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इस शख्स को मुख्यमंत्री का पद देकर भाजपा ने सियासी जगत में मचा दी खलबली

मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बनने जा रहे मोहन यादव की काफी चर्चा है एक यादव को सीएम का पद देकर बीजेपी ने राजनीतिक जगत में हड़कंप मचा दी है ऐसे समय में शायद कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं को एक बात काफी खल रही होगी, जो गाहे-बगाहे बीजेपी के लोग सुनाते भी रहते हैं जी हां, कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी पॉलिटिक्स के चक्कर में एक यादव चेहरा सीएम बनते-बनते रह गया उनका नाम था सुभाष यादव उनकी गिनती कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में होती थी वह प्रदेश डेप्युटी मुख्यमंत्री तो बने लेकिन सर्वोच्च पद नहीं मिला खरगोन जिले के किसान परिवार से आने वाले सुभाष यादव अब इस दुनिया में नहीं हैं उनके बेटे अरुण यादव एमपी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं हालांकि जब भी मौका मिलता है राज्य के भाजपाई कांग्रेस पार्टी पर धावा करने का मौका नहीं चूकते दो वर्ष पहले भाजपा के एक नेता ने दिग्विजिय सिंह के ट्वीट पर अरुण यादव पर तंज कसते हुए बोला था, ‘आप उनके साथ हो जिन्होंने आपके पिताजी का लगातार अपमान किया योग्य होने के बावजूद दिग्विजय सिंह और इनके गुरु अर्जुन सिंह ने सीएम नहीं बनने दिया केवल इसलिए क्योंकि सुभाष जी पिछड़े वर्ग (यादव) से आते थे’ इस तरह से देखें तो एमपी में यादवों पर पॉलिटिक्स नयी नहीं है आज बीजेपी यादव, आदिवासी नेताओं को सीएम बना रही है लेकिन 40 वर्ष पहले कांग्रेस पार्टी चूक गई थी

पहली बार तब चूकी कांग्रेस

1980 में अर्जुन सिंह को कांग्रेस पार्टी ने एमपी का मुख्यमंत्री बनाया था और शिवभानु सोलंकी डेप्युटी मुख्यमंत्री बने थे बताते हैं कि सोलंकी के सपोर्ट में ज्यादातर विधायक थे यदि सोलंकी मुख्यमंत्री बनते तो एमपी को पहला आदिवासी मुख्यमंत्री मिल जाता

दूसरी बार यादव पर

साल था 1993, दिग्विजय सिंह के सियासी गुरु अर्जुन सिंह सुभाष यादव को सीएम बनाना चाहते थे हालांकि मुख्यमंत्री दिग्विजय ही बने यदि सुभाष यादव को कमान मिलती तो वह एमपी में कांग्रेस पार्टी को पहला ओबीसी मुख्यमंत्री बनाने का क्रेडिट मिल जाता बाद में 2003 में भाजपा ने उमा हिंदुस्तान को सीएम बनाकर श्रेय अपने नाम कर लिया था अब यादव मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ‘बीस’ पड़ रही है

सिंह vs कांग्रेस

तब दिग्विजय मुख्यमंत्री और सुभाष यादव डेप्युटी मुख्यमंत्री बने थे दोनों के संबंध सामान्य नहीं थे दोनों सियासी प्रतिद्वंद्वी थे दोनों मुख्यमंत्री बनना चाहते थे इससे पहले अर्जुन सिंह की गवर्नमेंट के समय दोनों अच्छे दोस्त माने जाते थे सियासी जानकार कहते हैं कि सुभाष यादव की महत्वाकांक्षाएं पूरी न हो सकीं दिग्विजय ने सुभाष यादव को इग्नोर करना प्रारम्भ कर दिया शराबबंदी समेत कई मुद्दों पर सुभाष यादव दिग्विजय गवर्नमेंट के लिए ही चुनौती बन गए उन्हें आखिर में मंत्रिमंडल से हटा दिया गया सुभाष यादव 1993 में खरगोन जिले की कसरावद विधानसभा से जीतकर एमपी के उपमुख्यमंत्री बने थे तीसरी बार विधायक बनने पर उन्हें प्रदेश कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया था

बेटे को मलाल तो होगा ही

बाद के सालों में सुभाष यादव के बेटे अरुण यादव कांग्रेस पार्टी की तरफ से शिवराज सिंह चौहान की सीट से लड़े एमपी में दलित, आदिवासी और ओबीसी की जनसंख्या काफी अधिक है फिर भी कांग्रेस पार्टी ने इस समुदाय से कभी मुख्यमंत्री नहीं बनाया एक साक्षात्कार में स्वयं अरुण यादव ने बोला था, ‘पुरानी बातों में जाने से क्या मिलेगा… मेरे पिताजी ने भी प्रयास की थी पर सफल नहीं हो पाए’ बताते हैं कि 2008 के चुनाव में सुभाष यादव की हार की मुख्य वजह दिग्विजय सिंह थे लेकिन दिग्विजय ने कभी सामने आकर ‘बैटिंग’ नहीं की सुभाष यादव सांसद रहे लेकिन कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाए

चार दशक तक कांग्रेस पार्टी एमपी की सत्ता में रही लेकिन 20 वर्ष ब्राह्मण, 18 वर्ष ठाकुर और कुछ वर्ष बनिया मुख्यमंत्री रहे मतलब शीर्ष पर सवर्ण हावी रहे आजादी के बाद से हिंदी भाषी बेल्ट के दलित और आदिवासी कांग्रेस पार्टी के साथ रहे थे अब वो समीकरण बिगड़ गया है 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार एमपी में सवर्ण 22 प्रतिशत, दलित करीब 16 प्रतिशत, आदिवासी करीब 21 फीसदी बाकी ओबीसी-अल्पसंख्यक हैं

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