जयंत-भाजपा संग का बागपत में कैसा असर, जानें क्या बोले मुस्लिम वोटर
Baghpat Lok Sabha Seat Election: यूपी की बागपत लोकसभा सीट पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इस सीट के लिए नामांकन प्रक्रिया चल रही है. पिछले दो चुनाव से बीजेपी ने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखा है लेकिन उसके पहले कई चुनावों में जीत हासिल कर चौधरी चरण सिंह का परिवार बागपत को अपना मजबूत गढ़ साबित करता आया है. यह पहला मौका है जब पिछले कई चुनावों में बीजेपी का निकटतम प्रतिद्वंदी रहा राष्ट्रीय लोकदल उसके साथ नज़र आ रहा है.
ऐन चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव से हाथ छुड़ाकर बीजेपी खेमे में शामिल हुए रालोद प्रमुख जयंत चौधरी 2019 के चुनाव में स्वयं इस सीट से सपा-बसपा-रालोद के संयुक्त उम्मीदवार थे. इस बार बीजेपी ने यह सीट लड़ने के लिए उन्हीं की झोली में डाल दी तो उन्होंने डा।राजकुमार सांगवान पर दांव लगा दिया. जाट समाज से आने वाले डा।सांगवान ने सोमवार को अपना पर्चा भरा. उसी दिन ‘लाइव हिन्दुस्तान’ के संपादक प्रभाष झा ने बागपत के प्रमुख इलाकों में लोगों से बात कर यह जानने की प्रयास की कि आखिर पिछले चुनावों में नंबर एक और नंबर दो रही पार्टियों की साझेदारी का असर क्या है? और इस गठबंधन से कितना सहज है वो जाट और मुसलमान वोटर जिसे अभी तक राष्ट्रीय लोकदल का समर्थक माना जाता रहा है.
बड़ौत के नया बाजार में फूस वाली मस्जिद के पास मिले हाजी जमीरूद्दीन अब्बासी ने बोला कि राष्ट्रीय लोकदल के लिए यह गठबंधन लाभ वाला साबित होने वाला है. उन्होंने बोला कि यह चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि है जिन्हें हिंदुस्तान रत्न देकर भाजपा ने दिल जीत लिया है. हालांकि मोहम्मद जैद नामक एक अन्य वोटर ने रालोद-भाजपा गठबंधन को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखाया. मो।जैद ने बोला कि हम हमेशा रालोद से जुड़े रहे. हमने बीजेपी का साथ कभी नहीं दिया लेकिन इस बार हमारी विवशता है. रालोद ने बीजेपी से हाथ मिलाया है तो उसे भी हमारे वोट का लाभ मिलेगा ही.
भाजपा से गठबंधन पर सहमत न होते हुए भी रालोद के साथ ही जाने और समाजवादी पार्टी को विकल्प न मानने की क्या विवशता है? इस पर वह कहते हैं कि भाजपा-रालोद के सामने समाजवादी पार्टी अभी उतनी मजबूत नहीं दिख रही है. इसलिए रालोद के साथ ही रहना विवशता है. हम बीजेपी को वोट नहीं दे रहे. हम जयंत को वोट दे रहे हैं. जाट मतदाताओं के बीच रालोद के मजबूत आधार का उल्लेख करते हुए सौरभ खोखर ने स्वयं को रालोद समर्थक कहा और डा।सांगवान की जीत के दावे किए. मैनुद्दीन अब्बासी नामक एक अन्य वोटर ने पिछले दो चुनावों में रालोद की हार की वजह गिनाते हुए बोला कि जाट वोटरों में कुछ नाराजगी थी. वे भाजपा के साथ चले गए. लेकिन अब जब भाजपा भी साथ है तो रालोद को इसका लाभ मिलेगा ही.
बागपत में चौधरी परिवार की मजबूत थाती के पीछे उन्होंने चौधरी चरण सिंह के जमाने से चले आ रहे पब्लिक कनेक्ट का राज बताया. मैनुद्दीन अब्बासी ने बोला कि चौधरी साहब के जमाने से और आगे अजीत सिंह रहे हों या जयंत चौधरी, हर जाति और धर्म के लोगों के लिए उनके दरवाजे खुले रहे. इस क्षेत्र में 75 फीसदी जाट और मुसलमान एक साथ वोट करते रहे हैं. हालांकि पिछले दो चुनावों में इसमें कुछ बिखराव भी नज़र आया.
