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राजस्थान में भाजपा की हैट्रिक को रोक सकती है जातिगत सियासत

जयपुर. लोकसभा चुनाव के पहले चरण यानी 19 अप्रैल के मतदान में केवल 4 दिन बाकी हैं. भाजपा-कांग्रेस समेत अनेक सियासी दलों की धड़कनें बढ़ी हुई हैं. इस बार टेंशन इसलिए अधिक है क्योंकि ग्राउंड पर वोटर किसी तरह का रिएक्शन नहीं दे रहा है. ना ही चुनाव जैसा माहौल नजर आ रहा है. यही वजह है कि राजस्थान की सभी 25 सीटों पर बीजेपी की हैट्रिक लगना कठिन है. राजस्थान में जातिगत राजनीति बीजेपी की हैट्रिक को रोक सकती है. बीजेपी का परंपरागत वोट बैंक राजपूत समाज विरोध में है. गुर्जर और जाट समुदाय के लोग भी भाजपा से नाराज है.

पार्टी के लोग स्वयं आधा दर्जन से अधिक सीटों पर कडी़ भिड़न्त मानकर चल रहे हैं. संभवतः यही वजह है कि कमजोर सीटों पर पीएम मोदी 10 दिन में 5 बार दौरे कर चुके हैं. क्योंकि मेवाड़, मारवाड़ और शेखावाटी में बीजेपी का परंपरागत संतुलन बिगड़ने से रिज़ल्ट प्रभावित होने की जानकारियां और अनुमान तेजी से सामने आ रहे हैं. वागड़, हाड़ौती और डांग क्षेत्र में भी कद्दावर नेताओं की इज्जत दांव पर लगी हुई है.

इस चुनाव की रोचक बात यह है कि इस बार बीजेपी का एक भी प्रत्याशी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि वह अपने दम पर चुनाव जीतेगा या जीत रहा है. जिस भी प्रत्याशी से बात करो, उसका एक ही उत्तर है कि मुझे मोदी जी चुनाव जिता रहे हैं. मैं नहीं, यहां मोदी जी चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं कांग्रेस पार्टी की बात करें तो उसके सभी प्रत्याशी स्वयं के दम पर चुनाव मैदान में हैं.

भाजपा चुनाव में रैलियों और रोड शो को छोड़कर प्रचार-प्रसार पर अधिक खर्च नहीं कर रही है. क्योंकि वह पहले चरण का रुख देखना चाहती है. यदि पहले चरण में पार्टी को अधिक हार नजर आई तो दूसरे चरण के लिए पार्टी थैलियां खोल सकती है. हार-जीत के आकलन के लिए वह टीवी चैनलों द्वारा किए जाने वाले एग्जिट पोल और स्वयं के सर्वे का सहारा लेगी.

अगर राजस्थान की बात करें तो इस बार बीजेपी के लिए सभी 25 सीटों पर हैट्रिक लगाना बहुत कठिन है. इसके तीन कारण है- 1. जनाधार वाले वरिष्ठ नेताओं को हाशिये पर करना. 2. मौजूदा 50 फीसदी सांसदों के टिकट काट देना. 3. राजस्थान के मंत्रिमंडल में जातिगत अगुवाई मुनासिब रूप में नहीं मिलना. इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रोरल बांड घोटाले और चंडीगढ़ मेयर इलेक्शन में हुए खुलेआम फर्जीवाड़े से बीजेपी की साख गिरी है. गुजरात में राजपूत नेता राज शेखावत और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर राजपूत एवं वैश्य वर्ग में अंदरखाते विशाल नाराजगी है. इसका खामियाजा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है.

राजस्थान की कई सीटों पर इण्डिया गठबंधन और बीजेपी के बीच कड़ी भिड़न्त दिख रही है. इनमें एक सीट बाड़मेर-जैसलमेर पर तो निर्दलीय प्रत्याशी रविंद्र सिंह भाटी ने बीजेपी की टेंशन बढ़ा रखी है. बाकी करीब आधा दर्जन सीटों पर बीजेपी का राजनीतिक गणित बिगड़ा हुआ है. इनमें अलवर, नागौर, दौसा, बांसवाड़ा, सीकर, भरतपुर, धौलपुर-करौली, चूरू और झुंझुनूं सीटें हैं. इनमें चूरू में इस बार भाजपाई राहुल कस्वां को कांग्रेस पार्टी ने मैदान में उतारा है. हाल ही हुए विधानसभा चुनाव के रिज़ल्ट के हिसाब से शेखावाटी और पूर्वी राजस्थान में बीजेपी की स्थिति बहुत अच्छी है. इसीलिए इनमें से अधिकांश सीटों पर पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को मोर्चा संभालना पड़ा है.

