा सके. सपा, बीएसपी समेत कई क्षेत्रीय दल भी जातीय जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं.

 

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