मुश्किलों भरा रहा पूर्व सांसद धनंजय का राजनीतिक सफर, पढ़े पूरी खबर
जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। मंगलवार को जौनपुर के लाइन बाजार थाना क्षेत्र के 10 मई 2020 को हुए अभिनव सिंघल के किडनैपिंग के मुद्दे में पूर्व सांसद धनंजय सिंह और संतोष विक्रम को अपर सत्र न्यायाधीश शरद त्रिपाठी ने गुनेहगार करार दिया गया है। इस मुद्दे में सजा को लेकर बुधवार को सुनवाई होनी है।
बता दें कि सांसद धनंजय सिंह का सियासी यात्रा काफी मुश्किलों भरा रहा है। वह 2002 में पहली बार रारी विधानसभा से निर्दलीय विधायक चुने गए। दुबारा 2007 के आम चुनाव में लोजपा के टिकट पर विधानसभा पहुंचे।
धनंजय सिंह 2009 में बीएसपी के टिकट पर चुनाव जीते। 2009 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद रिक्त हुई विधानसभा सीट पर अपने पिता राजदेव सिंह को खड़ा किया और जितवाने में सफल रहे।
तत्कालीन समाजवादी पार्टी महासचिव अमर सिंह से मुलाकात के बाद 21 सितंबर 2011 को बीएसपी ने धनंजय सिंह को पार्टी से निलंबित करने का घोषणा कर दिया था। निलंबन का सांसद ने खुला विरोध किया।
इस बीच 26 सितंबर को सीबीसीआईडी ने बेलांव घाट के डबल हत्या की दोबारा जांच प्रारम्भ कर दी। 20 नवंबर को सांसद की बीएसपी में वापसी हो गई। 11 दिसंबर 2011 को सांसद को बेलांव घाट के दोहरे हत्याकांड में अरैस्ट कर लिया गया। यह गिरफ्तारी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले की गई।
पुलिस ने गैंगस्टर भी तामील करा दिया। विधानसभा चुनाव बीतने के बाद मार्च में हाई कोर्ट से जमानत हुई।
वर्ष 2012 में विधानसभा के आम चुनाव में मल्हनी विधानसभा क्षेत्र से अपनी पत्नी डाक्टर जागृति सिंह को निर्दल प्रत्याशी के रूप में उतारा। उन दिनों वह कारावास में थे।
चुनाव में समाजवादी पार्टी उम्मीदवार और मौजूदा उद्यान मंत्री पारसनाथ यादव से डाक्टर जागृति का मुकाबला हुआ। सांसद के कारावास में होने के बावजूद डाक्टर जागृति सिंह को 50,100 वोट मिले। जबकि विजयी प्रत्याशी पारसनाथ यादव को 81, 602 मत मिले।
17 जनवरी, 2013 को बक्शा के पूरा हेमू निवासी अनिल मिश्रा हत्याकांड में सांसद के विरुद्ध केस दर्ज कराया गया।
तत्कालीन एसपी मंजिल सैनी ने विवेचना कराई तो पता चला कि हत्या अनिल मिश्रा के गोल के लोगों ने ही कराया था। इस पर पुलिस ने सांसद को क्लीनचिट दे दी थी।