Dommaraju Gukesh: जानें गुकेश के यहां तक पहुंचने के पीछे के कड़े संघर्ष की कहानी के बारे में…
D Gukesh Sucess Story: 17 साल, एक ऐसी उम्र जिसमें ज्यादातर बच्चे अपने करियर को दिशा दे रहे होते हैं। इस उम्र में हिंदुस्तान के ग्रैंडमास्टर डी गुकेश ने इतिहास रचकर दुनिया में अपना लोहा मनवाया है। वह कैंडिडेट्स चेस टूर्नामेंट जीतने वाले दुनिया के सबसे युवा खिलाड़ी बन गए हैं। उनके इस बड़े मुकाम के पीछे एक या दो दिन की मेहनत नहीं, बल्कि बचपन से चेस के प्रति उनकी लगन और सरेंडर है। केवल गुकेश ही नहीं, उनके माता-पिता ने भी बेटे को कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ाने में त्याग और बलिदान दिया है। पिता ने तो अपनी जॉब की दांव पर लगा और मां ने घर चलाने के लिए क्या नहीं किया। आइए जानते हैं, गुकेश के यहां तक पहुंचने के पीछे के कड़े संघर्ष की कहानी के बारे में।
जब मां को आया फोन
माइक्रोबायोलॉजिस्ट पदमा कुमारी (गुकेश की मां) ने सोमवार शाम को जब टेलीफोन उठाया तो उनकी आवाज भावनाओं से भरी हुई थी। शायद टोरंटो में कैंडिडेट्स चेस टूर्नामेंट में उनके बेटे डी गुकेश की ऐतिहासिक जीत ही भावनाएं अब भी हावी थी। जब चार वर्ष पहले कोविड-19 वायरस का विशाल प्रकोप था, तब पदमा ने धैर्य दिखाया और शहर के एक हॉस्पिटल में नियमित रूप से बीमार मरीजों की टेस्ट रिपोर्ट की जांच की, जिससे उनके ग्रैंडमास्टर बेटे गुकेश बहुत चिंतित हो गए थे। चेस में अपने संयम के लिए पहचाने जाने वाले गुकेश कठिन समय में अपनी मां के काम करने के ढंग से दंग रह जाते थे, लेकिन सोमवार (22 अप्रैल) अलग दिन था, क्योंकि 17 वर्षीय गुकेश वर्ल्ड खिताब के लिए चुनौती देने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने और उन्हें महान गैरी कास्परोव के 40 वर्ष पहले बनाए गए रिकॉर्ड को तोड़ दिया।
यह जीत सपनों में से एक…
बेटे की इस बड़ी उपलब्धि पर भावुक पदमा (मां) ने बताया, ‘वह वर्ल्ड चैंपियनशिप का प्रतीक्षा कर रहा होगा। यह चेस के सबसे बड़े टूर्नामेंटों में से एक है, लेकिन हम बहुत आगे के बारे में नहीं सोच रहे हैं, क्योंकि हम अभी इस जीत का उत्सव मनाएंगे। हमें पहले इसे ध्यान में रखना होगा।‘ उन्होंने आगे कहा, ‘उसके प्रदर्शन और उपलब्धि से बहुत खुशी महसूस हो रही है। यह उसके द्वारा की गई कड़ी मेहनत का एक उदाहरण है। कैंडिडेट्स को जीतना उसके सपनों में से एक था और यह बहुत बढ़िया अहसास है।‘ बता दें कि तमिलनाडु ने विश्वनाथन आनंद, आर प्रज्ञानानंदा और अरविंद चिदंबरम जैसे वर्ल्ड क्लास ग्रैंडमास्टर्स राष्ट्र को दिए हैं, लेकिन यह 2013 में मैग्नस कार्लसन के विरुद्ध आनंद का वर्ल्ड चैंपियनशिप मुकाबला था, जिसने गुकेश को इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित किया।
वर्ल्ड चैंपियन को चुनौती
