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भारतीय महिला फुटबॉल टीम तीसरी बार खेलने जा रही एशियाड

भारतीय स्त्री फुटबॉल टीम तीसरी बार एशियाड खेलने जा रही है पिछले 15 वर्ष में रिकॉर्ड 5 बार SAFF विमेंस चैंपियनशिप जीतने के बाद टीम के सामने मल्टी स्पोर्ट्स इवेंट्स में परफॉर्म करने की चुनौती है

यह विमेंस फुटबॉलर्स के पास भारतीय फैंस के सामने स्वयं को साबित करने का गोल्डन चांस भी है अगले 3 महीनों में टीम के सामने 2 बड़ी चुनौतियां हैं पहली- एशियन गेम्स और दूसरी- ओलिंपिक क्वालिफायर्स

टीम इण्डिया की रेग्युलर कप्तान और इंग्लैंड की विमेंस प्रीमियर लीग में खेलने वाली पहली भारतीय वीमेन फुटबॉलर अदिति चौहान ने इन्हीं चुनौतियों पर खुलकर चर्चा की, हालांकि वे चोट के कारण टीम का हिस्सा नहीं हैं लेकिन अदिति ने टीम की रणनीति और आनें वाले योजना पर बात की आप भी पढ़िए

भारतीय विमेंस फुटबॉल टीम की कप्तान अदिति चौहान से मीडिया की खास वार्ता

सवाल- एशियाड की क्या तैयारी है?
जवाब-
नेशनल टीम के कैंप प्रारम्भ हो गए हैं, हालांकि इंजरी के कारण मैं टीम का हिस्सा नहीं हूं, लेकिन टीम की हौसलाअफजाई करूंगी एशियाड के लिए क्वालिफाई करना हमारे लिए एक बड़ी और लम्बी जंग रही है हम फैंस को टीम का पोटेंशियल दिखाना चाहते हैं

सवाल- एशियाड के बाद ओलंपिक क्वालिफिकेशन भी हैं 2011 के वर्ल्ड चैंपियन जापान से सामना होगा यह कितना अहम?
जवाब-
पिछले दिनों वर्ल्ड कप देख कर समझ आया कि कोई टीम छोटी या बड़ी नहीं है हम जापान को हरा सकते हैं, हालांकि जापान बहुत अच्छी टीम है उन्हें हराना चैलेंजिंग होगा

हमें स्वयं पर भरोसा रखना होगा और अच्छा गेमप्लान बनाना होगा फुटबॉल की सबसे अच्छी बात है कि जिसमें जीत की भूख अधिक होती है, वही टीम जीतती है यदि हम जापान से नहीं जीत सके, तो ग्रुप की अन्य दो टीमों से जीतकर आगे बढ़ने की प्रयास करेंगे

सवाल- आपने 15 वर्ष तक बास्केटबॉल खेला और फिर फुटबॉल गोलकीपर बनीं क्या पुराने गेम से कुछ सहायता मिली?
जवाब-
बास्केटबॉल खेलने से मेरा हैंड-आई कॉम्बिनेशन मजबूत हुआ मैं बॉल आने पर बहुत शीघ्र रिएक्ट कर लेती हूं यह स्किल मुझे गोलकीपिंग में काम आई दोनों ही फिजिकल गेम हैं और इसमें बॉडी पर काम करना होता है जैसे बास्केटबॉल में आप बॉल को छीनने की प्रयास करते है, उसी तरह फुटबॉल में भी गोलकीपिंग में कॉर्नर या फ्रीकिक के दौरान गोलकीपर के तौर पर आपको जम्प करके बॉल पकड़नी होती है

सवाल- ब्रिटेन की लौघ्बोरौघ यूनिवर्सिटी से स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की मास्टर्स डिग्री हासिल की और प्रोफेशनल फुटबॉल भी खेला पढ़ाई-खेल में समंजस्य कैसे बैठाया?
जवाब- मुझे नहीं लगता है कि खेल के साथ पढ़ाई कठिन है यह धारणा गलत है कि खेल के साथ पढाई नहीं हो सकती सभी के पास 24 घंटे हैं और इनमें आपको सोना है, पढ़ना है, खेलना है, और सोशल लाइफ भी मेन्टेन करनी है आपको अपनी प्रायोरिटी सेट करनी होगी

