सुप्रीम कोर्ट का CAA पर रोक लगाने से इनकार, केंद्र सरकार से मांगा जवाब
सुप्रीम न्यायालय (Supreme Court) ने मंगलवार को केंद्र से नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का आग्रह करने वाले आवेदनों पर तीन हफ्ते के भीतर उत्तर देने को कहा. हालाँकि, शीर्ष न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को कारगर बनाने वाले नियमों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ताओं का अगुवाई करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने नागरिकता संशोधन अधिनियम की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय होने तक नियमों के क्रियान्वयन पर रोक लगाए जाने का आग्रह किया था.
वहीं, केंद्र ने अपनी ओर से बोला कि सीएए किसी की नागरिकता नहीं छीनता. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे। बी। पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ से केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बोला कि उन्हें 20 आवेदनों पर उत्तर देने के लिए चार हफ्ते का समय चाहिए. कोर्ट ने इस पर केंद्र को नोटिस जारी करते हुए आवेदनों पर तीन हफ्ते के भीतर उत्तर मांगा. पीठ ने कहा, ”हम प्रथम दृष्टया कोई विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं… हमें याचिकाकर्ताओं को सुनना है, हमें दूसरे पक्ष को सुनना है.” मुद्दे की अगली सुनवाई नौ अप्रैल को होगी.
आवेदनों में आग्रह किया गया है कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का शीर्ष न्यायालय द्वारा निपटारा किए जाने तक संबंधित नियमों पर रोक लगाई जानी चाहिए. संसद द्वारा विवादास्पद कानून पारित किए जाने के चार वर्ष बाद केंद्र ने 11 मार्च को संबंधित नियमों को अधिसूचित करने के साथ नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के क्रियान्वयन का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. इस कानून में 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से हिंदुस्तान आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को तेजी से भारतीय नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने बोला कि केंद्र को बयान देना चाहिए कि सुनवाई लंबित रहने तक किसी को भी नागरिकता नहीं दी जाएगी. पीठ ने कहा, “वे हमें यह कहने के हकदार हैं कि हमें उत्तर दाखिल करने के लिए थोड़ा समय दें. हम उन्हें आवेदनों पर उत्तर दाखिल करने के लिए कुछ समय दे सकते हैं.”
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, ”समस्या यह है कि यदि नागरिकता की कोई प्रक्रिया प्रारम्भ होती है और किसी को नागरिकता मिल जाती है, तो कई कारणों से इसे उलटना असंभव होगा और ये याचिकाएं निरर्थक हो जाएंगी. इसलिए, यह प्रक्रिया प्रारम्भ नहीं होनी चाहिए.” जब एक वकील ने पूछा कि यदि बलूचिस्तान में प्रताड़ित कोई हिंदू आदमी दिसंबर 2014 से पहले हिंदुस्तान आया है और उसे यहां नागरिकता दी जाती है, तो इससे किसी और के अधिकार पर क्या असर पड़ेगा. जयसिंह ने उत्तर में कहा, “क्योंकि उसे वोट देने का अधिकार मिल जाएगा.” पीठ के यह कहने पर कि मुद्दे में अगली सुनवाई नौ अप्रैल को होगी, जयसिंह ने कहा, ”इस बीच, उन्हें बयान देने दीजिए कि वे किसी को नागरिकता नहीं देंगे.”