जानिए, प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने किस क्षेत्र में क्यों किए दौरे

पीएम मोदी ने राजस्थान में पहला दौरा 2 अप्रैल को जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट के कोटपूतली में किया. यहां से पूर्व विधायक राव राजेंद्र सिंह मैदान में है. मोदी ने यहां से अलवर और झुंझुनूं सीट को भी साधने की प्रयास की. उन्होंने राममंदिर, भ्रष्टाचार, धारा 370 जैसे मामले उठाए. धारा 370 का मामला झुंझुनूं के मतदाताओं को लुभाने के लिए उठाया. क्योंकि आज भी राष्ट्र की सेना में करीब 55000 सैनिक झुंझुनूं क्षेत्र से हैं. यहां के युवाओं में केंद्र की अग्निवीर योजना के प्रति आक्रोश है.
पीएम मोदी ने इसके बाद 5 अप्रैल को चूरू में जनसभा की. ताकि चूरू के साथ सीकर और झुंझुनू सीट को भी साधा जा सके. वजह यह कि चूरू में बीजेपी की स्थिति बहुत अधिक अच्छी नहीं है. यहां राहुल कस्वां का टिकट कटने से जाट समाज में नाराजगी दिख रही है. कस्वां इस चुनाव को जाट-राजपूत बनाने में जुटे हैं.

ऐनवक्त पर नागौर की स्थान पुष्कर में क्यों रखी गई सभा :

पीएम मोदी ने 6 अप्रैल को पुष्कर में जनसभा की. जबकि पहले यह सभा नागौर में होनी थी. लेकिन, ऐनवक्त पर इसका जगह बदला गया. क्योंकि नागौर में इस बार बीजेपी की राह सरल नहीं है. यहां इस बार बीजेपी ने जहां कांग्रेस पार्टी से आई ज्योति मिर्धा को मैदान में उतारा है. वहीं कांग्रेस पार्टी ने यह सीट इण्डिया गठबंधन को समझौते में यह सीट हनुमान बेनीवाल के लिए छोड़कर मुकाबला रोचक बना दिया है. जाट नेता के रूप में हनुमान बेनीवाल की नागौर में अच्छी पकड़ मानी जाती है. वे अभी खींवसर से विधायक भी हैं. मोदी ने नागौर से बीजेपी प्रत्याशी ज्योति मिर्धा और अजमेर प्रत्याशी भागीरथ चौधरी के समर्थन में वोट मांगे.

करौली-धौलपुर में कितना चल पाएगा ERCP का मुद्दा
इसी तरह मोदी ने 11 अप्रैल को करौली-धौलपुर में सभी की. यहां कि 8 विधानसभा सीटों में से बीजेपी के पास केवल 2 सीटें हैं. कांग्रेस पार्टी के पास 5 और बीएसपी के पास 1 सीट है. यहां पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना य़ानि ईआरसीपी बड़ा मामला है. पिछले चुनाव में पीएम मोदी ने इसे राष्ट्रीय प्रोजेक्ट बनाने की घोषणा की थी. लेकिन, 5 वर्ष तक कुछ नहीं हुआ. अब जब लोकसभा चुनाव आए तो बीजेपी मध्यप्रदेश से समझौता करके इसे चुनाव में भुनाने की प्रयास कर रही है. लेकिन, यह प्रोजेक्ट पानी की 75 फीसदी डिपेंडिबिलिटी पर होगा या 50 फीसदी पर. इसका खुलासा बीजेपी गवर्नमेंट जानबूझकर नहीं कर रही है. इस मामले का कितना लाभ बीजेपी को मिलेगा, यह देखने की बात है.

दौसा में कन्हैयालाल को चुनाव जितवा पाएंगे किरोड़ी लाल मीणा?

मोदी ने अंतिम दौरा 12 अप्रैल को बाड़मेर में जनसभा और दौसा में रोड शो किया. दौसा में कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी मुरारीलाल मीणा की पोजिशन अच्छी मानी जा रही है. क्योंकि राज्य मंत्रिमंडल में किरोड़ीलाल मीणा को सम्मानजनक पद नहीं मिलने के कारण मीणा समुदाय में काफी नाराजगी है. वैसे भी जसकौर मीणा के कारण किरोड़ीलाल मीणा अंदरखाने मुरारीलाल मीणा की सहायता कर रहे हैं. बाड़मेर में जिस तरह से निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी के समर्थन में भीड़ देखी जा रही है, उससे बीजेपी की चिंताएं बढ़ना स्वाभाविक है. क्योंकि यदि ईवीएम का खेल नहीं हुआ तो भाटी बीजेपी का खेल बिगाड़ सकते हैं. वैसे भी वे स्वयं को मोदी का परिवार बताकर बीजेपी के नाम पर वोट मांग रहे हैं.

 

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