मैंने ज्यादातर समय स्पोर्ट्स और पढ़ाई को दिया है खेल से मैंने फोकस करना सीख लिया था यदि मैं दिन में एक घंटे भी पढ़ाई करती थी, तो उस दौरान मैं पढ़ाई में ही डूबी रहती थी मुझे खेल ने पढ़ाई करने और पढ़ाई ने खेलने में साथ दिया है पढ़ाई की वजह से मेरी डिसीजन मेकिंग और गेम की समझ बेहतर हुई, यदि मैं आने वाले समय में चोट के कारण नहीं खेल पाई, तो उस समय मेरी पढ़ाई ही मेरे काम आएगीसवाल- आपने वेस्ट हैम यूनाइटेड क्लब से फुटबॉल खेला और विमेंस सुपर लीग में खेलने वाली पहली भारतीय बनीं वहां का फुटबॉल यहां से कितना अलग है?
जवाब-
इंग्लैंड का फुटबॉल बहुत अधिक विकसित है वहां हर तरह के प्लेयर के लिए लीग हैं हर क्षेत्र में एक क्लब हैं आपके पास इंट्रेस्ट है, लेकिन नौकरी के कारण आप प्रोफेशनली नहीं खेल सकते हैं तो आपके लिए छोटी लीग भी है मैंने भी एक छोटे क्लब से ही आरंभ की

वहां ट्रेनिंग बहुत मुश्किल होती है यदि 1 घंटे की ट्रेनिंग है, तो पहले मिनट से अंतिम मिनट तक एक ही लय में हार्ड ट्रेनिंग करनी होती है

सवाल- 19 वर्ष की उम्र में डेब्यू किया और टीम भी लीड कर रही हैं क्या चैलैंज आते हैं?
जवाब-
कप्तानी से जिम्मेदारी बढ़ जाती हैं आप अपने मूड के बारे में नहीं सोच सकते आपको टीम के बारे में सोचना पड़ता है सभी का ध्यान रखना होता है यदि आपने पिच पर किसी प्लेयर पर गुस्सा कर दिया तो बाद में उसे मोटिवेट करें आपको सभी का बेस्ट निकालना होगा गोलकीपर के तौर पर आप हमेशा लीड करना चाहते है, क्योंकि आप पूरा गेम देखते है

सवाल- ब्राडकास्टिंग में इंट्रेस्ट कैसे आया?
जवाब-
ISL और चैंपियंस लीग के लिए हिंदी कमेंट्री का ऑफर आया था यह चुनौतीपूर्ण था, लेकिन मुझे चैलेंज लेना पसंद है ब्रॉडकास्टिंग में मुझे लगा कि कमेंट्री के जरिए लोग मुझे जानेंगे और विमेंस फुटबॉल मजबूत होगा

सवाल – आपने इंटरकाॅन्टिनेंटल कप के दौरान सुनील छेत्री से भी बात की यह अनुभव कैसा रहा?
जवाब – छेत्री कप्तान, लीडर और लीजेंड है हम सब उनसे बहुत सीखते है जब भी टीम को छेत्री की आवश्यकता होती है, तब वे वहां होते है उन्हें पूरी टीम बहुत पसंद करती है वह सभी के लिए एक रोल मॉडल है

सवाल – भारतीय विमेंस फुटबॉल टीम बहुत कम इंटरनेशनल मैच और टूर्नामेंट खेलती है साथ ही भारतीय विमेंस लीग भी बहुत छोटी है मेंस फुटबॉल में अधिक गेम और ISL जैसी स्थापित लीग भी है, लेकिन विमेंस फुटबाॅल में नहीं ऐसा क्यों?

जवाब – मेंस फुटबॉल काफी समय से चला आ रहा है इसलिए इसमें अधिक निवेश हुआ और लीग स्थापित हुई वहीं, इसके उलट विमेंस फुटबॉल लेट प्रारम्भ हुआ इस कारण इसमें अधिक डेवलपमेंट नहीं हो सका है इसलिए महत्वपूर्ण है कि विमेंस फुटबॉल में और अधिक निवेश हो और एक लीग स्थापित हो

खिलाड़ियों के लिए फिटनेस और बेहतर गेम बनाए रखने के लिए पूरे वर्ष मैच खेलना महत्वपूर्ण है एक अच्छा प्लेयर इसी तरह निकल कर आता है डोमेस्टिक फुटबॉल का पूरे वर्ष फंक्शन करना महत्वपूर्ण है इसलिए बेहतर ग्राउंड और ट्रेनिंग की आवश्यकता है

सवाल – आप शी किक फुटबॉल के नाम से स्पोर्ट्स से वंचित बच्चों के लिए फुटबॉल एकेडमी चलाती हैं इन बच्चों के लिए स्पोर्ट्स और पढ़ाई को कैसे मेन्टेन करती है?
जवाब –
जब मैं ब्रिटेन से आई तब समझा कि मैंने जो चैलेंजेस फेस किए है वह आने वाली पीढ़ी को नहीं करना चाहिए हर बच्चे के पास पैसा और सुविधा नहीं होती इस राष्ट्र के बच्चों में खेल की ललक है लेकिन उन्हें एक मंच और गाइडेंस की तलाश होती है इसलिए मैने यह अकादमी प्रारम्भ की है मेरी प्रयास है कि अकादमी से और अधिक लड़कियां निकले और उन्हें बेस्ट गाइडेंस मिले

 

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