बागपत के चुनावी मुद्दे
बागपत की सियासी फिजा में जाति और धर्म की गूंज तो है ही लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के अन्य मामले भी पुरजोर ढंग से उठाए जाते हैं. गन्ना किसानों का मामला भी काफी अहम है. हर सियासी दल किसानों की बेहतरी के लिए अपने-अपने प्रयासों को ऐतिहासिक बताते हुए दावे करता है. वहीं बागपत में उच्च शिक्षा और रोजगार भी अहम मामला है. नौजवानों ने उच्च शिक्षा के लिए मेरठ पर निर्भरता का उल्लेख करते हुए यहां एक यूनिवर्सिटी की दरकार बताई और आशा जताई कि इस बार ये मामला केवल चुनावी वादे तक सीमित नहीं रहेगा. फर्स्ट टाइम वोटर मनीष ने उत्तर प्रदेश पुलिस सिपाही भर्ती (पेपर लीक के चलते रद्द की जा चुकी) का उल्लेख करते हुए बोला कि इस परीक्षा के लिए करीब 48 लाख उम्मीदवार थे जबकि पद केवल 61 हजार थे. बेरोजगारी आज राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या है. जाति-धर्म के मुद्दों को किनारे रख सियासी दलों को इस बारे में विचार करके निवारण खोजना चाहिए.
भेद खत्म होने की उम्मीद
नजीरुद्दीन अब्बासी नामक एक शख्स ने रालोद-भाजपा गठबंधन के असर को एक नए नजरिए से परिभाषित किया. नजीरुद्दीन ने बोला कि अभी तक हिन्दू-मुसलमानों के बीच भेद के जो भी इल्जाम लगते थे वे सब खत्म हो जाएंगे क्योंकि अब जयंत चौधरी उस खेमे में हैं. स्थानीय पत्रकार अरुण राठी ने भी इसकी तस्दीक करते हुए बोला कि 2013 के दंगों के बाद यहां का मतदाता दो हिस्सों में बंट गया था. इस गठबंधन के चलते विकास के मामले पर एक बार फिर एकजुट नज़र आने लगा है.
रालोद ने जाट, बीएसपी ने गुर्जर प्रत्याशी पर लगाया दांव, समाजवादी पार्टी ने खेला ब्राह्मण कार्ड
बागपत के मैदान में रालोद ने जाट समाज से आने वाले डा।राजकुमार सांगवान को अपना उम्मीदवार बनाया है. पहले समाजवादी पार्टी ने भी जाट समाज से ही मनोज चौधरी को टिकट दिया था लेकिन बुधवार को उनका टिकट काटकर उनकी स्थान ब्राह्मण प्रत्याशी अमरपाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतार दिया है. वहीं बीएसपी ने गुर्जर समाज से आने वाले प्रत्याशी प्रवीण बैंसला पर दांव लगाया है.
बागपत का चुनावी इतिहास
यूपी की बागपत लोकसभा क्षेत्र का चुनावी इतिहास बड़ा दिलचस्प रहा है. इस क्षेत्र ने लंबे समय तक किसी सियासी दल को अपनी जड़ें नहीं जमाने दीं. 1967 के आम चुनाव में पहली बार अस्तित्व में आई इस सीट से निर्दलीय उम्मीदवार आरएस शास्त्री पहले सांसद चुने गए थे. 1971 में पहली बार कांग्रेस पार्टी का खाता खुला तो आपातकालीन के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में इस सीट पर सारे समीकरण बदल गए. भारतीय लोकदल ने इस सीट से चौधरी चरण सिंह को चुनाव लड़वाया और वह विजेता बने. इसके बाद 1980 और 1984 में भी इस सीट पर चौधरी चरण सिंह का करिश्मा और कब्जा बरकरार रहा.
1989 में चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह ने जनता दल के उम्मीदवार के तौर पर इस सीट पर अपनी जीत का परचम लहराया. 1991 में भी उन्होंने इसी पार्टी का प्रत्याशी बन जीत हासिल की. वह 1996 में तीसरी बार इस सीट से सांसद चुने गए लेकिन कांग्रेस पार्टी के टिकट पर. 1998 में इस सीट पर पहली बार कमल खिला और भाजपा के सोमपाल सिंह शास्त्री यहां से सांसद बने. उस चुनाव में भारतीय किसान कामगार पार्टी में शामिल हो चुके अजीत सिंह की हार हुई थी. इस हार के बाद अजीत सिंह ने किसान कामगार पार्टी का साथ छोड़ दिया. 1999 में वह बतौर राष्ट्रीय लोकदल उम्मीदवार इस सीट से खड़े हुए और जीते. इसके बाद अजीत सिंह 2004 और 2009 के चुनावों में भी सांसद चुने जाते रहे. लेकिन 2014 के चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह से हार गए. इसके बाद 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा.