यूपी की तहज़ीब ऐसी, बाहरी नेताओं ने खूब चमकाई अपनी सियासत
उत्तर प्रदेश की तहज़ीब ऐसी है कि यहां आने वाला यहीं का होकर रह जाता है. यही वजह है कि गैर राज्य के नेताओं को उत्तर प्रदेश की राजनीति खूब भाती है. यह आज से नहीं आजादी के बाद से चला आ रहा है. हरियाणा के अंबाला की रहने वाली सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली स्त्री सीएम बनी. वह गोंडा संसदीय सीट से 1967 में कांग्रेस पार्टी की टिकट पर सांसद चुनी गईं.
लोकसभा अध्यक्ष रही मीरा कुमार ने भी अपने राजनीति जीवन की आरंभ उत्तर प्रदेश से ही की. विदेश सेवा से रिटायर होने के बाद वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर साल 1985 में पहला उपचुनाव उत्तर प्रदेश के बिजनौर सीट से लड़ीं और जीती. अदाकारा जया प्रदा रामपुर संसदीय सीट से दो बार सांसद चुनी गईं.
मोदी लड़े पीएम बने
बात सबसे पहले राष्ट्र के पीएम मोदी की करते हैं. गुजरात की राजनीति से निकल कर राष्ट्र की राजनीति में पहुंचने के बाद उन्होंने अपनी कर्मभूमि वाराणसी को बनाया. उन्होंने अपनी सार्वजनिक रैली में बोला कि मैं आया नहीं मुझे मां गंगा ने बुलाया है. उनका यह डायलॉग खूब चला. नरेंद्र मोदी वाराणसी पहला चुनाव साल 2014 में लड़े और आप के संस्थापक अरविंद केजरीवाल को रिकार्ड 3.71 लाख वोटों से हराया और राष्ट्र के पीएम बने. नरेंद्र मोदी साल 2019 में भी वाराणसी से ही चुनाव लड़े पिछले चुनाव से भी अधिक मतों 4.79 लाख वोटों से समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव को हराया. नरेंद्र मोदी फिर मैदान में हैं. सपा-कांग्रेस गठबंधन में यह सीट कांग्रेस पार्टी के पास है और उसने अभी तक उम्मीदवार घोषित नहीं किया है.
अटल लड़े और पीएम बने
मध्य प्रदेश के अटल बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश में ऐसे रचे-बसे कि वह यहीं के ही होकर रह गए. अटल बिहारी वाजपेयी ने बलरामपुर के बाद लखनऊ को अपना सियासी कार्यक्षेत्र बनाया. वह लखनऊ से पांच बार सांसद चुने गए. साल 1991 से 2004 तक वह लगातार सांसद चुने गए. साल 2014 और 2019 दो बार राजनाथ सिंह सांसद चुने जा चुके हैं. इस बार वह जीते तो उनकी हैट्रिक हो जाएगी.
अमेठी को बनाया गढ़
टीवी सीरियल की अदाकारा और बीजेपी की नेता स्मृति ईरानी ने भी उत्तर प्रदेश के अमेठी को अपना गढ़ बनाया. साल 2019 में वह कांग्रेस पार्टी की गढ़ में उतरी और तीन बार के कांग्रेसी सांसद राहुल गांधी को 55 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया. स्मृति इस बार भी अमेठी से चुनाव लड़ रही हैं. इण्डिया गठबंधन बंटवारे में यह सीट कांग्रेस पार्टी के हिस्से में आई है, लेकिन उनसे अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
हेमा मालिनी का बजा डंका
जाटलैंड की मानी जाने वाली सीट मथुरा को अदाकारा हेमा मालिनी ने सियासी कर्मभूमि बनाया और पहली बार साल 2014 में उन्होंने यहां से जीत दर्ज की. साल 2019 के चुनाव में भी वह जीतने में सफल रही. साल 2014 में उन्होंने जयंत चौधरी को तीन लाख से अधिक वोटों से हराया तो साल 2019 में आरएलडी उम्मीदवार को करीब तीन लाख वोटों से हराया. इस बार भी वह मैदान में है, फर्क इतना है कि आरएलडी विरोध में नहीं बल्कि उनके साथ है.