राष्ट्रीय

कोटा में मकर संक्रांति पर होता है पानी के दानव की पूजा

त्योहारों को मानाने का ढंग हर स्थान भिन्न भिन्न होता है  15 जनवरी को मकर संक्रांति भी पूरे हिंदुस्तान में भिन्न भिन्न नामों और रीति से मनाई जाती है  जैसे तमिल में पोंगल | राजस्थान में भी एक ऐसा जिला है जहां मकर संक्रांति को बड़े ही अनूठे ढंग से मनाया जाता है  प्रदेश  के कोटा  मकर संक्रांति का एक अलग ही नजरा देखने को मिलता है क्योंकि पूरे राज्य में यह ही एक ऐसा जिला है जहां बंगाली समाज बहुल्य मात्रा में होता साथ ही ऐसा माना जाता है कि  ही एकमात्र ऐसी स्थान है जहां पर बंगाली समाज के लोग मगरमच्छ की पूजा करते हैं, और वो भी विधि विधान से अपनी परंपरा का पालन करते हैं समाज के लोगों का मानना है कि मगरमच्छ एक ऐसा जीव है जो पानी और भूमि दोनों पर समान रूप से रह सकता है, इसलिए उसे पूजा जाता है

समाज के साथ जुड़ी हुई है यह धारणा
बंगाली समाज के पुरुष विजय बाला ने कहा कि इससे जुड़ी हुई एक धारणा यह भी है कि एक आदमी घर परिवार से दूर रहकर तांत्रिक के पास तंत्र-मंत्र की विद्या सीखने गया था जब वह मकर सक्रांति पर घर लौटा तो उसके परिवार ने उससे पूछा उसने क्या सीखा, इस पर वह अपनी पत्नी को नदी के तट पर ले गया और वहां पर एक लोटा जल भरकर उसमें मंत्र बोलकर पत्नी को पकड़ा दिया और कहा कि मैं मगरमच्छ का रूप भी धारण कर सकता हूं

आधा पानी मेरे ऊपर डाल देना तब मगरमच्छ का रूप धारण कर लूंगा और फिर बाद में दोबारा आधा पानी मगरमच्छ पर डाल देना तो आदमी का रूप धारण कर लूंगा जब उस आदमी का मगरमच्छ का रूप धारण किया तो उसकी पत्नी मगरमच्छ देखकर डर गई और उसके हाथ से पानी का लोटा भी छूट गया इसके बाद वह मगरमच्छ पानी के अंदर चला गया उसकी पत्नी घबरा कर घर पहुंच कर उसने अपनी माता को यह बात बताई नदी किनारे उसकी मां पहुंची तो उसने अपने बेटे को बुलाया तो मगरमच्छ के रूप में वह आया उसने बोला कि हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन भक्तों को दर्शन देने जरूर आऊंगाइसके बाद से ही बंगाली समाज के लोग मकर सक्रांति पर 23 फीट लंबे मिट्टी के मगरमच्छ की पूजा करते हैं इस दिन बंगाली समाज के लोग मकर सक्रांति पर 23 फीट लंबे मिट्टी के मगरमच्छ की पूजा कर समाज और परिवार की खुशहाली की कामना करते है साथ ही सामूहिक रूप से भोजन भी करते है

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