Bengal Violence: रामनवमी पर हिंसा से कांपा बंगाल, जानें कौन है जिम्मेदार…
अब हम रामनवमी पर पश्चिम बंगाल में हुए दंगों का विश्लेषण करेंगे। इन दंगों को लेकर सीएम ममता बनर्जी ने पहले ही अंदेशा जाहिर किया था, जो सच साबित हुआ है। रामनवमी पर शोभायात्रा के दौरान पत्थरबाजी हुई और हालात इतने खराब हुए कि नियंत्रण करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।
17 अप्रैल को रामनवमी थी, जिसे लेकर पश्चिम बंगाल की सीएम ये डर जाहिर कर रही थी कि इस दिन पश्चिम बंगाल में दंगे हो सकते हैं और रामनवमी पर ऐसा हो भी गया, जब मुर्शिदाबाद के शक्तिपुर क्षेत्र में शोभायात्रा निकाली जा रही थी। तब शोभायात्रा में शामिल लोगों पर छत से कुछ लोगों ने पथराव कर दिया।
बम धमाके और गोलियों की सुनाई दी आवाज
इस दौरान गोलियों और बम धमाके की आवाज भी सुनाई दी। गुस्साए लोगों ने कई स्थान आगजनी की और तोड़फोड़ भी की, जिससे हालात नियंत्रण से बाहर हो गए। माहौल बिगड़ता देख अलग से पुलिस फोर्स को तैनात करना पड़ा। शक्तिपुर क्षेत्र से करीब 12 किलोमीटर पहले ही रास्तों पर बैरिकेडिंग की गई, चेकिंग के बाद ही लोगों को आगे जाने दिया गया। रामनवमी पर हुए हंगामा की वजह से कुल 12 लोग घायल हो गए, जिनमें से 10 घायलों को उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई।
रामनवमी पर हुए दंगों से ठीक दो दिन पहले यानी 15 अप्रैल को ही मुर्शिदाबाद के DIG को बदल दिया गया था, तब ममता बनर्जी ने बोला था कि मुर्शिदाबाद में यदि दंगे होते हैं तो इसके लिए चुनाव आयोग उत्तरदायी होगा। लेकिन मुर्शिदाबाद में दंगे कैसे हुए, किसने दंगे किये, कितने आरोपियों की गिरफ्तारी हुई। इसकी पुख्ता जानकारी पुलिस के पास नहीं है। ना ही पुलिस ने आधिकारिक तौर पर इससे संबंधित जानकारी साझा की है। लेकिन मुर्शिदाबाद अत्याचार पर राजनीति जरूर प्रारम्भ हो गई है। ममता बनर्जी बीजेपी पर और बीजेपी नेताओं ने तृण मूल काँग्रेस पर रामनवमी पर हुए दंगों के इल्जाम लगाए हैं।
बीजेपी-टीएमसी के बीच हुआ टकराव
पिछले वर्ष 2023 में भी पश्चिम बंगाल में रामनवमी के एक कार्यक्रम में अत्याचार हुई थी, जिसके बाद बीजेपी और तृण मूल काँग्रेस के बीच विवाद हुआ था। इसबार भी दोनों सियासी दल एक दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं। इस बीच मुर्शिदाबाद में हुई अत्याचार के कुछ वीडियो सामने आए हैं। जिनमें विद्रोहियों को देखा जा सकता है। लेकिन अत्याचार की असल वजह अबतक सामने नहीं आई है।
ऐसे में Zee News राष्ट्र का पहला ऐसा चैनल बना है, जो मुर्शिदाबाद में उस स्थान पहुंचा है, जहां रामनवमी पर अत्याचार हुई। और Ground Zero से जानने की प्रयास की कि अत्याचार की शुरूआत कैसे हुई थी, किसने अत्याचार की आरंभ की थी और क्या शोभायात्रा पर पत्थरबाजी पहले से प्लान थी। हमने उन पीड़ितों से भी बात की, जिन्होंने अत्याचार का दंश झेला है।
