पश्चिमी यूपी की राजनीति में बसपा सुप्रीमो मायावती ने मचा दी हलचल
बसपा सुप्रीमो और पूर्व सीएम मायावती ने सहारनपुर जिले से चुनावी शंखनाद किया. सहारनपुर वही जिला है, जहां की हरौड़ा सीट ने 1996 में मायावती को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाया था. मंगलवार को वह बिजनौर की सभा को संबोधित करेंगी, जहां से 1989 में पहली बार सांसद बनकर गईं. सोमवार को मायावती मुरादाबाद और पीलीभीत जिले के दौरे पर रहीं. 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती एक सीट पर सिमट गईं थी, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन में 10 सीटों पर कब्जा किया था. इस बार मायावती ने पहले और दूसरे चरण के चुनाव को लेकर पश्चिम की सभी चार सहारनपुर, बिजनौर, नगीना और अमरोहा सीट पर नए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा.
वहीं, नगीना से सांसद गिरीश चंद्र को बीएसपी ने बुलंदशहर से मैदान में उतारा. अब मायावती ने 14 अप्रैल से इन सीटों पर तीन दिवसीय प्रचार प्रारम्भ किया. 14 अप्रैल को सहारनपुर और मुजफ्फरनगर में चुनावी सभा की और गवर्नमेंट बनने पर पश्चिम यूपी को अलग प्रदेश बनाने की घोषणा कर दी. वहीं, दूसरे दिन वह मुरादाबाद और पीलीभीत जिले के दौरे पर रहीं. मुरादाबाद और पीलीभीत की सभाओं में उन्होंने बोला कि फ्री राशन योजना कोई मेहरबानी नहीं है. उन्होंने समाजवादी पार्टी गठबंधन में टिकट बंटवारे पर तंज कसते हुए बोला कि सिर्फ़ बीएसपी ने भागीदारी के मुताबिक टिकट में हिस्सेदारी दी है. अब मंगलवार को बिजनौर और नगीना की सभा को मायावती संबोधित करेंगी. कुल मिलाकर मायावती के तीन दिवसीय दौरे ने सियासी खेमे में हलचल मचा दी है. मायावती के दौरे पर भाजपा, सपा, कांग्रेस पार्टी की नजर है. हालांकि चुनाव की घोषणा से पहले तक मायावती ने इस क्षेत्र में एक भी रैली या जनसभा नहीं की.
दलित बहुल इलाकों पर विशेष फोकस
बसपा सुप्रीमो मायावती का विशेष फोकस दलित बहुल क्षेत्र है, जो बीएसपी का बेस वोट माना जाता है. बीएसपी नेता मानते हैं कि पार्टी के संस्थापक कांशीराम धीरे-धीरे मजबूती से दलित जाटव को साथ जोड़ते हुए अन्य दलित जातियों एवं अति पिछड़ी जातियों को एक साथ लेकर आए. मायावती प्रारम्भ से इस प्रक्रिया का हिस्सा रहीं. ऐसे में मायावती ने यूपी में दलितों, खास तौर पर जाटवों को पहचान दी है.