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आजाद ने अमेठी को लेकर कसा तंज

राहुल पहले ही केरल की वन सीट से उम्मीदवार बन चुके हैं. लेकिन अभी भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अमेठी केंद्र में रहेगी या नहीं. एक बार सुनिश्चित सीट अब असुरक्षित है. एक समय का ‘किला’ अब असुरक्षित है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी में स्मृति ईरानी से 55,000 वोटों से हार गए.

राजनीति में अतीत नाम की कोई चीज नहीं होती. सब कुछ चालू है. इसका प्रमुख उदाहरण गुलाम नबी आज़ाद हैं. उन्होंने कांग्रेस पार्टी से आधी सदी का रिश्ता तोड़ लिया है. उन्होंने उस पार्टी के नेता पर तंज कसा. मोदी के दोस्त आज़ाद ने टिप्पणी की कि राहुल गांधी बीजेपी शासित राज्यों में लड़ने से डरते हैं. कांग्रेस पार्टी नेता के अतिरिक्त नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला को भी ‘दूध का बच्चा’ कहकर चिढ़ाया गया. जम्मू और कश्मीर के वरिष्ठ नेता के अनुसार राहुल अल्पसंख्यक जनसंख्या वाले इलाकों में चुनाव लड़ना चाहते हैं. डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी के नेता ने बोला कि राहुल गांधी भाजपा शासित राज्यों में वोट के लिए लड़ने से क्यों झिझक रहे हैं? वह भाजपा से लड़ने की बात करते हैं, भले ही वह क्षेत्र में अन्य काम कर रहे हों. भाजपा शासित राज्यों से बाहर निकलकर अल्पसंख्यक जनसंख्या वाले इलाकों में शरण क्यों लें?

गौरतलब है कि राहुल पहले ही केरल की वन सीट से उम्मीदवार बन चुके हैं. लेकिन अभी भी कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अमेठी केंद्र में रहेगी या नहीं. एक बार सुनिश्चित सीट अब असुरक्षित है. एक समय का ‘किला’ अब असुरक्षित है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अमेठी में स्मृति ईरानी से 55,000 वोटों से हार गए. क्या वह अमेठी से उम्मीदवार होंगे? राहुल के अतिरिक्त आजाद ने उमर अब्दुल्ला पर भी राजनीति के क्षेत्र में ‘दूध का बच्चा’ कहकर तंज कसा. हालाँकि, भुस्वर्ग के वरिष्ठ नेता ने यह घोषणा करते हुए चुनावी लड़ाई से नाम वापस ले लिया है कि उन्हें ‘हार का डर’ है. डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी ने कश्मीर की अनंतनाग राजौरी सीट से उम्मीदवार के रूप में उनके नाम की घोषणा की. लेकिन बुधवार को आजाद ने अनंतनाग में एक बैठक में बोला कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे.

कांग्रेस छोड़ने वाले गुलाम नबी आज़ाद अब कश्मीर की राजनीति के मैदान में बिन पानी मछली की तरह खाना खा रहे हैं. कुछ वर्ष पहले भी आज़ाद राष्ट्रीय राजनीति का अग्रणी चेहरा थे. आजाद अब कश्मीर की राजनीति में अकेले पड़ गए हैं. डीपीएपी, वह पार्टी जिसे उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद बनाया था, अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है.

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