क्या महिला डांसरों को बैन करने से अभद्रता या अश्लीलता समाज से हो पाएगा खत्म…
पिथौरागढ़। उत्तराखंड का पारंपरिक लोकनृत्य है छोलिया जो विशेषकर कुमाऊं के शादी-ब्याहों और विशेष आयोजनों में देखने को मिलता है। जिसकी पहचान आज विदेशों तक है। छोलिया डांसरों का एक ग्रुप होता है जिसमें सभी समूह में डांस करते हैं। उनके साथ पारंपरिक वाद्ययंत्र बजाने वालों की टीम भी होती है। छोलिया डांस में डांसरों के ग्रुप में स्त्री एक डांसर भी होती है। जिसे यहां की क्षेत्रीय भाषा मे हुड़कयानी कहा जाता है। जो इस छोलिया डांस में विशेष आकर्षण का केंद्र होता है।
अक्सर देखा जाता है कि विवाह कार्यक्रम में स्त्री का भूमिका निभा रहे कलाकार के साथ बदसलूकी भी की जाती है। जिससे समाज में एक गलत संदेश भी जाता है। जिसे देखते हुए अब पिथौरागढ़ के छोलिया दलों ने स्त्री भूमिका के डांस पर अब बैन लगा दिया है। अब विशेष आयोजनों में बिना स्त्री डांसर के ही छोलिया की टोली दिखेगी। स्त्री भूमिका के साथ होते दुर्व्यवहार और इससे समाज में अश्लीलता फैलने के संबंध में जिले भर के 46 छोलिया ग्रुप के मुखियाओं की बैठक हुई। जिसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया है।हालांकि इस निर्णय से हुड़कयानी की आवाज बंद हो जाएगी, उनके रोजी रोटी पर संकट आएगा लेकिन बड़ा प्रश्न है कि क्या अभद्रता या अश्लीलता समाज से समाप्त हो पाएगा ?
अभद्रता के कारण लिया गया फैसला
पिथौरागढ़ छोलिया दलों के अध्यक्ष इंद्र प्रसाद ने जानकारी देते हुए बोला कि अब शादी-बारातों में हुड़कयानी नजर नहीं आएगी क्योंकि उनके साथ शराब पीकर लोग अभद्रता कर देते हैं। जिससे समाज में गलत संदेश जाता है। वहीं जनमंच सोर के संस्थापक ईश्वर रावत ने इस निर्णय का स्वागत करते हुए बोला कि छोलिया डांस कुमाऊं की संस्कृति की एक विशेष पहचान है। जिसे पूरी पवित्रता के साथ दर्शाना चाहिए। समय के साथ संस्कृति में हो रहे परिवर्तन में ठीक गलत की पहचान करके उनमें सुधार करने की आवश्यकता की बात भी उन्होंने कही है।
महिला डांसरों के रोजी-रोटी पर संकट
इस निर्णय के बाद जहां स्त्री के भूमिका निभा कर डांस करने वाले लोगों के सामने बेरोजगारी का संकट भी आएगा। लेकिन उक्त निर्णय समाज के भलाई को ध्यान में लेकर लिया गया है ।जिससे छोलिया डांस जो संस्कृति का एक अहम हिस्सा है। उसका नाम हर स्थान सम्मान के साथ लिया जा सके।