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मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह को मिली जमानत

नई दिल्ली: सुप्रीम न्यायालय ने मंगलवार (2 अप्रैल) को प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा रियायत दिए जाने के बाद दिल्ली शराब नीति मुद्दे से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मुद्दे में आम आदमी पार्टी (AAP) नेता संजय सिंह को जमानत दे दी. प्रवर्तन निदेशालय के यह कहने के बाद कि उसे जमानत देने पर कोई विरोध नहीं है, न्यायालय ने संजय सिंह को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया, यह साफ करते हुए कि न्यायालय ने मुद्दे की योग्यता के आधार पर कुछ भी व्यक्त नहीं किया है.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने साफ किया कि सिंह जमानत की अवधि के दौरान सियासी गतिविधियों में शामिल होने के हकदार होंगे. पीठ ने यह भी बोला कि आदेश को नजीर नहीं माना जाएगा. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू ने दोपहर 2 बजे प्रवर्तन निदेशालय की ओर से यह रियायत दी. पूर्वाह्न सत्र में सुनवाई के दौरान पीठ ने एसवी राजू से निर्देश प्राप्त करने को बोला था कि क्या संजय सिंह को और हिरासत में रखने की जरूरत है. दोपहर 2 बजे जब पीठ दोबारा बैठी तो राजू ने कहा, ”गुण-दोष पर जाए बिना, मैं जमानत मुद्दे में अजीबोगरीब तथ्यों पर रियायत दूंगा.

पीठ ने संजय सिंह की ओर से वरिष्ठ वकील और कांग्रेस पार्टी सांसद डॉ अभिषेक मनु सिंघवी की दलीलें सुनने के बाद प्रवर्तन निदेशालय का रुख पूछा और बोला कि अनुमोदक-दिनेश अरोड़ा द्वारा दोषमुक्ति संबंधी बयान दिए गए थे और कोई पैसा बरामद नहीं किया गया था. सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ”कुछ भी बरामद नहीं हुआ है, कोई निशान नहीं है.” संजय सिंह को प्रवर्तन निदेशालय ने 4 अक्टूबर, 2023 को दिल्ली में उनके आवास पर तलाशी के बाद अरैस्ट किया था. केंद्रीय एजेंसी का इल्जाम है कि व्यवसायी दिनेश अरोड़ा के एक कर्मचारी ने सिंह के घर पर दो बार में 2 करोड़ रु रुपये पहुंचाए. सिंह की गिरफ्तारी अरोड़ा द्वारा लगाए गए आरोपों के बाद हुई, जो बाद में प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई दोनों मामलों में सरकारी गवाह बन गए. प्रवर्तन निदेशालय का दावा है कि उसके पास सिंह से पूछताछ के लिए डिजिटल सबूत हैं, लेकिन एजेंसी ने जमनात का विरोध नहीं किया.

इससे पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस वर्ष फरवरी में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी इससे पहले पिछले वर्ष अक्टूबर में मनी लॉन्ड्रिंग मुद्दे में गिरफ्तारी और रिमांड को चुनौती देने वाली सिंह की याचिका खारिज कर दी गई थी. ऐसे में उच्चतम न्यायालय अरैस्ट सांसद द्वारा दाखिल दो विशेष अनुमति याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. पहली याचिका मनी लॉन्ड्रिंग मुद्दे में उनकी गिरफ्तारी और रिमांड के विरुद्ध चुनौती है, जबकि दूसरी जमानत के लिए याचिका है.

आज सुनवाई के दौरान सिंघवी ने इस बात पर बल दिया कि सिंह के विरुद्ध प्रवर्तन निदेशालय का पूरा मुद्दा सरकारी गवाह बने दिनेश अरोड़ा के बयान पर आधारित है, जिन्होंने वास्तव में सिंह का नाम लेने से पहले 9 दोषमुक्ति संबंधी बयान दिए थे. इस बात पर प्रकाश डाला गया कि अरोड़ा को प्रवर्तन निदेशालय की “अनापत्ति” पर जमानत दी गई थी, जबकि संबंधित न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि प्रवर्तन निदेशालय “स्मार्ट खेल” रही थी.

