Pakistan News: भारत की मिट्टी में दफन नहीं होगा पाकिस्तानी मौलाना का शव
India Pakistan Hindi News: हिंदुस्तान में जन्मे एक पाकिस्तानी सूफी मौलाना की अस्थियों को हिंदुस्तान दफनाने की याचिका उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दी है। इस मौलाना की 2022 में बांग्लादेश में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर मांग की गई थी कि वह केंद्र गवर्नमेंट को बांग्लादेश से मौलाना हजरत शाह मुहम्मद अब्दुल मुक्तदिर शाह मसूद अहमद की अस्थियों को लाकर प्रयागराज में लाकर दफनाने का निर्देश जारी करे। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर आदेश जारी करने से इनकार कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ता को इस बात के लिए फटकार भी लगाई कि वह पाक नागरिक को किस अधिकार से हिंदुस्तान दफनाने की इजाजत मांग रहा है।
1992 में पाक की ले ली नागरिकता
सुप्रीम न्यायालय में दाखिल याचिका के अनुसार प्रयागराज के रहने वाले मौलाना हजरत शाह मुहम्मद अब्दुल मुक्तदिर शाह मसूद अहमद ने इस्लामिक राष्ट्र में गुजर- बसर की चाहत में 1992 में पाक की नागरिकता ले ली थी। इसके बाद वह वहीं बस गया था। लेकिन हिंदुस्तान से उनका नाता बना रहा। साल 2008 में प्रयागराज में उन्हें दरगाह हज़रत मुल्ला सैयद मोहम्मद शाह की दरगाह के सज्जादा नशीन के रूप में चुना गया। इसके बाद 2021 में उन्होंने एक वसीयत बनवाई, जिसमें उसने मरने के बाद अपनी शरीर को प्रयागराज की दरगाह में दफन करवाने की ख़्वाहिश जाहिर की।
बांग्लादेश में दफन अस्थि वापस लाने की मांग
कोर्ट में अर्जी देने वाले दरगाह के वकील ने बोला कि अहमद का पाक में कोई परिवार नहीं है। वकील ने यह भी दावा किया कि मौलाना हजरत शाह सूफी संत होने के साथ ही दरगाह के ‘सज्जादा नशीन’ थे। सूफी परंपरा में, सज्जादा नशीन एक सूफी संत का उत्तराधिकारी होता है, जो किसी मंदिर प्रमुख की तरह होता है। वकील ने न्यायालय से मांग की कि वे मौलाना की वसीयत देखते हुए उनकी अस्थियों को बांग्लादेश से लाकर हिंदुस्तान में दफन करने का आदेश दिया जाए।
सुप्रीम न्यायालय ने खारिज कर दी याचिका
इस मांग पर उच्चतम न्यायालय ने कड़ी नाराजगी जताई। न्यायालय ने बोला कि ‘वह एक पाकिस्तानी नागरिक था। आप कैसे आशा कर सकते हैं कि हिंदुस्तान गवर्नमेंट उसके अवशेषों को हिंदुस्तान में फिर से दफनाने के लिए लाएगी। आपको पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है, जिसमें इस तरह की मांग की जा सके। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा, ‘हमें कानूनी अधिकारों के सिद्धांतों के मुताबिक भी चलना होगा।‘ न्यायालय ने बोला कि यदि वह भारतीय नागरिक होता तो याचिका पर ध्यान दिया गया होता।
विदेशी की कब्र खुदवाने में कई तरह की दिक्कतें
कोर्ट ने बोला कि इस मुद्दे में कब्र खोदने से जुड़ी कई व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं। इस न्यायालय के लिए किसी विदेशी का पार्थिव शरीर हिंदुस्तान लाने का निर्देश देना ठीक नहीं होगा। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने यह याचिका खारिज कर दी।