भारत-अफगानिस्तान के मधुर रिश्तों से पड़ोसी देश पाकिस्तान को लगी मिर्ची
विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव जेपी सिंह ने गुरुवार को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी से मुलाकात की है। सिंह के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल भी वहां गया है। इस दौरान दोनों राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंधों और आर्थिक योगदान को बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। जेपी सिंह विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव हैं और पाकिस्तान-अफगानिस्तान-ईरान विभाग के प्रभारी हैं।
अन्य राष्ट्रों की तरह हिंदुस्तान भी अफगानिस्तान में तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं देता है। बावजूद इसके दो वर्ष के अंदर तालिबान नेता के साथ जेपी सिंह और भारतीय दल की यह दूसरी और नवीनतम मुलाकात है। इससे पहले जून 2022 में भी सिंह ने काबुल में वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात की थी।
इस बैठक के बारे में विदेश मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। अगस्त 2021, यानी जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया है, तब से भारतीय राजनयिक अफगानिस्तानी पक्ष से दोहा जैसे स्थानों पर मुलाकात करते रहे हैं। इनमें से अधिकतर प्रयासों का नेतृत्व सिंह ने ही किया है, जो विदेश मंत्री के कार्यालय में संयुक्त सचिव भी हैं।
तालिबान के एक प्रवक्ता ने दावा किया है कि मुत्ताकी और सिंह की बैठक के दौरान अफगानिस्तान-भारत संबंधों, आर्थिक मामलों, इस्लामिक स्टेट से लड़ने और करप्शन से निपटने पर चर्चा की गई। इस दौरान अफगानिस्तान ने मानवीय सहायता के लिए हिंदुस्तान को धन्यवाद दिया है। तालिबानी विदेश मंत्री मुत्ताकी ने बोला कि तालिबान ‘संतुलित विदेश नीति’ के अनुसार क्षेत्र में हिंदुस्तान को एक अहम साझीदार के रूप में देखता है और हिंदुस्तान के साथ सियासी और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना चाहता है।
मुत्ताकी ने अफगान व्यवसायियों, चिकित्सा मरीजों और विद्यार्थियों को वीजा जारी करने की सुविधा देने करने के लिए जेपी सिंह को अधिकृत किया है। तालिबान के प्रवक्ता ने सिंह को कोट करते हुए बोला कि हिंदुस्तान अफगानिस्तान के साथ सियासी और आर्थिक योगदान बढ़ाने और ईरान के चाबहार बंदरगाह के माध्यम से व्यापार बढ़ाने में रुचि रखता है।
बता दें कि हिंदुस्तान ने हाल के महीनों में अफगानिस्तान को करीब 50,000 टन गेहूं, दवाएं, Covid-19 की वैक्सीन और अन्य राहत सामग्री की आपूर्ति की है। हालाँकि, हिंदुस्तान ने अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से पहले प्रारम्भ की गई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर फिर से काम प्रारम्भ नहीं किया है। 2021 में अशरफ गनी गवर्नमेंट के पतन से पहले, हिंदुस्तान ने अफगानिस्तान के लिए 3 अरब $ से अधिक की सहायता का वादा किया था लेकिन तालिबान शासन आने के बाद हिंदुस्तान ने उस सहायता को रोक दिया। हालांकि, पिछले महीने पेश 2024-25 के बजट में विदेशों के लिए आवंटित परिव्यय में अफगानिस्तान के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
टेंशन में क्यों पाकिस्तान
भारत-अफगानिस्तान के मधुर रिश्तों से पड़ोसी राष्ट्र पाक को मिर्ची लगनी तय है क्योंकि अफगानिस्तान और पाक के बीच संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। इन दोनों पड़ोसियों के बीच टकराव की एक प्रमुख वज़ह डूरंड लाइन है, जो पश्तून बहुल आदिवासी क्षेत्रों से होकर गुजरती है। पहले से ही दोनों राष्ट्रों के बीच जारी तनाव तब और बढ़ गया जब वर्ष 2021 के आकिरी हफ़्तों में पाकिस्तानी सेना ने अफगानी सीमा के अंदर 15 किलोमीटर तक चहार बुर्ज़क ज़िले तक जमीन हथिया कर बाड़ लगाने की प्रयास की थी, जिसे तालिबान ने असफल कर दिया था। इससे पहले नंगहर इलाक़े में भी ऐसी प्रयास हुई थी। अब जब हिंदुस्तान और अफागनिस्तान का तालिबान शासन करीब आ रहे हैं तो पाक की बौखलाहट बढ़नी लाजिमी है।