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क्यों बार-बार राजस्थान आ रहे चीते, एक्सपट्‌र्स बोले…

मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में अफ्रीकी राष्ट्रों से सितंबर-2022 में लाए गए चीतों में से कुछ अब राजस्थान में भी बसाए जा सकते हैं.

इस बात की पूरी आसार है कि 4 जून के बाद चुनाव आचार संहिता समाप्त होने पर राजस्थान का वन विभाग इस बारे में केन्द्र गवर्नमेंट और मध्य प्रदेश गवर्नमेंट को प्रस्ताव भेजेगा.

पिछले कुछ दिनों में कूनो (मध्य प्रदेश) से चलकर चीते राजस्थान की सीमा में प्रवेश कर चुके हैं. एक चीता लगभग 70-80 किलोमीटर दूर बारां जिले और एक करीब 100-110 किलोमीटर दूर करौली के जंगलों तक आया है.

एक्सपट्‌र्स का बोलना है कि इन दिनों चीतों द्वारा स्वयं की टेरेटेरी (इलाका) ढूंढने की प्रयास की जा रही है. अप्रैल में कूनो से एक चीता झांसी (उत्तर प्रदेश) तक पहुंच गया था. वहीं एक चीता मध्य प्रदेश के ही दूसरे जिले मुरैना तक पहुंच गया था.

कूनो से बाहर चीतों के इस मूवमेंट काे एक्सपट्‌र्स शुभ संकेत के रूप में देख रहे हैं.

चीतों के लिए राजस्थान के जंगल कितने सुरक्षित

एक्सपट्‌र्स का बोलना है कि मध्य प्रदेश के कूनो से निकलकर बारां और करौली के जंगलों तक का यात्रा चीता एक-दो दिन में तो कर नहीं सकता.

कुछ जगहों पर शिकार भी किया होगा, पानी भी पीया होगा. नदी-नालों, पहाड़ों, खेतों, खदानों, जंगलों को पार भी किया होगा.

ऐसे में वन्य जीव जानकार यह मान रहे हैं कि चीतों के लिए राजस्थान के जंगल फ्रेंडली हैं. इस बीच टाइगर, पैंथर, जंगली सूअर, भेड़िया, लकड़बग्घा, मगरमच्छ आदि वन्य जीवों से भी उनका कोई विवाद नहीं हुआ.

एक्सपट्‌र्स का बोलना है कि कूनो से 100-110 किलोमीटर तक मूव कर पा रहे हैं तो यह उनका स्वाभाविक क्षेत्र हो गया है. वे इससे परिचित हो गए हैं. झांसी से बारां, कूनो, श्योपुर, करौली, मुरैना के बीच के इस पूरे क्षेत्र में उनका मूवमेंट यह बता रहा है कि वे अब अधिक दिन कूनो के एक तयशुदा क्षेत्र में नहीं रहेंगे.

चीतों के मूवमेंट पर है विभाग की नजर

राजस्थान के वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक पवन उपाध्याय ने मीडिया को कहा कि अभी चुनाव आचार संहिता लगी हुई है. इस संबंध में अधिक बात नहीं की जा सकती है.

हालांकि चीतों के राजस्थान की तरफ हुए मूवमेंट पर विभाग की नजर है. इस संबंध में आचार संहिता हटने के बाद ही कुछ कदम बढ़ाना संभव है. चीतों के सन्दर्भ में केन्द्र गवर्नमेंट के स्तर पर स्टीयरिंग कमेटी भी बनी हुई है. उसका निर्णय ही आखिरी होगा.

करौली आए चीते को वन विभाग के कर्मचारी और जानकार ट्रैंकुलाइज कर वापस कूनो ले गए थे.

क्यों आ रहे हैं राजस्थान की तरफ चीते

कूनो के जंगलों में पीएम पीएम नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के अनुसार नामीबिया से 12 चीते लाए गए थे. उन्हें एक बड़े एनक्लोजर (बाड़े) में रखा गया था.

इस बीच चीतों के बीच प्रजनन भी हुआ. करीब 8-10 चीतों और शावकों की मौत भी इस दौरान हुई. अंतत: चीतों की संख्या बढ़कर अब 27 हो चुकी है.

इनमें पांच-छह चीते तो वे हैं, जिनका जन्म ही हिंदुस्तान में हुआ और वे अब एक से डेढ़ साल के हो चुके हैं. चीतों को रहने, खाने-पीने और जीने के लिए औसतन अधिक बड़ा क्षेत्र चाहिए.

वन्यजीव जानकारों के अनुसार, एक चीते के लिए करीब 100 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र चाहिए होता है. कूनो के जंगलों का क्षेत्र 748 वर्ग किलोमीटर मुख्य जोन में है. 487 बफर जोन में है.

यह दोनों क्षेत्र जोड़कर भी करीब 1200 वर्ग किलोमीटर होते हैं, जबकि 26 चीतों के लिए लगभग 2600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का जंगल चाहिए.

ऐसे में जो चीते जवान हैं, वे अपना नया क्षेत्र तलाश रहे हैं, जिसे वे अपनी स्वयं की टेरेटेरी बना सकें. अभी तक 4 चीतों का कूनो से निकलकर झांसी, मुरैना, करौली और बारां तक मूवमेंट बना है. यह तय है कि जल्द ही कुछ और चीते भी कूनो की सरहदों से दूर निकलेंगे.

जयपुर, बूंदी, अलवर, सवाईमाधोपुर, कोटा तक आ सकते हैं चीते

जिस तरह से कूनो से करौली और बारां तक चीतों का मूवमेंट हुआ है, उससे यह भी संभव है कि निकट भविष्य में जयपुर, बूंदी, अलवर या सवाईमाधोपुर के जंगलों तक चीते आ सकते हैं.

