पिथौरागढ़ में स्थित पंचाचूली जो पांच चोटियों का है पर्वत,जो यहाँ का माना जाता है सिर का ताज
पिथौरागढ़। हिमालय की सीमा से सुसज्जित राज्य उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए बहुत मशहूर है। जिस कारण यहां के पहाड़, पर्वत और नदियों के अनोखे संगम को देखने पर्यटक राष्ट्र विदेश से यहां पहुंचते हैं। हिमालयी राज्य उत्तराखंड में ऐसे ही प्राकृतिक सुंदरता को समेटे हुए है
जिला पिथौरागढ़ जो जिसकी सीमा नेपाल और चीन से लगी हुई है, जो अपनी खूबसूरत घाटी के लिए जाना जाता है। जिस कारण इसे मिनी कश्मीर नाम भी दिया गया है। जिसकी सुंदरता में चार चांद लगाती है। पिथौरागढ़ जिले में स्थित पंचाचूली जो कि पांच चोटियों के समूह का पर्वत शिखर है। जो पिथौरागढ़ के सिर का ताज माना जाता है।
यहां की खूबसूरती है बेमिसाल
पंचाचूली पर्वत पिथौरागढ़ जिले के सिर के ताज के रूप में प्रकृति से उपहार स्वरुप मिला है। पांचों चोटियों के अपने अनोखे त्रिभुजाकार संरचना के कारण पंचाचूली पर्वत पिथौरागढ़ जिले का मुख्य आकर्षण का केंद्र है। मशहूर पर्यटक स्थल मुनस्यारी और पंचाचूली के बेस कैंप दारमा घाटी से पंचाचूली पर्वत का कभी न भूल पाने वाला नजारा देखकर यहां आने वाले पर्यटक इन पलों का आनंद लेकर झूम उठते है। यहां पंचाचूली पर्वत देखने गुजरात से पहुंची रेशमी राणा ने बोला कि ऐसा नजारा उन्होंने अपनी जीवन में कभी नहीं देखा। यहां की खूबसूरती देखकर हमेशा यहीं बस जाने का मन करता है।
यह भी पढ़ें : जो खेल बना था द्रोपदी के चीर हरण का कारण, राजस्थान के इस गांव में आज भी उसके खिलाड़ी
पिथौरागढ़ जिला जो की हिमालय के निकट बसा हुआ एक खूबसूरत शहर है। जहां से पंचाचूली पर्वत का खूबसूरत नजारा पिथौरागढ़ की शान में चार चांद लगता है। पंचाचूली पर्वत हिंदुस्तान के उत्तराखंड राज्य के उत्तरी कुमाऊं क्षेत्र में पिथौरागढ़ जिले में दारमा घाटी में स्थित है। पंचाचूली पर्वत पांच पर्वत चोटियों का समूह है। जिनके नाम पंचाचूली 1 से पंचाचूली 5 तक हैं।
6,904 मी। है समुद्र तल से पर्वत की ऊंचाई
इस चोटी की समुद्रतल से ऊंचाई 6,312 मीटर से 6,904 मीटर तक है। ऐसा माना जाता है की पांडवों ने हिमालय में विचरण करते हुए इस पर्वत पर आखिरी बार अपना भोजन बनाया था। इसके पांच उच्चतम बिंदुओं पर पांचों पांडवों ने पांच चूल्हे बनाये थे, इसलिए यह जगह पंचाचूली कहलाता है। धार्मिक ग्रन्थों में इसे पंचशिरा भी कहते हैं। यहां के ग्रामीणों की यह मान्यता है कि पांचों पर्वत युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव। पांच पांडवों के प्रतीक हैं।