राष्ट्रीय

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता सरकार को लगाई फटकार

इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रभावशाली लोग कानून को खिलौना समझ कर खेलते हैं और प्रबंध भी उनके इस काम में खूब मददगार साबित होती है बरसों बरस से राष्ट्र में ऐसा ही चलता आ रहा है कठोर से कठोर कानून बनाने और अनेक दूसरे तरीकों के बाद भी रसूखदार कानून का आए दिन मजाक उड़ाने से बाज नहीं आते हैं कानून को बौन साबित करने वाली इस जमात को सियासी संरक्षण हासिल होता है ऐसे में धनबल और सियासी संरक्षण प्राप्त ये लोग प्रबंध की कमियों और छिद्रों के चलते नियम कानूनों को सरलता से गच्चा देते हैं

आम आदमी की मामूली-सी गलती पर उसे पकड़ने में भरपूर तेजी दिखाने वाली पुलिस को प्रभावशाली और रसूखदार लोगों तक पहुंचने में समय लग ही जाता है पश्चिम बंगाल में इसकी अवधि कुछ अधिक ही लंबी हो जाती है संदेशखाली मुद्दे से चौतरफा आलोचना का पात्र बना तृणमूल कांग्रेस पार्टी का नेता शाहजहां शेख 55 दिनों से फरार रहने के बाद पुलिस की गिरफ्त में आया है! लेकिन तब, जब कलकत्ता हाई कोर्ट ने ममता गवर्नमेंट को फटकार लगाई यदि फटकार नहीं लगी होती तो उसे छुपाए रखा गया होता वह जिस हनक और रूआब से पुलिस स्टेशन और न्यायालय में दाखिल हुआ, उससे यही लगा कि वह कोई शहंशाह है

पश्चिम बंगाल पुलिस उसके आगे दंडवत और सहमी-सी दिखी उसे सत्ता का संरक्षण प्राप्त था, यह सच्चाई तृणमूल कांग्रेस पार्टी के इस कथन से छिपने वाली नहीं कि हमने उसे निलंबित कर दिया यह राजधर्म नहीं, बेशर्मी है कि उसे अरैस्ट न करने के लिए हाई कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या तक की गई यदि प्रवर्तन निदेशालय को संदेह है कि बंगाल पुलिस शाहजहां शेख की सहायता कर सकती है तो यह स्वाभाविक है बड़ी निर्लज्जता से तृणमूल कांग्रेस पार्टी की गवर्नमेंट अपने नेता का बचाव करती रही संदेशखाली की स्त्रियों ने जिन शब्दों में अपनी पीड़ा का बयान किया है, उससे किसी पत्थर दिल आदमी का भी दिल पिघल सकता है लेकिन पश्चिम बंगाल की स्त्री सीएम का दिल नहीं पसीजा बीजेपी के विरोध और उच्च न्यायालय की कठोर टिप्पणियों के बाद शाहजहां को अरैस्ट किया गया

दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल से प्रवर्तन निदेशालय यानी प्रवर्तन निदेशालय दिल्ली शराब घोटाले में पूछताछ के लिए अब तक आठ समन भेज चुका है जांच एजेंसी के सामने पेश होने की बजाय केजरीवाल प्रवर्तन निदेशालय के समन को ही गैर कानूनी बता रहे हैं वो कानूनी दांव पेंच से जांच से बच रहे हैं और दिल्ली विधानसभा में खड़े होकर केंद्र की मोदी गवर्नमेंट से लेकर अपने सियासी विरोधियों पर जमकर अपनी भड़ास निकाल रहे हैं वैसे विधानसभा में दिए बयान पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती इसी के चलते केजरीवाल ने विधानसभा को अपनी भड़ास निकालने और सियासी विरोधियों पर मनगंढ़त इल्जाम लगाने का मंच बना रखा है राष्ट्र की जनता उनका तमाशा देख रही है

जिस शराब घोटाले में उनसे पूछताछ होनी है, उसी घोटाले में उनके सबसे खास साथी मनीष सिसोदिया और संजय सिंह तिहाड़ की रोटियां तोड़ रहे हैं एक कानूनी पद पर बैठा आदमी किस तरह कानून और संविधान का उपहास उड़ा रहा है, उससे समाज में गलत उदाहण तो पेश हो ही रहा है वहीं आम आदमी के मन में यह प्रश्न भी उठता है कि क्यों कानून रसूखदारों सामने कमजोर और निर्बल दिखाई देता है? केजरीवाल की तरह तेंलगाना के पूर्व सीएम हेमंत सोरेन भी प्रवर्तन निदेशालय के समन की अवमानना करते रहे और स्वयं को बचाने के सारे यत्न उन्होने किये बड़ी जद्दोजहद के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें अपने शिकंजे में लिया फिलवक्त सोरेन कारावास का भोजन पा रहे हैं

पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने मर्डर और दुष्कर्म के मुद्दे में कारावास में सजा काट रहे राम रहीम को बार-बार पैरोल दिये जाने पर प्रश्न उठाया उच्च न्यायालय ने बोला कि क्यों सिर्फ़ राम रहीम को बार-बार पैरोल मिल रही है? बाकी कैदियों को क्यों नहीं फायदा दिया जाता? बलात्कार के गुनेहगार राम रहीम को इस वर्ष जनवरी में 50 दिन की पैरोल दी गई थी यह लगभग 10 महीने में उसकी 7वीं और पिछले चार सालों में 9वीं पैरोल थी उच्च न्यायालय ने हरियाणा गवर्नमेंट को आदेश दिया है कि अब न्यायालय की अनुमति के बिना राम रहीम को पैरोल नहीं दी जाएगी सत्ता, व्यवस्था, कानून के रक्षक और संरक्षक के गठजोड़ से ही राम रहीम जैसे रसूखदार कानून को फुटबाल बनाकर खेलते हैं

जब तक सत्ता के गलियारों से आपराधिक लोगों को संरक्षण मिलता रहेगा, तब तक ये निर्लज्जता बनी रहेगी हरेक घटना में किसी न किसी रसूखदार का, किसी न किसी सत्ताधारी का संरक्षण दिखता रहा है हर बार सत्ता की तरफ से सख्त से सख्त कार्यवाही किये जाने की बात कही जाती है, कुछ दोषियों की गिरफ्तारी भी हो जाती है, जांच करवाए जाने की लीपापोती कर दी जाती है और उसके बाद सब कुछ भूल-भुला लिया जाता है संदेशखाली जैसी घटनाएं कुछ दिन चर्चा में रहती हैं फिर जनमानस की खोपड़ी से गायब हो जाते हैं निठारी काण्ड कितनों को याद है? बिहार मुजफ्फरपुर शेल्टर होम बलात्कार मुकदमा कितनों को याद है? कितनों को उसके गुनेहगार की सजा याद है? कुछ दिन बाद ऐसा ही संदेशखाली में को भी लेकर होगा

प्रभावशाली किस मुद्दे में फंस भी जाते हैं तो उनके चेहरे, बॉडी लैग्वेंज, चेहरे से टपकते घमंड और अहंकार को देखकर ऐसा नहीं लगता कि उनको कानून का रत्ती भर भी भय है पुलिस प्रशासन को तो वो अपना चाकर समझते हैं कहीं न कहीं प्रबंध भी उनकी चाकरी करती दिखाई देती है इन्साफ प्रबंध भी ऐसी है कि प्रभावशाली लोगों को जमानत देने में देर नहीं करती आधी रात को भी उनके मुद्दे सुन लिए जाते हैं हालांकि राष्ट्र की अदालतों में करोड़ों मुकदमे लंबित हैं और आम आदमी को इन्साफ पाने के लिए सालों प्रतीक्षा करनी पड़ती है करप्शन और अन्य गंभीर मामलों में दर्जनों रसूखदार सरलता से जमानत पाकर आराम की जीवन बिता रहे हैं चारा घोटाले में सजा पाए लालू प्रसाद यादव स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के चलते जमानत पर हैं राजनीति में उनकी सक्रियता बताती है कि अब वो स्वस्थ हैं और यदि वो स्वस्थ हैं तो वो जमानत पर क्यों हैं? यदि रसूखदारों को कारावास जाना भी पड़ा तो वहां भी उनके मनमुताबिक ऐशो आराम जारी रहता है ऐसे सैंकड़ों उदाहरण है दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन के कारावास की कोठरी में कथित तौर पर मालिश कराने का वीडियो राष्ट्र ने देखा है उत्तर प्रदेश के चर्चित नेता और माफिया मुख्तार अंसारी की पंजाब की कारावास में कांग्रेस पार्टी की गवर्नमेंट ने जो मेहमाननवाजी की उसे कौन भूल पाएगा

देशवासी भूले नहीं होंगे जब एक रसूखदार दामाद ने मैंगो पीपल कहकर आम आदमी का जिस तरह मजाक उड़ाया था, मुम्बई फिल्म इंडस्ट्री के एक गायक ने फुटपाथ पर सोने वाले बेघर लोगों को कुत्ते कहकर उसी अहंकार का परिचय दिया था किसी नेता या रसूखदार को जब जांच एजेंसी पकड़ती है तो वो विजय मुद्रा बनाकर हवा में हाथ लहराता है मानो उसने कोई महान काम किया है गिरफ्तारी के समय या जांच के लिए जाते समय नेताओं और रसूखदारों के हाव रेट ऐसे होते है मानो वो उपकार करने जा रहे हैं और उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया, उनको तो राजनीति के चलते फंसाया गया है जांच एजेंसी के आफिस के बाहर नेता के समर्थकों का धरना, प्रदर्शन अप्रत्यक्ष तौर पर जांच एजेंसी को डराने, धमकाने और प्रेशर डालने का कृत्य है

वहीं किसी रसूखदार को सजा मिलने पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं, वे स्तब्ध करने वाली होती हैं उनमें अपने विशिष्ट होने का अहंकार और कोर्ट की अवमानना के साथ-साथ संवेदनहीनता की पराकाष्ठा भी सुनाई पड़ती है स्वयं को कानून से ऊपर समझने वाले किसी रसूखदार ने यदि कोई गैर कानूनी काम किया है तो लेट लतीफ कानून उनके किए की सजा देगा ही, लेकिन उस उच्चवर्गीय अहंकार पर रोक लगाने की भी आवश्यकता है, जो अपने गलत कामों को ठीक सिद्ध करने के हठ में अमानवीय हो जाता है

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button