किसानों के लिए 365 दिन खुला रहता है ये केंद्र
सरकार द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। वहीं किसान अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम से अपनी आय को दोगुना कर रहे हैं। इतना हीं नहीं, पलामू में स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से आधुनिक कृषि की विधि सीख कर फसल उत्पादन भी बढ़ा रहे हैं। बता दें कि केंद्र में किसान कृषि की नयी तकनीक सीखकर अच्छा फायदा कमा रहे हैं।
बीते दिनों पलामू और लातेहार के करीब 100 से अधिक किसानों को क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र का भ्रमण कराया गया, जहां किसानों ने ऑर्गेनिक खेती, कृषि के कई तकनीक, फलदार वृक्षों की तकनीक, केंचुआ खाद, खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ाने समेत कई चीजों को देखा। यह केंद्र पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर से 2 किलोमीटर दूर रांची रोड, चियांकी में स्थित है। वैज्ञानिक प्रमोद कुमार ने कहा कि यह फार्म करीब 120 एकड़ में फैला है, जो किसानों के लिए 365 दिन खुला रहता है।
साल के 365 दिन रहता है खुला
वैज्ञानिक ने आगे कहा कि इस अनुसंधान केंद्र में रबी, खरीफ और जायद फसल, फलदार वृक्ष और सब्जी पर अनुसंधान होता है। केंद्र में आने वाले जिला पलामू, गढ़वा, लातेहार, गुमला, सिमडेगा के किसानों की परेशानी और उनके निवारण पर कार्य करता है। यहां किसानों को पारंपरिक खेती के अतिरिक्त आधुनिक और ऑर्गेनिक खेती के बारे में कहा जाता है, जिससे किसान मुनाफे को डबल कर सकते हैं। इसके अलावा, यहां बीज भी बनाया जाता है। धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, चना और अन्य फसल के बीज तैयार की जाती है। किसानों को मुनासिब मूल्य पर मौजूद कराए जाते हैं। यहां नर्सरी भी है, जहां से किसान फलदार वृक्ष के पौधे मुनासिब मूल्य पर खरीद सकते हैं। उसके प्रबंधन की तकनीक निःशुल्क सीख सकते हैं।
कमा सकते हैं दो लाख प्रति एकड़
वैज्ञानिक ने कहा कि यहां गरमा सेब के भी बागान हैं। इसके अतिरिक्त संतरा, अमरूद और विभिन्न प्रकार की फसल गुणवत्ता में अव्वल है। जहां से किसान फलदार वृक्ष और सब्जी के अच्छे-अच्छे प्रभेद के बारे में जानकारी ले सकते हैं। सब्जी की खेती कर वर्ष में दो लाख प्रति एकड़ कमा भी सकते हैं। पटवन के लिए किसान टपक सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे किसानों को पानी की खपत 50% तक कम हो सकेगी। इसके लिए गवर्नमेंट द्वारा किसानों को 90% तक का आर्थिक सहायता मिलता है।
किसान को हो रहा दोगुना लाभ
उंटारी रोड से आए किसान शंकर मेहता बताते हैं कि वह 15 सालों से कृषि कार्य से जुड़े हैं। 13 साल से पारंपरिक खेती करते आ रहे थे, जिसमें उन्हें अच्छा फायदा नहीं हो पा रहा था। मगर क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से खेती की नयी तकनीक सीख धान की खेती श्री विधि से की, जिसमें उन्हें सामान्य से दोगुना फायदा हुआ। अबकी बार उन्हें यहां रासायनिक खाद के बजाय केंचुआ खाद के प्रयोग करने के बारे में कहा गया, जो पूरी तरह ऑर्गेनिक खाद है। इससे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है और उत्पादन भी बढ़ता है