रामजन्मभूमि पर आक्रमण करने वाला बाबर पहला आक्रमणकारी नहीं बल्कि ये था…
अयोध्या, अजुध्या या फिर अवध। जो भी कहिए राम की नगरी का ही बोध होता है। देवताओं की नगरी, जिसके बारे में माना जाता है कि ब्रह्मा के मानस पुत्र मनु ने इसकी स्थापना की थी। मान्यता है कि देवशिल्पी विश्वकर्मा की देखरेख में इस नगर का निर्माण हुआ था। एक समय अयोध्या भारतवर्ष की राजधानी हुआ करती थी, बाद में हस्तिनापुर हो गई। पिछले 500 वर्षों में अयोध्या की चर्चा मुगलों के आक्रमण और मंदिर को तोड़े जाने पर केंद्रित रही। काफी टकराव हुआ। हालांकि रामजन्मभूमि पर आक्रमण करने वाला बाबर पहला आक्रमणकारी नहीं था।
हां। बाबर के आने से पहले विदेशी यवन राजा मिनेंडर (मिहिरकुल) अयोध्या आया था। उसके आक्रमण के तीन महीने के भीतर ही शुंगवंशीय राजा द्युमत्सेन ने उन्हें शिकस्त देकर अयोध्या को फिर से मुक्त करा लिया। यही नहीं, सोमनाथ मंदिर को कई बार लूटने वाले महमूद गजनवी के भांजे मसूद गाजी ने भी की थी। बताते हैं कि गाजी दिल्ली, मेरठ, बुलंदशहर को रौंदता हुआ आगे बढ़ा था। रास्ते में क्षेत्रीय राजाओं से लड़ाई हुई और कई देवस्थलों को ध्वस्त करता गया। वह बाराबंकी तक आ गया था और अयोध्या पहुंचना चाहता था।
वो वर्ष 1034 था। कौशल के महाराज सुहेलदेव से उसका सामना हुआ। महाराजा की शक्तिशाली सेना ने आतताई मसूद गाजी की 1.30 लाख सैनिकों वाली फौज का सफाया कर दिया। अयोध्या तब सुहेलदेव की उपराजधानी थी। हालांकि 1528 में बाबर के सेनापति मीर बाकी का धावा होता है और अयोध्या को फिर संघर्ष करना पड़ा। मंदिर तोड़ दिया गया। जैसे ही समाचार आसपास के क्षेत्रों में पहुंची कई राज्यों ने मीर बाकी की सेना पर धावा बोल दिया। कहा जाता है कि 15 दिनों तक लगातार युद्ध चला।
बाबर की जीवनी में हंसवर नरेश के राजगुरु पंडित देवीदीन पांडेय की बहादुरी का जिक्र किया गया है। इसमें लिखा गया है कि देवीदीन ने अकेले 700 से अधिक सैनिकों को मिट्टी में मिला दिया। एक ब्रिटिश इतिहासकार ने भी उस दौर के बारे में लिखा है कि 1.74 लाख लाशें गिरने के बाद ही मार बाकी अयोध्या मंदिर को तोड़ सका था।
हुमायूं के समय एक महारानी ऐसी थीं, जो राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए मुगलों से भिड़ गई थीं। बताते हैं हुमायूं के राज में रामजन्मभूमि के लिए 10 लड़ाइयां लड़ी गईं। बलरामपुर की महारानी जयराज ने स्त्री सेना और स्वामी महेश्वरानंद साधु सेना लेकर मुगलों से भिड़ गए। इतिहास में लिखा है कि जयराज कुंवरि ने जन्मभूमि पर अधिकार जमा लिया था लेकिन हुमायूं की सेना ने फिर से धावा कर दिया और महारानी शहादत को प्राप्त हुईं।
मुगल हुकूमत में सत्ता बदलती रही लेकिन अयोध्या के लिए संघर्ष जारी रहा। बताते हैं कि मंदिर के लिए अकबर के समय में 20 बार संघर्ष हुआ था। कभी मुगल सेना हावी होती, कभी बलरामाचार्य का दबदबा होता। आखिरकार बलरामाचार्य मार दिए गए तो लोगों का गुस्सा भड़क उठा। तब बीरबल की राय पर अकबर ने बाबरी मस्जिद के सामने एक चबूतरे पर छोटा राम मंदिर बनाने की इजाजत दे दी थी। यह हुक्म भी दिया कि हिंदुओं की पूजा-पाठ में कोई बाधा न डाली जाए। औरंगजेब के समय भी अयोध्या पर संघर्ष जारी रहा।