गुकेश ने 14वें और अंतिम दौर में अमेरिका के हिकारू नकामूरा से ड्रॉ खेला। वर्ल्ड चैम्पियन के चैलेंजर का निर्धारण करने वाले इस टूर्नामेंट में उनके 14 में से नौ अंक रहे। वह वर्ष के आखिर में मौजूदा वर्ल्ड चैम्पियन चीन के डिंग लिरेन को चुनौती देंगे। चेन्नई के रहने वाले गुकेश ने कास्पोरोव का रिकॉर्ड भी तोड़ा। कास्पोरोव 1984 में 22 वर्ष के थे, जब उन्होंने रूस के ही अनातोली कारपोव को वर्ल्ड चैम्पियनशिप खिताब के लिये चुनौती दी थी। गुकेश ने जीत के बाद कहा, ‘बहुत राहत महसूस कर रहा हूं। मैं फेबियानो कारूआना और इयान नेपाम्नियाश्चि के बीच मैच देख रहा था। इसके बाद टहलने चला गया, जिससे सहायता मिली।‘ गुकेश को 88500 यूरो (78.5 लाख रूपये) ईनाम के तौर पर भी मिले। इस टूर्नामेंट की कुल ईनामी राशि पांच लाख यूरो है। गुकेश यह मेगा टूर्नामेंट जीतने वाले विश्वनाथन आनंद के बाद दूसरे भारतीय बन गए। पांच बार के वर्ल्ड चैम्पियन आनंद ने 2014 में खिताब जीता था।
सिर्फ 7 वर्ष के थे गुकेश
मां पदमा ने याद करते हुए कहा, ‘जब वह सात वर्ष का था तो उसने परिवार के कुछ सदस्यों को खेलते हुए देखकर यह खेल खेलना प्रारम्भ किया। उसी वर्ष उसने विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन के बीच वर्ल्ड चैंपियनशिप प्रतियोगिता देखी और तभी वह विशी को देखकर इसे खेलने के लिए प्रेरित हुआ।‘ मां ने आगे बताया, ‘यह खेल जल्द ही उनका जुनून बन गया और हमने उसे इसे जारी रखने की अनुमति दी। यह एक अच्छा फैसला साबित हुआ, क्योंकि उसे कदम-दर-कदम हर छोटी उपलब्धि हासिल की है।‘
आसान नहीं रहा सफर
गुकेश की यात्रा सरल नहीं थी, क्योंकि उनके परिवार ने अपनी सेविंग्स को खर्च किया और उनके सपने को पूरा करने के लिए ‘क्राउड-फंडिंग’ (लोगों से पैसे जुटाना) का भी सहारा लिया। मां ने बोला कि 2019 में गुकेश के ग्रैंडमास्टर बनने के बाद ही वित्तीय समस्याएं हल हुईं। उन्होंने कहा, ‘वित्तीय रूप से कुछ कठिनाइयां थीं, लेकिन ग्रैंडमास्टर बनने के बाद उन्हें सुलझा लिया गया। वह कड़ी मेहनत कर रहा था और हम भी ऐसा ही कर रहे थे ताकि जिस तरह भी संभव हो उसका समर्थन कर सकें।‘
चौथी क्लास के बाद विद्यालय जाना किया बंद
गुकेश ने चेस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए चौथी कक्षा के बाद लगातार विद्यालय जाना भी बंद कर दिया। हालांकि, यह फैसला लेना मुश्किल था। मां ने गुकेश के सबसे बड़े सपोर्ट में से एक होने के लिए उनके विद्यालय (चेन्नई में वेलाम्मल विद्यालय स्कूल) को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, ‘सबसे बड़ी चुनौती उसकी पढ़ाई और चेस के बीच फैसला लेना था। हमें (उसकी पढ़ाई) बलिदान देना पड़ा और यह एक मुश्किल फैसला था।‘ उन्होंने कहा, ‘उनका विद्यालय सबसे बड़ा सपोर्टर है। जब भी वह किसी टूर्नामेंट में जाना चाहता था तो वे इजाजत देते थे। वह जब भी खाली होता तो एक्जाम देता था।‘ उन्होंने कहा, ‘बीच में हमने उसके चेस खेलने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखने के बारे में भी सोचा था, लेकिन अब से मेरा मानना है कि यह उसके लिए केवल चेस है।‘
पिता ने करियर ही दांव पर लगा दिया
