बाराबंकी के किसानों का मेंथा की खेती से हुआ मोहभंग, जानें कारण
उत्तर प्रदेश का बाराबंकी जिला मेंथा की खेती का गढ़ माना जाता है। गेहूं और आलू की फसल के बाद किसान मेंथा की ही फसल लगाते थे। आमतौर पर आलू और गेहूं की फसल में हानि होने के बाद जब किसानों की लागत भी नहीं निकल पाते थे तो अधिकांश किसान मेंथा की फसल लगाते थे। जिससे उन्हें अच्छी मूल्य मिलती थी। पर इधर कुछ सालों से मेंथा की खेती से किसानों का मोह अब धीरे-धीरे भंग हो रहा है।
लेकिन कुछ वर्ष से ऑयल का वाजिब मूल्य नहीं मिलने से किसान मेंथा की खेती कर पछता रहे हैं। एक दशक पूर्व जब मेंथा की खेती की आरंभ की थी, उस समय मेंथा के ऑयल की मूल्य 18-19 सौ रुपये प्रति लीटर थी। कई सालों से ऑयल की कीमतों में लगातार गिरावट होने से किसानों की कमर टूट गई है। अब मेंथा की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है जिसके कारण किसानों का मोहभंग हो रहा है।
नहीं मिल रहा किसानों को ठीक रेट
बाराबंकी के किसान मेंथा की खेती से हटकर अन्य फसलों की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। किसानों का मानना है मेंथा की खेती में लागत भी अधिक लगती है और पैदावार भी कम होने के साथ ठीक दर भी नहीं मिल पाता। जिसके कारण मेंथा की खेती का रकबा घटता जा रहा है।पहले जिले में करीब 1लाख हेक्टेयर में मेंथा की खेती होती थी पर इधर एक दो वर्षों में इसका रकबा घटकर करीब 70 से 80 हजार ही रह गया है।
मेंथा की खेती में मेहनत अधिक फायदा कम
एक किसान ने कहा कि पहले मैं करीब दो से ढाई एकड़ में मेंथा की खेती करता था अब इस समय करीब 2 से 3 बीघा में इसकी खेती कर रहा हूं। इस खेती में काफी अधिक मेहनत लगती है और दर भी ठीक नहीं मिल पा रहा है और इस फसल में बीमारी भी काफी अधिक लगते हैं जिससे कीटनाशक दवाइयां का छिड़काव अधिक करना पड़ता है और करीब सात-आठ बार सिंचाई करनी पड़ती है। मेहनत भी अधिक है। फसल की रोपाई से पेराई तक किसान पस्त हो जाते हैं। इसलिए हम लोग मेंथा की खेती से हटकर तरबूज और खरबूजे की खेती करने लगे हैं।
कम हुआ खेती का रकबा
वहीं जिला उद्यान अधिकारी महेश कुमार ने कहा बाराबंकी जिले में करीब एक लाख हेक्टर में मेंथा की खेती होती है पर इधर दो-तीन वर्षों से इसमें गिरावट आई है। मेंथा की फसल की कीमतों में दो से तीन वर्षों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। मेंथा का दर 900 से 1000 रुपए के बीच स्थिर हो गया है जिसकी वजह से किसानों का मोहभंग हो रहा है।