इस मंदिर में ज्वाला के रूप में विराजमान है माता
उत्तराखंड को देवों की भूमि बोला जाता है। यहां कई ऐसे मठ मंदिर हैं जिनका अपना विशेष महत्व है। पहाड़ की संस्कृति में शिव और शक्ति की विशेष मान्यता है। इन्हीं में से एक शक्ति पीठ है ज्वाल्पा देवी। मान्यता है कि यहां पूजा अर्चना करने से मनचाहा वर मिलता है। मंदिर से जुड़ी कहानी और किवदंतियां भी हैं, जो लोगों की आस्था का भी केन्द्र है। साथ ही यहां एक अखंड ज्योत के रूप में माता रानी विराजमान है। इस ज्योत के दर्शन करने के लिए राष्ट्र विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं।
उत्तराखंड के पौड़ी जिले में पौड़ी-सतपुली मोटर मार्ग पर नयार नदी के किनारे स्थित ज्वाल्पा देवी का एक सिद्ध पीठ है। यह मंदिर पौराणिक महत्व को समेटे हुए है। चैत्र नवरात्र हो या शारदीय नवरात्र यहां बड़ी संख्या में श्रद्वालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
सचि ने इंद्र को पाने के लिए की थी पूजा
पंडित राजेन्द्र अंथवाल कहते हैं कि मां ज्वालपा देवी का वर्णन स्कंद पुराण में भी मिलता है। बताते हैं कि ज्वालपा देवी से मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक मान्यता काफी प्रचलित है। बताते हैं कि एक बार राक्षस पुत्री देवी सचि ने इंद्र को पाने के लिए नयार नदी के तट पर माता रानी की पूजा अर्चना की। जिसके माता देवी मां ने प्रसन्न होकर ज्वाला के रूप में उन्हें यहां दर्शन दिए। तब से यहां ज्वाला के रूप में देवी विराजमान है और भक्तों की इच्छा पूरी करती है।
अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर के लिए करती है पूजा
ज्वाल्पा देवी मंदिर की स्थापना साल 1892 में हुई, यहां एक मंजिला मंदिर के गर्भगृह में माता अखंड जोत के रुप में विराजमान है। मुख्य मंदिर के इर्द-गिर्द अन्य देवताओं के मंदिर भी स्थापित किये गये हैं। मंदिर परिसर में हनुमान मंदिर, , यज्ञ कुंड, शिवालय, काली मां मंदिर, काल भैरव मंदिर स्थित हैं। नवरात्रों के अवसर पर विशेष पूजा और पाठ का आयोजन यहां किया जाता है। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्वालु पहुंचते हैं। विशेषकर अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आती हैं।
थपलियाल और बिष्ट जाति की कुलदेवी
ज्वाल्पा देवी मंदिर को लेकर एक किवदंती भी काफी प्रचलित है। बोला जाता है कि एक दिन इस जगह पर एक कफोला बिष्ट ने अपना नमक से भरा कट्टा इस जगह पर रखा। थोड़ी देर आराम करने के बाद जब वह कट्टे को उठाने लगा तो उठा नहीं पाया। कट्टा खोलने पर उसने देखा कि उसमें मां की मूर्ति थी, देखते ही वह मूर्ति को उसी जगह पर छोड़कर चला गया, कुछ दिन पश्चात अणेथ गांव के दत्त राम के सपने में मां ज्वाल्पा ने दर्शन देकर मंदिर बनाने का निर्देश दिया। तब से ज्वाल्पा देवी को थपलियाल और बिष्ट जाति के लोगों की कुलदेवी भी बोला जाता है।
ऐसे पहुचें यहां
अगर आप भी मां ज्वालपा के दर्शन करना चाहते हैं, तो पौड़ी से मात्र 30 किमी। का सड़क मार्ग से यात्रा तय कर आप यहां पहुंच सकते हैं। यदि आप कोटद्वार की ओर से आ रहे हैं, तो कोटद्वार-पौड़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह मंदिर स्थित है।