एक बार फिर सल्ला गांव में रामलीला का आयोजन किया गया बड़े उत्साह के साथ शुरू
पिथौरागढ़। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में इन दिनों रामलीला मंचन का सिलसिला जारी है। जो यहां के मुख्य मनोरंजन और आस्था का केंद्र है। यह परंपरा यहां कई दशकों से चले आ रही है। यहां के हर गांव में रामलीला का आयोजन नवंबर माह के अंत तक चलता है। हर गांव की रामलीला की अपनी अलग विशेषताएं हैं।आज हम बात कर रहे हैं पिथौरागढ़ में नेपाल सीमा पर बसे दूरदराज के गांव सल्ला की।
सल्ला गांव में एक समय ऐसा था जब यहां रामलीला बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी। फिर धीरे-धीरे यहां पलायन इतनी तेजी से हुआ कि रामलीला में किरदारों की कमी होने लगी और लोग भी काफी कम गांव में बचे। जिसके बाद यहां 2009 में रामलीला का मंचन ही बंद हो गया। अब जब गांव के करीब सड़क पहुंच चुकी है तो कई परिवार वापस गांव की ओर लौटे हैं और एक बार फिर से रामलीला का आयोजन यहां के लोगों ने आपसी योगदान से फिर से प्रारम्भ किया है।
1985 में प्रारम्भ हुई थी रामलीला
यहां के क्षेत्रीय निवासी अर्जुन सिंह घटाल ने वीडियो के माध्यम से जानकारी देते हुए कहा कि 1985 में सल्ला ग्रामसभा में रामलीला का मंचन प्रारम्भ हुआ। जो लगातार 2009 तक चला। जिसके बाद संसाधनों और जनसहभागिता की कमी के चलते विवश होकर रामलीला के आयोजन को बंद करना पड़ा। अब जब कई परिवार गांव लौट आए हैं, तो यहां के युवा ग्राम प्रधान राकेश सिंह घटाल ने इसे दोबारा प्रारम्भ करने की पहल की। एक बार फिर सल्ला गांव में रामलीला का आयोजन बड़े उत्साह के साथ प्रारम्भ किया गया है।
पहाड़ों की सभ्यता बन गई है रामलीला
पहाड़ों की रामलीला यहां की एक सभ्यता भी बन चुकी है, जो धार्मिक आस्था के साथ ही मनोरंजन का यहां मुख्य साधन है। आमतौर पर दशहरा के मौके पर तो रामलीला का आयोजन हर स्थान होता है लेकिन पिथौरागढ़ में यह आयोजन इसके बाद भी नवंबर माह के अंत तक जारी रहता है। इस समय पिथौरागढ़ के कई गांवों में यह आयोजन जारी है।
पहाड़ों से जारी है पलायन
आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पिथौरागढ़ के कई गांवों से पलायन जारी है। सड़क सुविधा न होने से लोगों को काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती है। इसलिए महत्वपूर्ण है कि सभी इलाकों तक सड़क का पहुंचना जिससे गांवों का विकास संभव हो सके।