सिंघवी ने इल्जाम लगाया कि इस अनापत्ति का इस्तेमाल बाद में अरोड़ा द्वारा सिंह का नाम लेते हुए दिए गए धारा 50 के बयान को प्राप्त करने के लिए किया गया था. उन्होंने यह भी दावा किया कि संजय सिंह द्वारा संवाददाता सम्मेलन आयोजित करने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने प्रतिशोध की कार्रवाई प्रारम्भ की और कहा, उसके तुरंत बाद एजेंसी के अधिकारी उनके घर आए. सिंघवी ने संजय सिंह की गिरफ्तारी की जरूरत और अरोड़ा द्वारा दिए गए दोषमुक्त बयानों को “अविश्वसनीय दस्तावेजों” में डालने के प्रवर्तन निदेशालय के आचरण पर प्रश्न उठाया, जिसे सिंह देख या प्राप्त नहीं कर सकते हैं. उन्होंने इसे “न्याय का मखौल” बताते हुए कोर्ट से इस प्रथा को रोकने का निवेदन किया.

सिंघवी ने बोला कि, ” सिंघवी ने आगे इल्जाम लगाते हुए बोला कि प्रवर्तन निदेशालय बिना दिखावा किए दिनेश अरोड़ा को जमानत दिलाने की प्रयास कर रही है. दिनेश अरोड़ा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, जिसके बाद उन्होंने पहली बार इल्जाम लगाया. इसके अलावा, अविश्वसनीय दस्तावेज़ भी हैं, जो इन्साफ का एक और उपहास है, क्या अभियोजन पक्ष के लिए इस कथन को अविश्वसनीय में रखना मुनासिब है? मैं इसे देख या प्राप्त नहीं कर सकता. दिनेश अरोड़ा उनके स्टार गवाह हैं, वे उन्हें क्षमा आदि देते हैं. एक्स पर भरोसा करने की लेकिन वाई पर नहीं, इस प्रथा को कोर्ट द्वारा रोका जाना चाहिए.

न्यायमूर्ति खन्ना को सिंघवी से यह पूछते हुए सुना गया कि क्या 2 करोड़ रुपये की कथित राशि घातीय क्राइम का हिस्सा है. यह बताते हुए कि यह एक बहुत ही जरूरी प्रश्न था, सिंघवी ने नकारात्मक उत्तर दिया. न्यायधीश ने पुछा कि, “यदि आप PMLA को एक अलग क्राइम मानते हैं, मान लीजिए कि कोई घूस लेता है, तो क्या हम PMLA अधिनियम के संदर्भ में यह मांग कर सकते हैं कि आपराधिक कार्यवाही प्रारम्भ करने से पहले घूस की राशि को भी कुर्की का विषय बनाया जाना चाहिए?”

पीठ ने इस बात पर बल दिया कि PMLA काले धन को बरामद करने के लिए है और वकीलों से यह जांच करने के लिए बोला (हालांकि वर्तमान मुद्दे में प्रश्न नहीं उठ रहा है) कि क्या यदि कोई आदमी घूस लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा जाता है तो क्या PMLA काम करेगा. फिर भी, सिंघवी ने संक्षेप में उत्तर दिया, “PMLA क्राइम को विशिष्ट क्राइम पर कार्रवाई करनी होगी. यदि आप स्वीकार करते हैं कि आप संलग्न करने में असमर्थ हैं, तो आप स्वीकार करते हैं कि आप ढूंढने में असमर्थ हैं. इसलिए, क्राइम की कोई आय नहीं है”. जबकि ASG राजू ने बल देकर बोला कि “अपराध की आय” क्राइम का आधार है, यहां तक कि क्राइम की आय छिपाना भी PMLA के भीतर आता है. हालाँकि, ASG राजू ने संजय सिंह की जमानत का विरोध नहीं किया, जिससे उन्हें न्यायालय से बेल मिल गई.

 

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