युवा भारतीय ग्रैंडमास्टर डी गुकेश कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में अपनी ऐतिहासिक जीत के बाद सुर्खियां बटोर रहे हैं, लेकिन 17 वर्ष के इस खिलाड़ी के सपने को हकीकत में बदलने के लिए उनके माता-पिता को कई त्याग करने पड़े। गुकेश चेस खेलना जारी रख सकें इसलिए उनके पिता ने अपना करियर ही दांव पर लगा दिया और खर्चों को पूरा करने के लिए ‘क्राउड फंडिंग’ का भी सहारा लेना पड़ा। गुकेश के पिता रजनीकांत ईएनटी सर्जन हैं, जबकि उनकी मां ‘माइक्रोबायोलोजिस्ट’ हैं। रजनीकांत ने 2017-18 में अपने जॉब से विराम लिया और बहुत की कम बजट में अपने बेटे के साथ पूरे विश्व का यात्रा पूरा किया।
मां ने चलाया परिवार का खर्च
इस दौरान परिवार का खर्च चलाने की जिम्मेदारी उनकी मां ने उठायी। गुकेश के बचपन के कोच विष्णु प्रसन्ना ने बताया, ‘उनके माता-पिता ने बहुत त्याग किये हैं।‘ उन्होंने कहा, ‘उनके पिता ने अपने करियर की लगभग बलि चढ़ा दी, जबकि उनकी मां परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। गुकेश और उनके पिता ज्यादातर समय यात्रा कर रहे होते हैं। यात्रा के कारण गुकेश के माता-पिता को एक दूसरे से मिलने का भी मौका बहुत कठिन से मिलता है।‘ बता दें कि गुकेश जनवरी 2019 में 12 साल, 7 महीने और 17 दिन की उम्र में हिंदुस्तान के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर बने थे।
बचपन के कोच को गर्व
गुकेश के पास कोई स्पॉन्सर नहीं था और उन्हें इनामी राशि और ‘क्राउड-फंडिंग’ से अपने खर्चे का मैनेजमेंट करना पड़ता था, लेकिन इन सबके बावजूद वह पिछले वर्ष अपने आदर्श विश्वनाथन आनंद को पछाड़कर हिंदुस्तान के शीर्ष रैंकिंग के खिलाड़ी बनने में सफल रहे। गुकेश के बचपन के कोच प्रसन्ना इस बात से प्रभावित है कि गुकेश ने कितनी तेजी से कामयाबी की ऊंचाइयों को छुआ। उन्होंने इस खिलाड़ी की उपलब्धियों का श्रेय खेल के प्रति जुनून के साथ सीखने और सुधार करने की ख़्वाहिश शक्ति को दिया। प्रसन्ना ने कहा, ‘यह उनका अविश्वसनीय प्रदर्शन है। इस स्तर तक पहुंचने के लिए, आपको कई चीजों पर ठीक काम करने की आवश्यकता है और यह एक बड़ी उपलब्धि है। इतिहास में उनका नाम पहले ही दर्ज हो चुका है।‘
दो वर्ष में ग्रैंडमास्टर बने गुकेश
सात वर्ष की उम्र में खेल खेलना सीखने के बाद, गुकेश 2017 में प्रसन्ना के पास आये थे। उन्होंने कहा, ‘हम 2017 में मिले और जैसे ही हमने एक साथ काम करना प्रारम्भ किया, उसने आईएम मानदंडों को हासिल करना प्रारम्भ कर दिया। इसी तरह चीजें इतनी तेजी से होने लगीं कि दो वर्ष के अंदर वह ग्रैंडमास्टर बन गया।‘ उन्होंने आगे बताया, ‘उनकी पिछली बड़ी कामयाबी ओलंपियाड गोल्ड जीतना था, लेकिन अब उसने कैंडिडेट्स के लिए क्वालीफाई करके अद्भुत उपलब्धि हासिल की है।‘ अगली वर्ल्ड चैंपियनशिप में गुकेश का मुकाबला मौजूदा चैंपियन चीन के डिंग लिरेन से होगा। प्रसन्ना ने कहा, ‘हम वर्ल्ड चैंपियनशिप पर ध्यान केंद्रित करेंगे और इसे जीतने की प्रयास करेंगे। हमें यह भी देखना होगा कि वहां पहुंचने से पहले हमें क्या हासिल करना है और क्या करने की आवश्यकता है।‘
बधाइयों का लगा तांता
