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क्या है किसानों की 12 सूत्रीय मांग, जानिए यहां

दिल्ली की सीमा पर एक तरफ पुलिस बल तैनात है तो दूसरी ओर किसान संगठन दिल्ली कूच के लिए सुरक्षाकर्मियों से संघर्ष करते नजर आ रहे हैं. 13 फरवरी को किसान आंदोलन 2.0 के लिए किसान दिल्ली की सीमा पर दस्तक दे चुके हैं. पंजाब, हरियाणा, यूपी समेत कई राज्यों के किसान पहुंच चुके हैं. इस आंदोलन को चलो दिल्ली मार्च नाम दिया गया है. किसानों की तैयारियों को देखते हुए इस बार दिल्ली पुलिस भी कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं आई. बॉर्डर पर क्रंकीट के बैरिकेड, सड़क पर बिछाए जाने वाले नुकीले बैरिकेड, कंटीले तार लगाकार सीमा को किले में बदल दिया गया. देर रात तक केंद्रीय मंत्रियों और किसान नेताओं के बीच बैठक चली. गवर्नमेंट ने आंदोलन पर अड़े किसानों को समझाने की हर संभव प्रयास की लेकिन 5 घंटे के बाद भी ये कोशिश बेनतीजा रहे. उसके बाद किसान नेताओं ने आर-पार की जंग का घोषणा करते हुए कह दिया कि दिल्ली कूच तो होकर रहेगा. गाजीपुर, सिंघु, संभू, टिकरी समेत सभी बॉर्डर को छावनी में परिवर्तित कर दिया गया. पुलिस ने भी साफ कर दिया है कि किसानों की आड़ में विद्रोहियों ने यदि कानून प्रबंध में खलल डालने की प्रयास की तो उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होगी. इसका नजारा शंभू बॉर्डर पर देखने को भी मिला. पुलिस को ड्रोन की सहायता से आंसू गैस के गोले दागने पड़े.

कुल मिलाकर कहे तो दिल्ली की दहलीज़ पर अपना विशाल विरोध प्रदर्शन ख़त्म करने के दो वर्ष से कुछ अधिक समय बाद, किसान एक बार फिर राजधानी की ओर सड़क पर हैं. 12 फरवरी शाम को दूसरे दौर की वार्ता के लिए तीन केंद्रीय मंत्री चंडीगढ़ में उनसे मुलाकात कर रहे थे. पंजाब-हरियाणा (शंभू) सीमा पर मंगलवार को प्रदर्शनकारी किसानों ने बैरिकेड हटाने प्रारम्भ कर दिए, जिसके बाद हरियाणा पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे. इससे पहले, भारी सुरक्षा के बीच ‘दिल्ली चलो’ मार्च प्रारम्भ होने के तुरंत बाद हरियाणा पुलिस ने सीमा पर कई किसानों को हिरासत में लिया और उनके वाहनों को बरामद कर लिया. किसान यूनियन नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों पीयूष गोयल और अर्जुन मुंडा के बीच दूसरे दौर की जरूरी बैठकें सोमवार रात गतिरोध में खत्म होने के बाद किसान नेताओं ने दिल्ली की ओर अपना मार्च जारी रखने का निर्णय किया. अपनी मांगों और नेतृत्व दोनों में, 2024 का विरोध 2020-21 के वर्ष भर के आंदोलन से बहुत अलग है, जिसके दौरान किसान केंद्र गवर्नमेंट को अपने कृषि सुधार एजेंडे को वापस लेने के लिए विवश करने के अपने मुख्य लक्ष्य में सफल रहे.

किसानों का चल रहा विरोध प्रदर्शन किस बारे में है?

किसान मजदूर मोर्चा (केएमएम) के बैनर तले 250 से अधिक किसान संघ, जो लगभग 100 यूनियनों की निष्ठा होने का दावा करते हैं, और संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक), जो अन्य 150 यूनियनों का एक मंच है, ने आह्वान किया है विरोध प्रदर्शन का समन्वय पंजाब से किया जा रहा है. प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए बैरिकेड्स, कीलें और भारी उपकरण तैनात किए गए हैं. इससे पहले, केंद्र ने बोला था कि वह वार्ता के लिए तैयार है और उनकी मांगों पर ‘खुला दिमाग’ रखता है.

क्या 2020-21 के नेता फिर सक्रिय?

