उत्तर प्रदेश

पूर्व सांसद धनंजय सिंह को जौनपुर की अदालत ने सात साल कारावास की सुनाई सजा

पूर्व सांसद धनंजय सिंह को जौनपुर की न्यायालय ने सात वर्ष जेल की सजा सुनाई है. चूंकि, दो वर्ष से अधिक अवधि की सजा पाने के बाद कोई आदमी चुनाव नहीं लड़ सकता, धनंजय सिंह की राजनीति हमेशा के लिए समाप्त हो गई है. सजा पाने के बाद धनंजय सिंह ने भी इल्जाम लगाया है कि यह उनकी राजनीति को खत्म करने की षड्यंत्र है. जिस दिन बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की थी और जौनपुर लोकसभा सीट पर पूर्व कांग्रेसी नेता कृपाशंकर सिंह को चुनाव में उतारा था, उसी दिन धनंजय सिंह ने यह घोषणा कर दी थी कि वे जौनपुर से चुनाव लड़ेंगे. अपनी सजा पर रोक लगाने के लिए उन्होंने उच्च न्यायालय में अपील करने की बात कही है. यदि उनकी सजा पर स्थगन मिल जाता है, तो वे चुनाव लड़ सकेंगे.

लेकिन धनंजय सिंह पहले सांसद या जनप्रतिनिधि नहीं हैं, जिन्हें न्यायालय से सजा पाने के बाद अपनी राजनीति समाप्त होने का डर सता रहा है. अब तक एमपी-एमएलए न्यायालय ने लगभग 300 जनप्रतिनिधियों को कारावास की सलाखों के पीछे डाल दिया है. इनमें से ज्यादातर नेताओं की हमेशा-हमेशा के लिए राजनीति समाप्त हो गई.

इन बड़े नेताओं को हुई जेल

एमपी-एमएलए न्यायालय से उत्तर प्रदेश के कई बड़े क्रिमिनल नेताओं को कारावास की सजा सुनाई जा चुकी है. सपा के नेता आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान, अतीक अहमद, अशरफ अहमद और बाहुबली मुख्तार अंसारी, उनके भाई अफजाल अंसारी, बेटा अब्दुल्ला अंसारी जैसे क्रिमिनल नेताओं को भिन्न-भिन्न मुद्दे में सजाएं सुनाई जा चुकी हैं. इसके अतिरिक्त कुलदीप सेंगर को सजा मिलने के कारण उनकी राजनीति भी हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो गई है.

शहाबुद्दीन अंसारी जैसे आपराधिक नेता कुछ सियासी दलों के लिए एक असेट का काम करते थे. वे न सिर्फ़ स्वयं चुनाव जीत रहे थे, बल्क अपने सामाजिक असर के कारण कई अन्य सीटों पर भी उम्मीदवारों को जिताने-हराने का काम कर रहे थे. लेकिन इनमें से कई बड़े आपराधिक नेताओं को कारावास की सजा हुई और उन्हें सजा भुगतनी पड़ी. शहाबुद्दीन के भी एक हत्याकांड में क्रिमिनल ठहराए जाने के बाद उसकी राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो गई थी.  

सही दिशा में काम कर रही ये कोर्ट

सर्वोच्च कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय ने मीडिया से बोला कि एमपी-एमएलए न्यायालय को इसीलिए स्थापित किया गया था क्योंकि अदालती मुकदमों में बोझ के कारण सांसदों-विधायकों पर लंबे समय तक मुकदमा चलते रहते थे. इस दौरान उनकी राजनीति भी चलती रहती थी, जबकि पीड़ितों को कोई राहत नहीं मिलती थी.

ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधियों के मुकदमों में तेज सुनवाई के लिए एमपी-एमएलए अदालतों की स्थापना की गई. अब तक लगभग 300 सांसदों-विधायकों को विभिन्न मामलों में भिन्न-भिन्न सजाएं हो चुकी हैं. यह दिखाता है कि एक ठीक कदम उठाने से लोगों को इन्साफ मिल रहा है. उन्होंने बोला कि भारतीय दंड संहिता पूरी तरह लागू होने के बाद इन्साफ प्रक्रिया में तेजी आएगी.

 

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