हरियाणा के नायब सैनी पर लटकी तलवार, जानें क्या है पूरा मामला
Haryana सीएम News: नायब सिंह सैनी को हरियाणा का सीएम बनाए जाने का मुद्दा न्यायालय में पहुंच गया है। एक वकील ने अनेक वजहें गिनाते हुए सैनी की नियुक्ति को चुनौती दी है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में दाखिल जनहित याचिका में ‘लाभ के पद’ को भी आधार बनाया गया है। वकील की दलील है कि वैसे सैनी कुरुक्षेत्र से लोकसभा सांसद हैं, सीएम का पद उनके लिए ‘लाभ का पद’ है। संविधान के अनुच्छेद 102 (1) के अनुसार, कोई यदि ‘लाभ के पद’ पर है तो वह संसद की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाता है। न्यायालय ने केंद्र, हरियाणा गवर्नमेंट और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर उत्तर मांगा है। सैनी पहले ऐसे नेता नहीं जो सांसद रहते हुए मुख्यमंत्री बने। बंसी लाल ने हरियाणा का मुख्यमंत्री रहते हुए लोकसभा में वोट किया था। कांग्रेस पार्टी के गिरिधर गमांग का नाम ऐसे नेताओं में सबसे टॉप पर आता है क्योंकि उनके वोट से 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की गवर्नमेंट गिर गई थी। उस समय गमांग लोकसभा के सदस्य थे और ओडिशा के सीएम भी। आइए जानते हैं कि 1999 में किस तरह सांसद-सीएम रहे गमांग का वोट वाजपेयी गवर्नमेंट के गिरने की वजह बना।
गिरिधर गमांग के एक वोट से बदली सियासत
गिरिधर गमांग 1998 लोकसभा चुनाव में ओडिशा की कोरापुट सीट से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए थे। अगले साल, फरवरी 1999 में कांग्रेस पार्टी ने उन्हें ओडिशा का सीएम बनाया। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी गमांग ने लोकसभा से त्याग-पत्र नहीं दिया था। दो महीने बाद, लोकसभा में अटल बिहारी वाजपेयी गवर्नमेंट के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव आया। गमांग उस प्रस्ताव के विरुद्ध वोट डालने संसद पहुंचे। तब लोकसभा में खूब बहस हुई कि गमांग को वोट डालने दिया जाए या नहीं। उस बहस से हम आपको आगे रूबरू कराएंगे। अभी यह जानिए कि वाजपेयी गवर्नमेंट को 269 सदस्यों का समर्थन था। गमांग ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाला। उनके वोट को मिलाकर अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में 270 वोट पड़े और वाजपेयी गवर्नमेंट को जाना पड़ा। यदि गमांग का वोट नहीं पड़ा होता तो शायद लोकसभा स्पीकर जीएमसी बालयोगी अपने वोट के जरिए गवर्नमेंट बचा लेते।
एक वोट के लिए दी गई कैसी-कैसी दलीलें
द टेलीग्राफ की 1999 की रिपोर्ट बताती है कि गमांग के वोट डालने को लेकर लोकसभा में खूब हंगामा हुआ था। भाजपा ने गमांग के अविश्वास प्रस्ताव में मतदान के अधिकार पर प्रश्न उठाए तो विपक्ष ने कई कानूनी प्रावधान गिनाए। संसदीय मामलों के मंत्री के विरोध जताने के बाद, लालकृष्ण आडवाणी उठ खड़े हुए। उन्होंने सदन के रिकॉर्ड्स का हवाला देते हुए बोला कि दो बार ऐसा हुआ है कि जब राज्य में कोई ऑफिस संभाल रहे सदस्य को लोकसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने नहीं दिया गया। उन्होंने सिद्धार्थ शंकर रे का नाम लिया जिन्हें पश्चिम बंगाल का सीएम बनने के बाद सदन में बोलने से रोक दिया गया था। मुरली मनोहर जोशी ने अनुच्छेद 102 (1) का हवाला दिया। जोशी ने बोला कि सीएम बनने के बाद गमांग ‘लाभ के पद’ का आनंद ले रहे हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे पी। शिवशंकर भी बहस में कूद पड़े। उनकी दलील थी कि गमांग यदि ओडिशा विधानसभा के सदस्य चुने जा चुके होते, तब अयोग्य हो जाते। लेकिन गमांग ने बस मुख्यमंत्री का पद संभाला था और राज्य के किसी सदन के लिए नहीं चुने गए थे। ऐसे में उनके पास लोकसभा सदस्य के सभी अधिकार थे। उन्होंने अनुच्छेद 101 का हवाला दिया और बंसी लाल का नाम लिया। स्पीकर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद बोला कि गमांग अपनी अंतरात्मा की सुनें और उसके हिसाब से जो ठीक लगे, वो करें। गमांग ने अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में वोट डाला और वाजपेयी गवर्नमेंट गिर गई
43 वर्ष तक कांग्रेस पार्टी में रहने के बाद, 2015 में गिरिधर गमांग भाजपा में शामिल हो गए थे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2017 में Coalition Years 1996–2012 नाम से पुस्तक लिखी। इसमें गमांग प्रकरण का भी जिक्र था। प्रणब ने गमांग की उस दलील से सहमति जताई कि दल-बदल कानून के तहत, वह कुछ और नहीं कर सकते थे। उनके मुताबिक, जो वोट अर्थ रखता था वह सैफुद्दीन सोज का था, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के विरुद्ध जाते हुए वाजपेयी गवर्नमेंट के विरुद्ध वोट किया था।
2023 में गिरिधर गमांग ने भाजपा को अलविदा कहते हुए केसीआर की हिंदुस्तान देश समिति (BRS) से नाता जोड़ा। यह रिश्ता भी लंबा नहीं चल पाया। इसी वर्ष जनवरी में उन्होंने कांग्रेस पार्टी में वापसी की है।