भगवान रामलला के भव्य मंदिर में उनकी सेवा होगी एक युवराज के तौर पर
अयोध्या। ईश्वर रामलला का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है। भव्य मंदिर में विराजमान होने के साथ ही ईश्वर रामलला की सेवा एक युवराज के तौर पर की जाएगी। लंबे समय के प्रतीक्षा के बाद ईश्वर रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजमान हो रहे हैं। नए मंदिर में विराजमान होने के साथ ईश्वर रामलला के ठाठ बढ़ जाएंगे। ईश्वर की सेवा एक युवराज के तौर पर की जाएगी। जिसमें रामानंदी पूजन परंपरा का निर्वहन किया जाएगा।
भगवान रामलला के पूजन अर्चन को लेकर धर्माचार्य से अब विचार विमर्श का दौर भी प्रारम्भ हो चुका है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष गोविंद देवगिरी ने अयोध्या के वरिष्ठ संतो के साथ ईश्वर के पूजन अर्चन के विविध आयामों पर चर्चा की है। रामनगरी के प्रकांड विद्वानों से ईश्वर के पूजन अर्चन के निमित्त राय भी ली गई है।
सरयू जल और पंचामृत से किया जाएगा अभिषेक
भगवान राम लला को नित्य वैदिक मंत्रोच्चार के साथ जगाया जाएगा। इसके बाद ईश्वर सबसे पहले गौ और गज का दर्शन करेंगे। ईश्वर रामलला नित्य सरयू जल और पंचामृत से स्नान करेंगे। स्नान के बाद रामलला को नए वस्त्र धारण कराए जाएंगे। ईश्वर रामलला के भोग को लेकर भी कई विशेष तैयारी की गई है। जिसमें बालभोग और राजभोग शामिल है।
भगवान के दरबार में दिखेगा उत्सव का माहौल
भगवान रामलला राजभोग का आनंद दोपहर 12 से 12:30 बजे के बीच में लेंगे। जिसमें जेवनार गायन के पदों की प्रस्तुति गायको की टोली के द्वारा की जाएगी। इसके साथ ईश्वर के दरबार में शाम को उत्सव का माहौल दिखेगा। गायन और वादन की परंपरा का निर्वहन होगा। नए मंदिर में रामलला के ठाठ निराले होंगे। 6 तरह की आरती रोजाना ईश्वर रामलला की किया जाएगा जो धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप है।
रामानंदी पूजन परंपरा का होगा पालन
जगद्गुरु राम दिनेशाचार्य ने कहा कि बैठक में ईश्वर राम लला के पूजन पद्धति को लेकर के चर्चा हुई है। ईश्वर के पूजन विधाओं को लेकर संत समाज ने अपने प्रस्ताव रखे हैं। जगतगुरु ने बोला कि धार्मिक मान्यता है उसके अनुकूल ईश्वर रामलला जब सुबह उठेंगे तो उन्हें गज दर्शन और गौ दर्शन की चर्चा हुई। सरजू जल लाने के लिए विशेष प्रबंध, ईश्वर राम लाल के बाल भोग राजभोग अभिषेक की परंपरा पर बैठक में चर्चा हुई है। जगदगुरु राम दिनेशाचार्य ने बोला कि ईश्वर राम लला रामानंदीय परमपरा के सर्वोच्च अवतार हैं।