27 वर्षों से लंबित पड़े महिला आरक्षण विधेयक को मोदी कैबिनेट की मंजूरी
नई दिल्ली: 27 सालों से लंबित पड़े स्त्री आरक्षण विधेयक को मोदी कैबिनेट की स्वीकृति मिल चुकी है। सूत्रों ने यह जानकारी दी है, वहीं अब इसे संसद में पेश किए जाने की चर्चाएं तेज हो गई हैं। इसी बीच कांग्रेस पार्टी संसदीय दल प्रमुख सोनिया गांधी ने आज मंगलवार (19 सितंबर) को बोला है कि स्त्री आरक्षण विधेयक ”हमारा है”। कांग्रेस पार्टी ने सोमवार शाम को बोला था कि वह इस कथित कदम का स्वागत करती है, क्योंकि पार्टी लंबे समय से यह मांग उठाती रही है। बता दें कि, यह बिल स्त्रियों के लिए संसद और विधानसभाओं में 33 फीसद आरक्षण का प्रावधान करता है।
रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को जब सोनिया गांधी संसद में प्रवेश कर रही थीं, तो बिल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बोला कि, “यह हमारा है, अपना है।” एक दिन पहले ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में कांग्रेस पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने बोला कि, “हम केंद्रीय मंत्रिमंडल के कथित निर्णय का स्वागत करते हैं और विधेयक के विवरण का प्रतीक्षा करते हैं।” उन्होंने बोला कि, “विशेष सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में इस पर बहुत अच्छी तरह से चर्चा की जा सकती थी और गोपनीयता के पर्दे के अनुसार काम करने के बजाय आम सहमति बनाई जा सकती थी।” वहीं, वरिष्ठ कांग्रेस पार्टी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी। चिदंबरम ने बोला कि यदि गवर्नमेंट मंगलवार को स्त्री आरक्षण विधेयक पेश करती है, तो यह “कांग्रेस और UPA गवर्नमेंट में उसके सहयोगियों की जीत” होगी।
पहली बार कौन लाया था स्त्री आरक्षण बिल:-
महिला आरक्षण विधेयक पहली बार प्रधान मंत्री एच।डी। देवेगौड़ा की संयुक्त मोर्चा गवर्नमेंट के कार्यकाल के दौरान सितंबर 1996 में 81वें संशोधन विधेयक के रूप में लोकसभा में पेश किया गया था। इस विधेयक का उद्देश्य स्त्रियों के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं दोनों में एक तिहाई सीटें आरक्षित करना था। हालाँकि, यह सदन की स्वीकृति हासिल करने में विफल रहा और बाद में इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया।
समर्थक और विरोधी:
बिल को प्रारम्भ से ही भारी विरोध का सामना करना पड़ा। कुछ मुखर विरोधियों में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), जनता दल (यूनाइटेड) और सपा (एसपी) जैसे दल शामिल थे, जिन्होंने पिछड़े समूहों के लिए स्त्रियों के लिए 33 फीसदी कोटा के भीतर आरक्षण की मांग की थी। दूसरी ओर, विधेयक के समर्थकों ने तर्क दिया कि भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए सकारात्मक कार्रवाई जरूरी थी। उन्होंने कहा कि राजनीति में स्त्रियों का अगुवाई बहुत कम है, लोकसभा में 15 फीसदी से भी कम सीटों पर स्त्रियों का कब्जा है।
मार्ग के लिए प्रयास:
इन सालों में, विधेयक को कई बार पुनः प्रस्तुत किया गया लेकिन लगातार विरोध का सामना करना पड़ा। इसे 1998 में प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) गवर्नमेंट के दौरान वापस लाया गया था, लेकिन इसकी शुरूआत के दौरान एक RJD सांसद ने इसे टुकड़े-टुकड़े कर दिया था। इसके बाद 1999, 2002 और 2003 में कोशिश किए गए, लेकिन विधेयक पारित होने के लिए जरूरी समर्थन जुटाने में विफल रहा। भले ही कांग्रेस, बीजेपी और वाम दलों के भीतर इसका समर्थन था, फिर भी यह बहुमत वोट हासिल नहीं कर सका।
प्रगति और बाधाएँ:
2008 में, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) गवर्नमेंट के दौरान, विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया था और अंततः 9 मार्च, 2010 को 186-1 वोट के साथ पारित किया गया था। हालांकि, विधेयक को एक और झटका लगा। इसमें बाधा उत्पन्न हुई क्योंकि इसे लोकसभा में कभी विचार के लिए नहीं रखा गया और बाद में 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ यह खत्म हो गया। अब यह बिल मोदी गवर्नमेंट संसद में पेश करने जा रही है, जिसको लेकर सोनिया गांधी ने बोला है कि, ‘ये हमारा है’ यानी वे इसका पूरा श्रेय कांग्रेस पार्टी को दे रही हैं।