नहीं, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) एक गुट है जो जुलाई 2022 में मूल संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से अलग हो गया. इसके समन्वयक पंजाब स्थित भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) सिधुपुर फार्म के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल हैं. संघ, जो मुख्य संगठन के नेतृत्व के साथ मतभेद के बाद एसकेएम से अलग हो गया. मौजूदा विरोध प्रदर्शन में दूसरा संगठन केएमएम का गठन पंजाब स्थित यूनियन किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के संयोजक सरवन सिंह पंढेर द्वारा किया गया था. केएमएससी 2020-21 में कृषि कानूनों के विरुद्ध मुख्य विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं हुआ, और इसके बजाय कुंडली में दिल्ली सीमा पर एक अलग मंच स्थापित किया था. विरोध प्रदर्शन खत्म होने के बाद, केएमएससी ने अपना आधार बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया – और जनवरी के अंत में, केएमएम के गठन की घोषणा की, जिसमें पूरे हिंदुस्तान से 100 से अधिक यूनियनें शामिल थीं. एसकेएम, हिंदुस्तान के 500 से अधिक किसान संघों का प्रमुख निकाय, जिसने कृषि कानूनों के विरुद्ध 2020-21 आंदोलन का नेतृत्व किया, चल रहे विरोध में शामिल नहीं है. पंजाब में सबसे बड़े बीकेयू उग्राहन सहित 37 कृषि संघ, एसकेएम का हिस्सा हैं. एसकेएम ने 16 फरवरी को ग्रामीण हिंदुस्तान बंद का अपना आह्वान किया है. जबकि एसकेएम दिल्ली चलो आंदोलन का हिस्सा नहीं है, मोर्चा ने सोमवार शाम एक बयान जारी कर बोला कि भाग लेने वाले किसानों का कोई दमन नहीं होना चाहिए. बीकेयू उगराहां ने भी एक बयान जारी कर मार्च को रोकने के हरियाणा गवर्नमेंट के कदमों की निंदा की.

क्या हैं किसानों की मांगें?

किसानों के 12-सूत्रीय एजेंडे में मुख्य मांग सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए एक कानून और डाक्टर एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक फसल की कीमतों का निर्धारण करना है. अन्य मांगें इस प्रकार हैं-

1.) किसानों और श्रमिकों की पूर्ण ऋण माफी.

2.) भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का कार्यान्वयन, जिसमें अधिग्रहण से पहले किसानों से लिखित सहमति और कलेक्टर रेट से चार गुना मुआवजा देने का प्रावधान है.

3.) अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों को सजा.

4.) हिंदुस्तान को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से हट जाना चाहिए और सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगा देनी चाहिए.

5.) किसानों और खेतिहर श्रमिकों के लिए पेंशन.

6.) दिल्ली विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के लिए मुआवजा, जिसमें परिवार के एक सदस्य के लिए जॉब शामिल है.

7.) बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द किया जाए.

8.) मनरेगा के अनुसार प्रति साल 200 (100 के बजाय) दिनों का रोजगार, 700 रुपये की दैनिक मजदूरी और योजना को खेती से जोड़ा जाना चाहिए.

9.) नकली बीज, कीटनाशक, उर्वरक बनाने वाली कंपनियों पर कठोर दंड और जुर्माना; बीज की गुणवत्ता में सुधार.

10.) मिर्च और हल्दी जैसे मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग.

11.) जल, जंगल और जमीन पर मूलवासियों का अधिकार सुनिश्चित करें.

सरकार ने अब तक कैसी प्रतिक्रिया दी है?

केएमएम और एसकेएम (गैर-राजनीतिक) ने 6 फरवरी को कृषि और वाणिज्य और उद्योग मंत्रालयों को अपनी मांगें ईमेल कीं. 8 फरवरी को कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 10 सदस्यीय बैठक की. चंडीगढ़ में किसानों का प्रतिनिधिमंडल. बैठक का संचालन पंजाब के सीएम भगवंत मान ने किया. मान दूसरी बैठक (सोमवार को) में शामिल नहीं थे, जहां 26 किसान नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने तीन मंत्रियों से मुलाकात की थी. आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस पार्टी ने किसानों को अपना समर्थन दिया है. भाजपा और शिरोमणि अकाली दल अब तक चुप हैं.

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