शिक्षक भर्ती घोटाले में CBI जांच रुकवाने गई ममता सरकार से CJI चंद्रचूड़ बोले…
नई दिल्ली: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की प्रतिनिधित्व वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ ने राज्य विद्यालय सेवा आयोग द्वारा लगभग 25,000 नियुक्तियों को रद्द करने के कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश के विरुद्ध अपील पर सुनवाई करते हुए आज पश्चिम बंगाल गवर्नमेंट से कड़े प्रश्न पूछे. आरंभ में, CJI ने बंगाल गवर्नमेंट से पूछा कि उसने अतिरिक्त पद क्यों बनाए और प्रतीक्षा सूची वाले उम्मीदवारों को नियुक्त क्यों किया, जबकि चयन प्रक्रिया को पहले ही न्यायालय में चुनौती दी गई थी.
कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश को ध्यान में रखते हुए, ममता बनर्जी गवर्नमेंट के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने पूछा कि क्या इस तरह के आदेश को कायम रखा जा सकता है. बंगाल गवर्नमेंट ने उच्चतम न्यायालय से बोला कि, “यह सीबीआई का भी मुद्दा नहीं है कि 25,000 नियुक्तियां गैरकानूनी हैं. शिक्षक-बाल अनुपात सब कुछ गड़बड़ा गया है.” वहीं, बंगाल विद्यालय सेवा आयोग की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने दलील दी कि हाई कोर्ट की पीठ के पास नौकरियां रद्द करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है और उसके आदेश इस मुद्दे में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के उल्टा हैं. जब CJI चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या OMR शीट और उत्तर पुस्तिकाओं की स्कैन की गई प्रतियां नष्ट कर दी गई हैं, तो उन्होंने हाँ में उत्तर दिया. CJI ने तब पूछा कि “इतने संवेदनशील मामले” के लिए निविदा क्यों नहीं जारी की गई ?
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि इन शीटों की डिजिटल प्रतियां रखना आयोग का कर्तव्य है. इस पर वकील गुप्ता ने उत्तर दिया कि यह उस एजेंसी के पास है, जिसे काम आउटसोर्स किया गया था. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कठोर लहजे में पूछा, “कहां? CBI को यह नहीं मिला. यह आउटसोर्स है, आपके पास नहीं है. क्या सुरक्षा प्रोटोकॉल का इससे बड़ा उल्लंघन हो सकता है? वे सिर्फ़ स्कैनिंग के लिए काम पर रखा गया था, लेकिन आपने उन्हें पूरा डेटा रखने दिया, आप यह नहीं कह सकते कि उन्होंने इसे छीन लिया, आप लोगों के डेटा को बनाए रखने के लिए उत्तरदायी हैं.“
मुख्य न्यायाधीश ने फिर पूछा कि क्या आयोग ने RTI आवेदकों को गलत कहा था कि उसके पास डेटा है. CJI ने बोला कि, “आपके पास कोई डेटा एकदम नहीं है.” इस पर वकील गुप्ता ने उत्तर दिया, “ऐसा हो सकता है.” जब उन्होंने पूछा कि क्या हाई कोर्ट के निर्देश निष्पक्ष थे, तो CJI ने उत्तर दिया, “लेकिन यह योजनाबद्ध फर्जीवाड़ा (Systematic Fraud) है. सरकारी नौकरियां आज बहुत दुर्लभ हैं और उन्हें सामाजिक गतिशीलता के रूप में देखा जाता है. यदि उनकी नियुक्तियों को भी बदनाम किया जाता है, तो फिर सिस्टम में क्या रह जाता है? ऐसे में तो लोगों का विश्वास उठ जाएगा, आप इसे कैसे स्वीकार करेंगे?”
आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने बोला कि हाई कोर्ट के निर्णय में आयोग की ओर से अनियमितताओं के बारे में कुछ भी नहीं है. हेगड़े ने उच्चतम न्यायालय में बोला कि, “अगर हम बीच में एक पूरा हिस्सा या पीढ़ी खो देते हैं, तो हम भविष्य के लिए वरिष्ठ प्रधानाध्यापकों और परीक्षकों को खो देंगे. मीलॉर्ड यह ध्यान में रखें कि उनमें से कई लोगों को कोई नोटिस नहीं मिला. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने बोला कि वह दोपहर के भोजन के लिए पीठ के उठने से पहले इस पर विचार करेंगे.
बता दें कि, उच्चतम न्यायालय ने पिछले सप्ताह उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें शिक्षक भर्ती घोटाले के सिलसिले में सीबीआई को बंगाल गवर्नमेंट के ऑफिसरों की जांच करने को बोला गया था. इसने 25,000 से अधिक शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को रद्द करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था. न्यायालय ने यह भी पूछा था कि क्या मौजूद सामग्री के आधार पर वैध और गैरकानूनी नियुक्तियों को अलग करना संभव है. राज्य गवर्नमेंट ने तर्क दिया है कि हाई कोर्ट ने नियुक्तियों को “मनमाने ढंग से” रद्द कर दिया है.
बंगाल गवर्नमेंट ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि उच्च न्यायालय ने पूरी चयन प्रक्रिया रद्द करने के गंभीर परिणामों को नहीं समझा। इसके कारण राज्य को स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त समय दिए बिना शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को तुरन्त बर्खास्त कर दिया गया. नतीजा यह हुआ कि शिक्षा प्रबंध ठप हो गयी. कोलकाता उच्च न्यायालय ने 22 अप्रैल के अपने आदेश में बोला है कि नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन हैं. न्यायालय ने बोला था कि उसने “इस भावुक याचिका पर गंभीरता से विचार किया” कि यदि पूरी चयन प्रक्रिया रद्द कर दी गई, तो कानूनी रूप से नियुक्तियां प्राप्त करने वाले व्यक्तियों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा, लेकिन न्यायालय ने यह भी बोला था कि उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा. अपने 282 पन्नों के निर्णय में, उच्च न्यायालय ने बोला था कि “ऐसी संदिग्ध प्रक्रिया” के माध्यम से चुने गए लोगों को बरकरार रखना सार्वजनिक भलाई के उल्टा होगा.