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सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी ने परिवारवाद पर खुलकर की बात, बोलीं…

नई दिल्ली: नई दिल्ली लोकसभा सीट से बीजेपी उम्मीदवार और दिवंगत केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज ने बोला कि RSS के मूल्य उनकी रगों में बहते हैं और वह अपने कद और विरासत के कारण अपनी माँ की स्थान भरने के बारे में सोच भी नहीं सकती. एक साक्षात्कार में, बांसुरी स्वराज ने बचपन से अपनी मां के साथ अपने गहरे संबंधों को याद किया और खुलासा किया कि उन्होंने हर वर्ष बीजेपी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी को उनके जन्मदिन पर उनका पसंदीदा केक भेजने की दिवंगत मंत्री की परंपरा को जारी रखा है.

सुषमा स्वराज और स्वराज कौशल की इकलौती संतान बांसुरी स्वराज ने बोला कि बड़े होने के दौरान, घर में एक कठोर नियम था – उन्हें अपनी मां से हिंदी में और पिता से अंग्रेजी में बात करनी होती थी – जिससे वह दोनों में पारंगत हो गईं. दिल्ली में बीजेपी की सबसे कम उम्र की उम्मीदवार, चालीस वर्षीय बांसुरी स्वराज ने बोला कि उनकी परवरिश सामान्य रही, जिसने उन्हें जमीन से जोड़े रखा, जबकि उनके माता-पिता और दादा-दादी वाले परिवार का दृष्टिकोण राष्ट्रवादी था. उन्होंने कहा, “मैं विनम्रतापूर्वक कहती हूं कि मैं सुषमा स्वराज की वजह से राजनीति में नहीं हूं और मैं यह बात बड़ी जिम्मेदारी के साथ कह रही हूं. मेरी ‘संघ आयु’ (संबद्धता) 24 वर्ष पुरानी है. मैंने अपना सियासी जीवन ABVP कार्यकर्ता के रूप में प्रारम्भ किया था.

उन्होंने कहा, “मैंने पिछले 10 सालों से एक वकील के रूप में पार्टी और संगठन की सेवा की है. मेरी मां के मृत्यु के चार वर्ष बाद मुझे पार्टी में पहली जिम्मेदारी दिल्ली बीजेपी के कानूनी प्रकोष्ठ के सह-संयोजक के रूप में मिली.” जहां तक वंशवाद की राजनीति का प्रश्न है, बांसुरी स्वराज ने बोला कि वह भी अन्य लोगों की तरह ही समान अवसरों की हकदार हैं. उन्होंने कहा, केवल इसलिए कि मेरी मां एक जन प्रतिनिधि थीं, राजनीति मेरे लिए वर्जित नहीं होनी चाहिए.

उन्होंने बोला कि, “यह वंशवाद की राजनीति होती यदि मैं पार्टी की मालिक होती और इसमें शामिल होने के तुरंत बाद इसकी प्रमुख और शीर्ष दावेदार बन जाती. लेकिन अवसर की समानता सभी के लिए मुनासिब है, चाहे वह सुषमा स्वराज की बेटी हो या कोई और.” बांसुरी ने बोला कि उसके माता-पिता ने यह सुनिश्चित करने के लिए अपना काफी समय उसमें लगाया कि वह अपनी क्षमता हासिल कर सके. उन्होंने बोला कि, “मैंने सब कुछ अपनी मां और पिता से सीखा है. जब आप इकलौते बच्चे होते हैं, तो आप अपने माता-पिता के लिए एक प्रोजेक्ट बन जाते हैं. वे वास्तव में स्वयं को आप में निवेश करना चाहते हैं. मुझे लगता है कि वे वास्तव में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं. लेकिन मुझपर ऐसा कोई दबाव नहीं था.

बांसुरी स्वराज ने आगे बोला कि, “मुझे लगता है कि उनके कद और विरासत का पूरा पहलू कुछ ऐसा है, जो अन्य लोगों के दिमाग पर असर डालता है. मैं उनकी नकल बनने की प्रयास भी नहीं कर रहा हूं क्योंकि यह उनकी स्मृति के लिए सबसे बड़ा हानि होगा. उन्होंने कहा, “उन्होंने मुझमें इतना निवेश किया, इसलिए नहीं कि मैं उनकी नकल बन जाऊं. वह चाहती थीं कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ संस्करण बनूं.” उन्होंने कहा, “उनकी स्थान भरने की प्रयास करना मूर्खता होगी. सुषमा स्वराज सिर्फ़ एक ही हो सकती हैं. हालांकि, मैं कहूंगी कि मेरा कोशिश है कि मैं ऐसा कुछ भी न करूं जिससे उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे.