जयपुर का रामगढ़, अलवर का सरिस्का, बूंदी का विषधारी, कोटा का मुकुंदरा और सवाईमाधोपुर का रणथम्भौर जंगल अरावली और विंध्य के पहाड़ों के मिलन स्थल हैं.

कूनों से सटा हुआ क्षेत्र है करौली, धौलपुर, बारां का इलाका. इन्हीं इलाकों से सटे हुए हैं अलवर, जयपुर, कोटा, सवाईमाधोपुर, बूंदी के जंगल. ऐसे में चीतों का मूवमेंट यहां तक होना भी संभव है.

सितंबर-2022 में नामीबिया से चीते लाए गए थे. तब प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं कूनो पहुंचे थे.

वन मंत्री ने मांग की थी- चीतों को राजस्थान में बसाया जाए

राजस्थान में दिसंबर-2023 में बीजेपी गवर्नमेंट का गठन हुआ तो वन मंत्री बने संजय शर्मा. शर्मा तब दिल्ली में केन्द्रीय वन मंत्री भूपेन्द्र यादव से शिष्टाचार भेंट करने गए थे.

इस दौरान शर्मा ने यादव से मांग की थी कि मध्य प्रदेश से कुछ चीतों को राजस्थान में बसाया जाए. उसके बाद वन विभाग ने कुछ कवायद भी इस संबंध में प्रारम्भ की थी. तभी चुनाव आचार संहिता लागू हो गई. इस बीच केन्द्रीय वन मंत्री भूपेन्द्र यादव को बीजेपी ने अलवर से ही सांसद के रूप में टिकट दे दिया.

राजस्थान के जंगलों में दो जगहों बारां के शाहबाद और जैसलमेर के बल्ज को चीतों के लिए मुफीद माना जाता रहा है.

चीतों को चाहिए घास के मैदानों वाले जंगल

चीते उन्हीं जंगलों में फले-फूले हैं, जहां घास के मैदान वाले जंगल हों. ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी जंगलों में चीतों के बजाए टाइगर (बाघ) और पैंथर (बघेरा) अधिक पनपते हैं.

भारत में चीतों के लिए कूनो के जंगलों का चुनाव इसी खूबी के चलते हुआ था, क्योंकि वहां अफ्रीका की तर्ज पर घास के मैदानों वाले जंगल हैं.

कूनो जैसे क्षेत्र ही पूर्वी राजस्थान के करौली, बारां, धौलपुर, कोटा, सवाईमाधोपुर आदि में भी हैं. ऐसे में चीतों का इस ओर स्वाभाविक और सुरक्षित मूवमेंट हो सका है.

कूनो से लेकर जयपुर-कोटा तक जंगलों में पानी के स्त्रोत, शिकार (हिरण, सूअर, खरगोश, नील गाय, मोर आदि) भी एक जैसे हैं. इस पूरे भू-भाग पर मध्य प्रदेश और राजस्थान के बीच तापमान भी हर महीने में लगभग एक सा ही रहता है.

कुछ बाधाएं भी आएंगी राजस्थान में

चीतों के यहां आने पर कुछ बाधाएं भी आएंगी. चीतों के सबसे बड़े दुश्मन होते हैं टाइगर और पैंथर. यह दोनों ही इस पूरे क्षेत्र में बहुतायत में हैं. जहां भी यह दोनों जीव अधिक होते हैं, वहां चीतों का जीवित बचना सरल नहीं होता.

हालांकि वन्य जीव जानकारों का मानना है कि जंगल का वास्तविक जीवन ऐसा ही होता है. हर जीव पर कोई न कोई जीव भारी पड़ता ही. सब पर भारी कोई एक जीव नहीं होता. शेर और बाघ को बचपन में पैंथर, सियार, भेड़िया, सांप आदि से खतरा रहता ही है.

  • अफ्रीका के मसाईमारा जंगलों में दो बार चीतों के वीडियो शूट करने वाले वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर सुरेन्द्र सिंह चौहान (जयपुर) कहते हैं- चीते मूलत: अफ्रीका के मैदानी जंगलों के जीव हैं. कूनो उनके लिए मुफीद, लेकिन छोटा जंगल है. वे करौली और बारां तक आए हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं है कि वे कल को जयपुर, बूंदी, सवाईमाधोपुर में देखे जाएं. सरकारों को उनकी बढ़ती संख्या को देखते हुए शिफ्टिंग की योजना तो बनानी ही होगी.
  • चंबल रेस्क्यू फोर्स (कोटा-बारां) के वन्यजीव जानकार बनवारी यदुवंशी और रिसर्चर उर्वशी शर्मा कहते हैं कि यदि कोई चीता कूनो से चलकर बारां और दूसरा चीता करौली तक आया है, तो यही तो प्राकृतिक रास्ता है, जिससे जंगल फलते-फूलते हैं. वन विभाग को उसे ट्रैंकुलाइज करके (बेहोश) वापस नहीं ले जाना चाहिए था. वो स्वाभाविक रूप से इन्हीं इलाकों में बसता. यह ह्यूमन इंटरफेरेंस (मानवीय दखल) ठीक नहीं है.
  • वन्यजीव जानकार (रणथम्भौर) डाक्टर धर्मेन्द्र खांडल का बोलना है कि राजस्थान की ओर चीतों का आना एक स्वाभाविक घटना है. हालांकि राजस्थान में उनके सर्वाइव करने की कितनी संभावनाएं हैं इस पर अभी कुछ बोलना जल्दबाजी होगा. ऐसे में केन्द्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश आदि सरकारों को चीतों के इस मूवमेंट पर रिसर्च करवानी चाहिए.

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