ग्राउंड जीरो पर पहुंचा जी न्यूज
- मुर्शिदाबाद का ये वही शक्तिपुर है, जहां 24 घंटे पहले रामनवमी पर अत्याचार हुई थी। लेकिन अब यहां सन्नाटा पसरा है। सड़कें सुनसान हैं और Zee News इकलौता ऐसा चैनल है, जो ग्राउंड जीरो पर पहुंचा है।
- यहां एहतियात के तौर पर पुलिस ने धारा 144 लगाई है, तो लोग डर की वजह से घरों से बाहर नहीं निकल रहे। उनकी आंखों के सामने 17 अप्रैल की अत्याचार की फोटोज़ तैरने लगती हैं।
- अब पूरे क्षेत्र में आतंक का ऐसा माहौल है, कि कोई घर से बाहर निकलने की हौसला नहीं जुटा पा रहा, शक्तिपुर में रहने वाले चिकित्सक सुमंत गायन भी परिवार के साथ घर में ही कैद हैं। क्योंकि, इनके घर पर कल पत्थरबाजी हुई थी।
- शक्तिपुर में दोनों समुदाय के लोग अत्याचार से प्रभावित हुए हैं, उनके घरों को हानि पहुंचा है। अब स्थिति ऐसी है कि दोनों डर के माहौल में जीने को विवश हैं।
- हिंसा के बाद पुलिस अलर्ट है, शक्तिपुर से करीब 12 किलोमीटर पहले ही कई चेकिंग प्वाइंट बनाये गये हैं, जहां से चेकिंग के बाद ही लोगों को आगे आने दिया जा रहा है। रामनवमी पर हुई अत्याचार ने मुर्शिदाबाद का माहौल फिर खराब कर दिया है।
नए डीआईजी अत्याचार रोकने में हुए नाकाम
मुर्शिदाबाद के शक्तिपुर में हुई अत्याचार की Ground Report आपने पढ़ी। इस रिपोर्ट के बाद सिस्टम पर कई प्रश्न उठते हैं। चुनाव से ठीक पहले मुर्शिदाबाद के मौजूदा DIG को हटाकर नए DIG की नियुक्ति इसलिए की गई थी, ताकि वो अत्याचार की घटनाओं को ना होने दें. लेकिन नए DIG तो अत्याचार रोकने में ही असफल रहे।
सोमवार यानी 15 अप्रैल तक मुर्शिदाबाद के DIG मुकेश थे, जिनका स्थानांतरण चुनाव आयोग ने कर दिया था। मुकेश को चुनाव आयोग ने गैर चुनावी ड्यूटी पर लगाया। उनकी स्थान सैय्यद वकार रजा को मुर्शिदाबाद का नया DIG नियुक्त किया गया।
सैय्यद वकार इससे पहले इंटेलिजेंस ब्रांच में IG और कोलकाता पुलिस में ज्वाइंट कमिश्नर अपराध रह चुके हैं। चुनाव आयोग ने DIG के तबादले की आधिकारिक तौर पर वजह नहीं बताई थी, लेकिन माना गया था कि DIG मुकेश पंचायत चुनाव में अत्याचार रोकने में असफल हुए थे, इसलिए उन्हें हटाया गया।
- जुलाई 2023 में मुर्शिदाबाद में पंचायत चुनाव हुए थे, तब बड़े पैमाने पर चुनाव से पहले अत्याचार हुई थी। अत्याचार में बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के कई पार्टी कार्यकर्ता मारे गए और घायल हुए थे।
- TMC और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं में भी झड़प हुई थी, जिसमें कांग्रेस पार्टी के एक कार्यकर्ता की मृत्यु हुई थी।
- इस घटनाक्रम के समय मुर्शिदाबाद के DIG मुकेश थे, चुनाव से पहले DIG के तबादले की वजह 2023 की अत्याचार को वजह मनाया गया।
- इसके अतिरिक्त कांग्रेस पार्टी नेता अधीर रंजन चौधरी ने चुनाव आयोग में कम्पलेन की थी, उनका इल्जाम था कि DIG मुकेश तृण मूल काँग्रेस के इशारों पर काम करते हैं।