बांसुरी को याद आया कि कैसे उसकी माँ ने हर सुबह विद्यालय बस के पिक-अप प्वाइंट तक उसके साथ जाने और हर दोपहर ड्रॉप-ऑफ प्वाइंट पर उपस्थित रहने का निश्चय किया था. उन्होंने कहा, “वह एक अद्भुत मां थीं, वास्तव में अद्भुत. वह विद्यालय के सभी वार्षिक कार्यक्रमों में उपस्थित रहती थीं – यहां तक कि जब मैं संतरा या पेड़ खेलती थी, तब भी.बीजेपी की दिग्गज नेता और दिल्ली की सीएम और विदेश मंत्री रह चुकीं सुषमा स्वराज एक विशिष्ट भाषण शैली वाली लोकप्रिय नेता थीं, जिसने उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का चहेता बना दिया था. अगस्त 2019 में उनकी मौत हो गई. अपने नाम के पीछे की कहानी साझा करते हुए उन्होंने बोला कि उनकी मां ईश्वर कृष्ण की भक्त थीं और बोला करती थीं कि बांसुरी उन्हें सबसे प्रिय है.

उन्होंने कहा, “बांसुरी की देखभाल हमेशा राधा रानी या स्वयं ईश्वर कृष्ण करते थे. मेरे पिता चाहते थे कि मेरा नाम किसी संगीत वाद्ययंत्र के नाम पर रखा जाए. इसलिए, उन्होंने मेरा नाम बांसुरी रखने का निर्णय किया.” बांसुरी स्वराज ने बोला कि उनकी मां एक राजनेता थीं, इसके बावजूद घर में एक नियम था कि खाने की मेज पर राजनीति पर कोई चर्चा नहीं की जाएगी. उन्होंने कहा, “मेरे दादाजी और मैं अक्सर एक साथ भोजन करते थे और वह मुझसे राष्ट्रवाद, जीवन, ज्ञान और धर्म के बारे में बात करते थे. घर पर राजनीति पर कभी चर्चा नहीं होती थी. यह न तो हमारे रात्रिभोज और न ही नाश्ते की मेज पर वार्ता का हिस्सा था.

हालाँकि, वह राष्ट्र में होने वाली घटनाओं से “बहुत जागरूक” थी क्योंकि विद्यालय जाने से पहले हर सुबह एक अखबार पढ़ना जरूरी था. उन्होंने कहा, “मेरे दादू (दादा) मेरे साथ चाय लेकर बैठते थे और मैं दूध पीती थी और हम साथ में अखबार पढ़ते थे.” यह पूछे जाने पर कि क्या सुषमा स्वराज चाहती थीं कि वह राजनीति में आएं, बांसुरी स्वराज ने कहा, “हमने इस बारे में कभी बात नहीं की. हमने सिर्फ़ एक वकील के रूप में मेरे करियर के बारे में बात की थी.” दिल्ली में 25 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव के बारे में बात करते हुए बांसुरी स्वराज ने बोला कि व्यस्त प्रचार अभियान के कारण उनकी नींद गायब हो गई है, लेकिन अपने पिता के साथ प्रतिदिन वार्ता और संगीत सुनने से उन्हें आराम करने में सहायता मिलती है.

उन्होंने कहा, “इन दिनों मैं जिस एक चीज के लिए तरसती हूं वह है नींद. मैं काफी हद तक नींद से वंचित हूं.” स्वराज दिल्ली में बीजेपी द्वारा मैदान में उतारी गई दो स्त्री उम्मीदवारों में से एक हैं. पार्टी का लक्ष्य राष्ट्रीय राजधानी की सभी सात सीटों पर लगातार तीसरी बार जीत दर्ज करना है. आम आदमी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ सीट बंटवारे के समझौते के अनुसार नयी दिल्ली लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रही है. उसने इस सीट से सोमनाथ भारती को मैदान में उतारा है.

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