पाकिस्तानी जनरलों ने 1983 में सियाचिन पर अपना दावा मजबूत करने के लिए सेना की टुकड़ी भेजने का निर्णय किया. इंडियन आर्मी के पर्वतारोहण अभियानों की वजह से उसे इस बात का डर सताने लगा कि हिंदुस्तान सियाचिन पर अपना कब्जा कर सकता है. इसकी वजह से उन्होंने सबसे पहले अपनी सेना भेजने का निर्णय कर लिया. इसके लिए पाक लंदन के एक सप्लायर को ठंड से बचने वाले कपड़ों का ऑर्डर दे दिया. लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि वही सप्लायर हिंदुस्तान को भी ठंड से बचने वाले कपड़ों की आपूर्ति करता है.
भारत को जब इस बात की जानकारी हुई, तो उसने पाक से पहले सियाचिन में सेना भेजने की प्लान तैयार कर लिया. हिंदुस्तान ने पाक के पर्वतारोहण कार्यक्रमों पर रोक लगाने के लिए उत्तरी लद्दाख में सेना और ग्लेशियर के कई अन्य हिस्सों में पैरामिलिटरी फोर्स की तैनाती का निर्णय किया. इसके लिए 1982 में अंटार्कटिक में हुए एक अभियान में हिस्सा ले चुके सैनिकों को चुनाव किया गया, जो ऐसी विषम परिस्थितयों में रहने के लिए अभ्यस्त थे.
पाकिस्तान सेना को मात देने के लिए इंडियन आर्मी ने 13 अप्रैल 1984 को ग्लेशियर पर कब्जा करने का निर्णय किया. जो पाक के तय तारीख 17 अप्रैल से चार दिन पहले ही था. इसे ऑपरेशन का कोडनेम ‘ऑपरेशन मेघदूत’ रखा गया. इस ऑपरेशन की प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल प्रेम नाथ हून के कंधों पर दी गई. वे उस समय जम्मू कश्मीर में श्रीनगर 15 कॉर्प के जनरल कमांडिंग ऑफिसर थे. इंडियन आर्मी के कर्नल नरिंदर कुमार उर्फ बुल कुमार की प्रतिनिधित्व में चढ़ाई की आरंभ हो गई.
पाकिस्तान के पहुंचने से पहले ही सियाचिन पर था हिंदुस्तान का कब्जा
वायु सेना के जहाजों के जरिए सेना के जवानों को ऊंचाई पर पहुंचाने के साथ ही ऑपरेशन मेघदूत की आरंभ हो गई. इसके लिए वायु सेना ने आईएल-76, एनएन-12 और एन-32 विमानों को सामान ढ़ोने के लिए लगाया जो उच्चतम बिंदु पर स्थित एयरबेस पर सेना और सामानों को पहुंचाने लगे. इसके बाद वहां से एमआई-17, एमआई-8, चेतक और चीता हेलिकॉप्टरों के जरिए सेना को आगे पहुंचाया गया.
इस ऑपरेशन का पहला चरण मार्च 1984 में तब प्रारम्भ हुआ, जब ग्लेशियर के पूर्वी बेस पर सेना ने अपना पहला कदम रखा. कुमाऊं रेजीमेंट और लद्दाख स्काउट की पूरी बटालियन हथियारों से लैस होकर बर्फ से ढके जोजि-ला पास से आगे बढ़ने लगे. इस दल की प्रतिनिधित्व कर रहे लेफ्टिनेंट कर्नल (बाद में ब्रिगेडियर) डीके खन्ना ने पाकिस्तानी रडार से बचने के लिए आगे का रास्ता पैदल ही तय करने का निर्णय किया था. इसके लिए सेना को कई टुकड़ियों में बांट दिया गया. ग्लेशियर पर कब्जा करने के लिए मेजर आरएस संधु की प्रतिनिधित्व में पहली टुकड़ी को आगे भेजा गया.