- सोमवार को जिस दिन DIG मुकेश को हटाया गया, उसी दिन सीएम ममता बनर्जी ने बयान दिया था कि मुर्शिदाबाद में अत्याचार होती है तो इसका उत्तरदायी चुनाव आयोग होगा। इसके साथ ममता का इल्जाम था कि DIG मुकेश का स्थानांतरण बीजेपी के इशारे पर किया गया।
कौन है अत्याचार का जिम्मेदार
अब यहां प्रश्न ये कि मुर्शिदाबाद अत्याचार का उत्तरदायी कौन है क्योंकि भले ही चुनाव आयोग ने मुर्शिदाबाद के DIG का स्थानांतरण किया। लेकिन जो नए DIG हैं, उनकी रिपोर्टिंग चुनाव आयोग को नहीं बल्कि ममता गवर्नमेंट को थी,लेकिन ममता बनर्जी ये भ्रम फैला रहीं हैं कि DIG को बदलने के बाद दंगे हुए।।और वो इसके लिए चुनाव आयोग को उत्तरदायी बता रही हैं।।जबकि सच ये नहीं है।
आचार संहिता लगने के बाद चुनाव आयोग को ये अधिकार होता है कि किसी राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव के लिए कानून प्रबंध बनाए रखने के लिए ऑफिसरों के तबादले कर सकता है। मुर्शिदाबाद के DIG का स्थानांतरण इसी अधिकार के अनुसार किया गया था।
लेकिन किसी राज्य की कानून प्रबंध राज्य गवर्नमेंट के अधीन होती है, यानी तबादले के बाद नए अधिकारी की ज़िम्मेदारी राज्य गवर्नमेंट को होती है, ना कि चुनाव आयोग को उत्तर देना होता है।
नाकामी की जिम्मेदारी किसकी?
अगस्त 2021 में भी ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव के दौरान हुई अत्याचार के लिए चुनाव आयोग को उत्तरदायी ठहराने की प्रयास की थी। तब ये मुद्दा कलकत्ता उच्च न्यायालय तक पहुंचा था।।और उच्च न्यायालय ने बोला था कि चुनाव आचार संहिता लगने के बाद राज्य गवर्नमेंट की कानूनी जिम्मेदारियां चुनाव आयोग के पास नहीं चली जातीं, जो पुलिस प्रशासन है, वो चुनाव आयोग के अधीन निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए होता है। इसका मतलब ये नहीं है कि पुलिस, कानून प्रबंध को संभालने की अपनी मूलभूत जिम्मेदारी पूरी नहीं करेगी।
यानी कलकत्ता उच्च न्यायालय तीन वर्ष पहले ही क्लीयर कर चुका था कि चुनाव आचार संहिता के दौरान भी पुलिस प्रशासन राज्य गवर्नमेंट के अधीन ही काम करता है। लेकिन मुर्शिदाबाद दंगे के लिए ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग को ही उत्तरदायी ठहरा दिया है। लेकिन ऐसा करके वो अपनी ज़िम्मेदारी से बच रही हैं। तो अब प्रश्न ये है कि ममता बनर्जी को जब पहले से ही अत्याचार की संभावना थी तो अत्याचार होने से रोकी क्यों नहीं गई ?
कैसे असफल कैसे हो गई बंगाल पुलिस? अत्याचार के 24 घंटे बाद भी पुलिस आरोपियों की पहचान क्यों नहीं कर सकी ? इन प्रश्नों के उत्तर ममता बनर्जी को देने चाहिए और ये प्रश्न बंगाल पुलिस से भी पूछा जाना चाहिए। एक दूसरे पर इल्जाम लगाने से परेशानी का निवारण नहीं होगा बल्कि जिम्मेदारी तय करनी होगी और दोषियों पर कार्रवाई करनी होगी।