इन पकवानों के बिना अधूरा है पहाड़ी बेटियों का खास त्योहार
पिथौरागढ़। चैत्र के महीने के साथ ही पहाड़ों में गर्मियों की आरंभ हो जाती है। यह महीना पहाड़ की विवाहित स्त्रियों के लिए वर्ष भर में सबसे खास है, क्योंकि यही वो समय है, जब पहाड़ में रहने वाली स्त्रियों के मायके वाले अपनी बेटी से भेंट करने के लिए उसके ससुराल जाते हैं। इस भेंट करने की परंपरा को कुमाऊं में भिटौली पर्व के नाम से बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। अब इसे त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा है।
भिटौली त्योहार इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन पहाड़ों के पारंपरिक रेसिपी घरों में बनाए जाते हैं, जो बहुत ही खास होते हैं। इनमें पूरी, खीर, चावल के आटे से बनने वाले रेसिपी सेल, पुए, मास (उड़द) की दाल के पकवान और खजूर, जिनके स्वाद के बिना यह त्योहार अधूरा ही लगता है। पहाड़ के ये पारंपरिक पकवान विशेष मौकों पर ही पहाड़ में बनते हैं, जिनका स्वाद भी लाजवाब होता है। इन दिनों पहाड़ में ये त्योहार मनाया जा रहा है और हर घर में ये पकवान बनाए जा रहे हैं।
पहाड़ों में आज भी कयाम है ये परंपरा
भिटौली को लेकर महिलाएं काफी उत्साहित रहती हैं, क्योंकि यही वो समय होता है, जब वह अपने मायके वालों से आराम से मिल सकती हैं और उनके स्वागत में इन पकवानों तो परोसती हैं। पिथौरागढ़ की रहने वाली प्रियंका ने भिटौली का महत्व बताते हुए मीडिया से बोला कि पहाड़ में पीढ़ी रेट पीढ़ी यह परंपरा कायम है, जिसमें बनने वाले पकवान भी इसे बहुत खास बना देते हैं। पहाड़ में रहने वाली स्त्रियों का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहता है। कम उम्र से ही पहाड़ जैसी जिम्मेदारियां उठाते हुए हर कठिनाइयों को सहते हुए प्रतीक्षा में रहती हैं कि कब चैत्र का महीना लगे और वह कुछ आराम के पल अपने मायके वालों के साथ बिता सकें। मैदानी इलाकों में अब भले ही भिटौली की परंपरा आधुनिकता के दौर में सिमट रही हो लेकिन पहाड़ में यह पर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है।