उत्तर प्रदेश

कैसरगंज से बृज भूषण की जगह अन्य विकल्पों पर हो रहा विचार

संसद में पहुंचने के लिए प्रारम्भ हुआ राजनीतिक संग्राम धीरे- धीरे रोचक ही नहीं, रोमांचक भी होने लगा है. देवीपाटन मंडल की चार सीटों में तीन पर अभी दो दलों ने पांच प्रत्याशी उतारे हैं. इनमें चार सियासी विरासत को संभालने के लिए मैदान में ताल ठोंक रहे हैं. कोई बाबा तो कोई नाना की विरासत संभालने के लिए राजनीतिक पिच पर स्वयं को आजमा रहा है. पिता की जिम्मेदारी संभालने का भी बल दिख रहा है. मतदाताओं के बीच पैठ बनाने के लिए रिश्तों की दुहाई दी जा रही है. पुराने संबंधों को भी खंगाला जा रहा है.

अभी राजनीतिक मैदान में लड़ाकों की कमी है. सभी दलों ने पूरी तरह पत्ते नहीं खोले हैं. इसके बाद भी जिनके नामों की घोषणा हुई है वह माहौल बनाने में जुट गए हैं. इसमें श्रावस्ती संसदीय सीट की बात करें तो बीजेपी से मैदान में उतरे साकेत मिश्र अपने नाना बदलूराम शुक्ल की विरासत को संभालने में जुटे हैं. बदलूराम 1971 में बहराइच से सांसद रह चुके हैं. वह श्रावस्ती के रहने वाले थे और तब श्रावस्ती क्षेत्र बहराइच संसदीय सीट से जुड़ा था.

इसी तरह बहराइच के निवर्तमान सांसद अछैवर लाल गौड़ के बेटे डा आनंद गौड़ बीजेपी से मैदान में हैं. गोंडा में भी मुकाबला काफी रोचक हैं. समाजवादी पार्टी के संस्थापक नेताओं में शामिल और गोंडा से 2009 में सांसद रहे बेनी प्रसाद वर्मा की पौत्री श्रेया वर्मा विपक्षी गठबंधन इण्डिया से मैदान में डटी हैं, वहीं चार बार सांसद रहे आनंद सिंह के बेटे निवर्तमान सांसद कीर्तिवर्धन सिंह एक बार फिर राजघराने की राजनीति को विस्तार देने में पूरी तैयारी से डटे हैं. इस तरह बहराइच के समाजवादी पार्टी प्रत्याशी रमेश गौतम को छोड़ दें तो अब तक के बीजेपी और समाजवादी पार्टी से घोषित चारों प्रत्याशी विरासत की जंग में मोर्चा संभाले हैं. इनकी जीत पार्टी में कद तो निर्धारित करेगी ही, परिवार का सियासी रसूख भी बढ़ाएगा.

पिता के रिकॉर्ड को तोड़ने की चुनौती

गोंडा संसदीय सीट से बीजेपी से तीसरी बार कीर्तिवर्धन सिंह इस बार मैदान हैं. वह बीजेपी से दो और समाजवादी पार्टी से भी दो बार सांसद रह चुके हैं. इसके पहले उनके पिता राजा आनंद सिंह भी चार बार (1971, 1980, 1984 और 1989) गोंडा लोकसभा का अगुवाई कर चुके हैं. इस तरह उन्होंने अपने पिता के संसदीय यात्रा की बराबरी तो कर ली है, लेकिन अब वह इस रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए मैदान में डट गए हैं.

कैसरगंज को अभी रणबांकुरों का हैं इंतजार

कैसरगंज संसदीय सीट पर अभी किसी दल ने पत्ते नहीं खोले हैं. पहले आप… के फेर में दलों की खामोशी से पूरे क्षेत्र में सन्नाटा है. 2009 में संसदीय सीट के गठन से बृजभूषण शरण सिंह यहां नुमाइंदगी करते आ रहे हैं. स्त्री पहलवानों से विवादों के बाद पार्टी में हाशिये पर आए बृजभूषण के दांव की भी खासी चर्चा है. अभी बीजेपी की ओर से की गई पेशकश पर मना के बाद पार्टी में विकल्पों पर विचार हो रहा है.

सपा भी बड़े दांव की तैयारी कर रही है. वह भी इस सीट से पूरे राष्ट्र की राजनीति को एक संदेश देने का खाका खींच रही है. बीते दिनों लखनऊ में क्षेत्रीय नेताओं की हुई बैठक में अहम मुद्दों पर विचार हुआ, जिसमें अभी टिकट किसी नामी और चर्चित सितारे को देने पर चर्चा हुई. अभी सहमति नहीं बन सकी है. इससे अभी यहां का राजनीतिक अखाड़ा केवल टिकट के खेल से खिलखिला रहा है.

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