गुकेश को यह ऐतिहासिक उपलब्धि नाम करने के बाद बधाइयों का तांता लग गया है। पूरे विश्व के कद्दावर चेस प्लेयर उन्हें शुभकामनाएं दे रहे हैं। पांच बार के वर्ल्ड चैम्पियन आनंद ने 2014 में खिताब जीता था। आनंद ने एक्स पर लिखा, ‘डी गुकेश को सबसे युवा चैलेंजर बनने पर बधाई। आपकी उपलब्धि पर गर्व है। मुझे निजी तौर पर तुम पर बहुत गर्व है जिस तरह से तुमने मुश्किल हालात में खेला। इस पल का मजा लो।‘ इंग्लैंड के ग्रैंडमास्टर डेविड होवेल ने लिखा, ‘गुकेश को कैंडिडेट्स जीतने पर बधाई। क्या बहुत बढ़िया टूर्नामेंट रहा। मैं पहले ही मुकाबले से जानता था कि वह खास है। वह 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बन चुका था। उसकी क्षमता, परिपक्व रवैया और कैलकुलेशन के टैलेंट से मैं काफी प्रभावित हूं। भावी वर्ल्ड चैम्पियन।‘ स्त्री वर्ग में दूसरे जगह पर रहीं भारतीय ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी ने लिखा, ‘डी गुकेश को सबसे युवा चैलेंजर बनने पर बधाई।‘
जीत के बाद कहे गुकेश
अधिकांश खिलाड़ियों के लिये जीत सबसे बड़ी प्रेरणा होती है, लेकिन इतिहास रचने वाले हिंदुस्तान के युवा ग्रैंडमास्टर डी गुकेश उनमें से नहीं हैं। उनका बोलना है कि सातवें दौर में फिरोजा अलीरजा से हारने के बाद उन्हें सबसे युवा कैंडिडेट्स चेस चैम्पियन बनने की प्रेरणा मिली। गुकेश ने जीत के बाद कहा, ‘मैं प्रारम्भ ही से अच्छा महसूस कर रहा था, लेकिन सातवें दौर में अलीरजा से हारने के बाद मैं निराश था। अगले दिन रेस्ट था और मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा था। इस तरह की हार से मुझे ऊर्जा और प्रेरणा मिलती है।‘ उन्होंने आगे कहा, ‘हार के बाद मुझे लगा कि यदि अच्छा खेला और ठीक मानसिकता के साथ खेला तो जीत सकता हूं।‘
‘यह एक खूबसूरत पल’
दुनिया के तीसरे सबसे युवा ग्रैंडमास्टर ने कहा, ‘शुरू ही से फोकस प्रक्रिया पर भरोसा करने पर, ठीक मानसिकता के साथ अच्छा चेस खेलने पर था। पूरे टूर्नामेंट में मैंने अच्छा खेला और मैं खुशकिस्मत था कि परिणाम पक्ष में रहे।‘ यह पूछने पर कि खिताब जीतकर कैसा लग रहा है। गुकेश ने कहा, ‘यह खूबसूरत पल था। मैं बहुत खुश था और इत्मीनान है कि आखिर जीत गया।‘ गुकेश को जीत के लिये ड्रॉ की ही आवश्यकता थी और उन्होंने नकामूरा के विरुद्ध कोई कोताही नहीं बरती। दोनों का मुकाबला 71 चालों के बाद ड्रॉ पर छूटा।
वर्ल्ड चैंपियन बनना लक्ष्य
वर्ल्ड चैम्पियनशिप खिताब के लिये उनकी योजना के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘मेरे पास इसके बारे में सोचने के लिये अधिक समय नहीं। मैं अच्छा प्रदर्शन जारी रखने की प्रयास करूंगा।‘ उन्होंने आगे कहा, ‘आनंद ने मुझे शुभकामना दी। उनसे बात नहीं हो सकी, लेकिन शीघ्र ही करूंगा। मैंने अपने माता पिता से बात की जो बहुत खुश हैं। मैने अपने ट्रेनर, स्पॉन्सर और दोस्तों के साथ समय बिताया। बहुत सारे मैसेज आ रहे हैं जिनके उत्तर देने हैं।‘ उन्होंने कहा, ‘अभी कुछ दिन आराम करूंगा। पिछले तीन हफ्ते काफी स्ट्रेसफुल रहे हैं। आराम के बाद वर्ल्ड चैम्पियनशिप मैच के बारे में सोचूंगा।‘