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सहनशीलता, समायोजन और सम्मान एक अच्छे विवाह की नींव हैं : सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को बोला कि सहनशीलता, समायोजन और सम्मान एक अच्छे शादी की नींव हैं तथा छोटे-मोटे झगड़े और छोटे-मोटे मतभेद साधारण मुद्दे होते हैं जिन्हें इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश नहीं किया जाना चाहिए कि इससे वह चीज नष्ट हो जाए जिसके बारे में बोला जाता है कि वह स्वर्ग में बनती है. कोर्ट ने यह बात एक स्त्री द्वारा पति के विरुद्ध दाखिल किए गए दहेज उत्पीड़न के मुद्दे को रद्द करते हुए कही.

कोर्ट ने बोला कि कई बार विवाहित स्त्री के माता-पिता एवं करीबी सम्बन्धी बात का बतंगड़ बना देते हैं और स्थिति को संभालने तथा विवाह को बचाने के बजाय उनके कदम छोटी-छोटी बातों पर वैवाहिक बंधन को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं. जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने बोला कि महिला, उसके माता-पिता और संबंधियों के दिमाग में सबसे पहली चीज पुलिस की आती है जैसे कि पुलिस सभी बुराइयों का रामबाण उपचार हो. पीठ ने बोला कि मुद्दा पुलिस तक पहुंचते ही दंपती के बीच सुलह के मुनासिब अवसर नष्ट हो जाते हैं.

शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘पति-पत्नी अपने दिल में इतना ज़हर लेकर लड़ते हैं कि वे एक पल के लिए भी नहीं सोचते कि यदि विवाह टूट जाएगी, तो उनके बच्चों पर क्या असर होगा.’ इसने कहा, ‘हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसका एकमात्र कारण यह है कि पूरे मुद्दे को ठंडे दिमाग से संभालने के बजाय, आपराधिक कार्यवाही प्रारम्भ करने से एक-दूसरे के लिए नफरत के अतिरिक्त कुछ और नहीं मिलेगा. पति और उसके परिवार द्वारा पत्नी के साथ असली दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के मुद्दे हो सकते हैं. इस तरह के दुर्व्यवहार या उत्पीड़न का स्तर भिन्न-भिन्न हो सकता है.’ शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए की जिसमें आपराधिक मुद्दे को रद्द करने के पति के आग्रह को खारिज कर दिया गया था. पत्नी द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी के अनुसार, आदमी और उसके परिवार के सदस्यों ने कथित तौर पर दहेज की मांग की तथा उसे मानसिक एवं शारीरिक तौर पर आघात पहुंचाया.

प्राथमिकी में बोला गया कि स्त्री के परिवार ने उसकी विवाह के समय एक बड़ी धनराशि खर्च की थी और पति तथा उसके परिवार को काफी धन दिया था. हालांकि, विवाह के कुछ समय बाद पति और उसके परिवार ने उसे इस झूठे बहाने से परेशान करना प्रारम्भ कर दिया कि वह एक पत्नी और बहू के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल है. उन्होंने उस पर अधिक दहेज के लिए भी दबाव डाला. पीठ ने बोला कि प्राथमिकी और आरोपपत्र को पढ़ने से पता चलता है कि स्त्री द्वारा लगाए गए इल्जाम काफी अस्पष्ट हैं.

न्यायालय ने बोला कि वैवाहिक विवादों में पुलिस तंत्र का सहारा आखिरी तरीका के रूप में लिया जाना चाहिए. इसने कहा, ‘सभी मामलों में, जहां पत्नी उत्पीड़न या दुर्व्यवहार की कम्पलेन करती है, भादंसं की धारा 498ए को यांत्रिक रूप से लागू नहीं किया जा सकता. दंपती के बीच रोजमर्रा की शादीशुदा जीवन में हल्की गुस्सा और हल्की झगड़े भी क्रूरता की श्रेणी में नहीं आ सकते.

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