ऐसी शख्सियत जो कविता लिखना शुरू नहीं किया बल्कि वे कविता लेकर ही हुए पैदा
Shailesh Lodha Poetry in Hindi: कवि सम्मेलन हो या फिर टीवी जगत, शैलेश लोढ़ा ऐसी शख्सियत हैं जो अलग ही मुकाम रखते हैं। मूलतः शैलेश कवि हैं। वे कहते भी हैं कि कविता उनकी आत्मा है और एक्टिंग शरीर है। शैलेश कहते हैं कि उन्होंने कविता लिखना प्रारम्भ नहीं किया बल्कि वे कविता लेकर ही पैदा हुए हैं।
शैलेश लोढ़ा ने महज 10-11 वर्ष की उम्र में ही कविताएं बोलना प्रारम्भ कर दिया था। वे बाल कवि के रूप में पहचान बनाने लगे थे।
पहले कविता पाठ के बारे में शैलेश लोढ़ा कहते हैं कि जब वह 11 साल के थे तब उन्होंने पहली बार मंच पर कविता पाठ किया। वह बताते हैं कि निकर पहने हुए शैलेश लोढ़ा को पिताजी उधार के स्कूटर पर बैठा कर सिरोही से सुमेरपुर ले गए थे। सुमेरपुर में उन्होंने पहली कविता पढ़ी थी। शैलेश लोढ़ा ने हिंदी कवियों को एक अलग पहचान स्थापित करने बड़ा ही काम किया है। उनका बहुत पॉपुलर कार्यक्रम ‘वाह भाई वाह’ ऐसा कार्यक्रम रहा है, जिसने देश-दुनिया को नए-नए कवि दिए हैं और कवियों को एक बड़ा मंच प्रदान किया है।
दिनभर की भाग-दौड़ में कभी-कभी ऐसे पल भी आते हैं जब हमें अपना जीवन एक बोझ लगने लगता है। उदासी छा जाती है। सब कुछ बेमानी-सा लगता है। ऐसे में हमें किताबें और कविताएं ही फिर से ऊर्जा देने का काम करती हैं। आज की दुनिया के बहुत पॉपुलर कवि, अदाकार और लेखक शैलेश लोढ़ा ने कुछ ऐसी कविताएं लिखी हैं जो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। उनकी एक बहुत ही चर्चित कविता है मेरी जिंदगी। इसमें उन्होंने एक निम्न मध्यवर्गीय आदमी का संघर्ष और उसके सपनों का बड़ा ही सुंदर और मार्मिक खाका खींचा है। आप भी पढ़ें यह कविता-
मेरी जिंदगी
10 बाई 10 का कमरा, बीवी का गजरा
बेटिया जो छोटी, सुबह-शाम रोती
घर कब होगा, जब होगा अपना
सेकेंड हैंड स्कूटर का अटूट सपना
अमिताभ का क्रोध, मरता हुआ विचारबोध
बॉस की बीवी को रोज-रोज सलाम
बनिये के बेटों को झुक-झुक राम-राम
असल में मेरी जीवन तो हर महीने की
पहली तारीख को आती है और
दस तारीख तक समाप्त हो जाती है।
किसी भी मध्यवर्गीय परिवार की कहानी, उसका संघर्ष हिंदुस्तान की एक बड़ी जनसंख्या की तस्वीर होती है। लगभग हर आदमी अपने चीथड़े-चीथड़े होते सपनों को जुटा कर फिर से एक नयी तस्वीर बुनता है और हर रोज निकल पड़ता है एक नए संघर्ष के लिए। शैलेश लोढ़ा ने अपनी कविता ‘जिंदगी मुझे तुझसे प्यार है’ के माध्यम से हिंदुस्तान की एक बड़ी जनसंख्या की कहानी को कुछ इस तरह बयां किया है-
सुबह-सुबह मौहल्ले में पानी भरने के लिए जाना
फिल्मी गीतों को धार के साथ गुनगुनाना
दफ्तर में बैठकर यही सोचते रह जाना
कि शाम को उस घर में वापस ना जाना पड़े
जहां मां खांसती हुई मिलेगी
मैं दवाई नहीं ला पाऊंगा
बच्चों के टूटे खिलौनों को कितनी बार जोड़ पाऊंगा
बीबी की फटी साड़ी में से झांकेंगे सपने
आखिर वही तो हैं अपने
भले ही प्रत्येक दिन बोझ हो, और स्वयं पर उधार है
तू जैसी भी है जीवन मुझे तुझसे प्यार है।
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