मायावती ने पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनील अहमद खां फूल बाबू को उतारा मैदान में…
लोकसभा चुनाव के लिए बीएसपी ने सोमवार को एक और प्रत्याशी की घोषणा कर दी है। मायावती ने पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनील अहमद खां फूल बाबू को मैदान में उतारा है। बीएसपी ने इससे पहले अमरोहा और मुरादाबाद में प्रत्याशियों का घोषणा किया था। अमरोहा से मुजाहिद हुसैन और मुरादाबाद से इरफान सैफी को टिकट दिया गया है। अब तक घोषित तीनों प्रत्याशी मुसलिम समुदाय से हैं। इसे मायावती की खास रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने मुसलमान समुदाय को बड़ी संख्या में टिकट दिया था और इसका बकायदे घोषणा भी किया था। इस बार ऐसा कोई घोषणा तो अभी नहीं किया गया है।
बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ता सम्मेलन में पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के निर्देश पर पश्चिमी यूपी के प्रभारी राजकुमार गौतम ने अनीस अहमद खां फूल बाबू को पीलीभीत लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा की। मायावती के नए कदम को इण्डिया गठबंधन के लिए खतरे की घंटी बताया जा रहा है। मायावती ने इस बार एनडीए या इण्डिया गठबंधन दोनों से दूरी बनाकर चुनाव लड़ने का घोषणा किया है। बताया जा रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के बीजेपी के साथ जाने के कारण मुसलमान वोट समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के इण्डिया गठबंधन की ओर जाएगा। ऐसे में मायावती के कारण मुसलमान वोट बिखरने की आसार है।
मुस्लिम वोटों को ही एकजुट रखने के लिए पिछले लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इसका सबसे अधिक लाभ भी बीएसपी को ही हुआ था। बीएसपी ने उत्तर प्रदेश की दस सीटों पर जीत हासिल की थी। समाजवादी पार्टी सिर्फ़ पांच सीटें ही जीत सकी थी। हालांकि बीएसपी के दस में से चार सांसद दूसरे दलों का दामन थाम चुके हैं। अन्य भी कोई और ठिकाना तलाश रहे हैं। उन्हें लगता है कि सिर्फ़ अकेले लड़ने से जीत हासिल नहीं हो सकती है। उनका मानना है कि विधानसभा चुनाव में भी मायावती ने मुसलमान कार्ड खेला था लेकिन उसका कोई लाभ प्रत्याशियों को नहीं मिला था।
मायावती के मुसलमान प्रत्याशी देने से बीएसपी को भले ही कोई लाभ नहीं हुआ लेकिन इसका हानि समाजवादी पार्टी को जरूर हुआ था। आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव में भी समाजवादी पार्टी प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को सिर्फ़ इसलिए हार का सामना करना पड़ा था। आजमगढ़ में समाजवादी पार्टी करीब डेढ़ लाख वोटों से हार गई थी। यहां बीएसपी के मुसलमान प्रत्याशी ने ढाई लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। इसी तरह विधानसभा की दर्जनों ऐसी सीटें हैं जहां समाजवादी पार्टी को बीएसपी ने चोट पहुंचाई थी।