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मणिपुर में आठ महीने तक चली जातीय अशांति ने सत्तारूढ़ भाजपा को दिया झटका

इंफाल. मणिपुर में गैर-आदिवासी मैतेई और कुकी-ज़ो आदिवासियों के बीच जातीय अत्याचार 7 नवंबर के मिजोरम विधानसभा चुनावों में प्रमुख मुद्दों में से एक थी. जातीय शत्रुताएं तथा उनसे जुड़े सियासी पहलू निश्चित रूप से 2024 के लोकसभा चुनावों में न सिर्फ़ पूर्वोत्तर राज्यों, बल्कि पूरे राष्ट्र में प्रमुख विषय होंगे.

मणिपुर में आठ महीने तक चली जातीय अशांति ने सत्तारूढ़ बीजेपी को तब झटका दिया, जब उसके सात विधायकों के साथ-साथ एक अन्य पार्टी के तीन अन्य विधायकों ने न सिर्फ़ आदिवासियों के लिए ‘अलग प्रशासन’ की मांग की बल्कि उन्होंने बार-बार सीएम एन. बीरेन सिंह से पद छोड़ने के लिए बोला और मौजूदा अशांति के लिए बीजेपी नेताओं की निंदा की.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, केंद्र और राज्य के बीजेपी नेताओं और सीएम ने कई मौकों पर दस विधायकों और इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) और कुकी इंपी मणिपुर (केआईएम) सहित विभिन्न आदिवासी दलों की ‘अलग प्रशासन’ की मांग को खारिज कर दिया.

कांग्रेस के नेतृत्व में सभी विपक्षी दलों ने भी मणिपुर अत्याचार पर खामोशी के लिए पीएम मोदी की कड़ी निंदा की. लंबे समय तक चले जातीय रक्तपात को एक प्रमुख राष्ट्रीय मामला बनाते हुए, विपक्षी दलों ने भी इस मामले के “गलत ढंग से निपटने” के लिए अमित शाह की निंदा की.

विधानसभा चुनाव प्रचार के लिए 30 अक्टूबर को मिजोरम जाने वाले प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी यात्रा रद्द कर दी थी, और बीजेपी ने बोला था कि गृह मंत्री पार्टी उम्मीदवारों के लिए प्रचार करेंगे, लेकिन उन्होंने चुनाव से पहले ईसाई बहुल राज्य का दौरा भी नहीं किया.

पीएम मोदी की यात्रा रद्द होने पर टिप्पणी करते हुए कांग्रेस पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने बोला था कि मणिपुर अत्याचार पर खामोशी के कारण पीएम ने अपनी मिजोरम चुनाव रैली रद्द कर दी.

रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में बोला था, ”प्रधानमंत्री को 30 अक्टूबर को मिजोरम में एक चुनावी रैली को संबोधित करना था. लेकिन, अब खबरें हैं कि उन्होंने अपना दौरा रद्द कर दिया है. क्या ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि प्रश्न उठाए जाएंगे कि उन्हें संकट वाले पड़ोसी राज्य का दौरा करने का समय नहीं मिला. मिजोरम की रैली में वह किस मुंह से जाएंगे?”

मणिपुर में कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में समान विचारधारा वाले दस दलों ने रैलियां और कई अन्य आंदोलनकारी कार्यक्रम आयोजित किए और राज्य के गवर्नर अनुसुइया उइके को ज्ञापन सौंपा था. साथ ही दावा किया था कि केंद्र और राज्य सरकारों ने जातीय समूहों के बीच संघर्ष के संकट में हस्तक्षेप न करने का रास्ता चुना है.

मणिपुर के तीन बार के पूर्व सीएम ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में दस दलों के नेताओं ने गवर्नर से बोला था कि मणिपुर में कई महीनों से चल रहे संकट के बावजूद, हितधारकों के साथ कोई सार्थक शांति वार्ता नजर नहीं आ रही है.

दस पार्टियां, जिनमें आम आदमी पार्टी, टीएमसी, सीपीआई (एम), सीपीआई, फॉरवर्ड ब्लॉक, आरएसपी, शिव सेना-यूबीटी, जनता दल-यूनाइटेड और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पार्टी भी शामिल हैं. इन्होंने मांग की कि गवर्नमेंट संकट के सौहार्दपूर्ण निवारण के लिए सभी हितधारकों से बात करे और स्थायी शांति लाए.

मणिपुर में लगभग आठ महीने पहले अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में राज्य के पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद जातीय अत्याचार भड़क उठी थी.

गैर-आदिवासी मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय दंगे में अब तक 182 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, कई सौ लोग घायल हैं और दोनों समुदायों के 70,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर की जनसंख्या में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी- नागा और कुकी- जनसंख्या का अन्य 40 फीसदी हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों में से 19 सीटें नागा, कुकी-ज़ो-ज़ोमी समुदायों के आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. बाकी, 41 सीटें ज्यादातर मैतेई बहुल घाटी इलाकों में हैं.

मणिपुर अब पहाड़ियों, जहां आदिवासी रहते हैं और घाटी जहां मैतेई रहते हैं, के बीच विभाजित है, सत्तारूढ़ बीजेपी को 2024 के संसदीय चुनावों में एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है.

 

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