इस निरर्थक टिप्पणी पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने की कड़ी आपत्ति दर्ज
अपने को महाशक्ति समझने वाले कुछ राष्ट्र आदतन आदर्शों एवं सिद्धांतों की आड़ में दूसरे राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में बेमतलब टिप्पणी कर दबाव बनाने की प्रयास करते रहते हैं। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पर अमेरिका का आपत्तिजनक बयान ऐसा ही एक कोशिश है। हिंदुस्तान में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने बोला है कि सीएए को लेकर अमेरिका चिंतित है और इसके लागू होने की प्रक्रिया पर उसकी नजर है। उन्होंने यह भी जताने की प्रयास की है कि यह कानून सिद्धांतों से भटकाव है। इस निरर्थक टिप्पणी पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुनासिब ही कड़ी विरोध दर्ज की है और बोला है कि हमारे भी सिद्धांत हैं, जिनमें से एक सिद्धांत है विभाजन में पीछे छूट गये लोगों के प्रति दायित्व।
अमेरिका के साथ-साथ कुछ अन्य राष्ट्रों के ऐसे बयानों का उत्तर देते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने उन्हें याद दिलाया है कि हिंदुस्तान का त्रासद विभाजन हुआ था और उसके परिणामस्वरूप कई समस्याएं पैदा हुईं। सीएए ऐसी ही कुछ समस्याओं के निवारण का कोशिश है। विभाजन के समय हिंदुस्तान के नेताओं ने नये बने पाक के अल्पसंख्यक समुदायों से यह वादा किया था कि यदि उन्हें कोई कठिनाई होती है, तो हिंदुस्तान उनका स्वागत करेगा। लेकिन इस वादे पर अमल की कोई प्रयास नहीं हुई, जबकि पाक और उससे टूटकर बाद में बने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार, उनके दमन और उत्पीड़न का अंतहीन सिलसिला रहा। अफगानिस्तान में भी यही स्थिति रही।
इन राष्ट्रों में अल्पसंख्यकों की घटती संख्या और सत्ता में उनकी भागीदारी का अभाव उनके साथ उन राष्ट्रों के शासन और बहुसंख्यक समुदाय के दुर्व्यवहार का ठोस प्रमाण है। नागरिकता संशोधन कानून में यह प्रावधान किया गया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से शरणार्थी के रूप में 31 अगस्त 2014 तक हिंदुस्तान आये लोगों को नागरिकता देने की प्रक्रिया को गति दी जायेगी। इसमें कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि इन राष्ट्रों या दुनिया के दूसरे हिस्सों से आये लोगों द्वारा नागरिकता हासिल करने के आवेदन पर विचार नहीं होगा। इस कानून में या किसी अन्य नियमन में किसी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धार्मिक समुदाय का हो, की नागरिकता खत्म करने का भी कोई नियम नहीं बनाया गया है। जयशंकर ने मुनासिब ही रेखांकित किया है कि अमेरिका समेत अनेक पश्चिमी राष्ट्रों में विश्व युद्ध के बाद नागरिकता देने की प्रक्रिया की गति तेज की गयी थी। उन्होंने बोला कि इस तरह की कोशिशों से जो लोग वंचित रह गये, उनके प्रति हिंदुस्तान का एक नैतिक दायित्व है।