पिशाचों और इंसानी भेड़िए नहीं हैं कल्पना, ये घूमते हैं हमारे आसपास …
आपने जॉम्बी, वैंपायर्स और वेयरवुल्व्स यानि इंसानी भेड़ियों को फिल्मों में खूब देखा होगा। कुछ बॉलीवु़ड लेकिन ज्यादातर हॉलीवुड की फिल्मों में ऐसे कैरेक्टर्स डेवलप किए जाते हैं। आपने भी इन्हें देखा होगा और आप समझते होंगे कि ये केवल कल्पना हैं और असल जीवन में इनका कोई अस्तित्व नहीं है।
आज हम आपको एक ब्रिटिश मनोवैज्ञानिक के अजीबोगरीब दावे के बारे में बताएंगे। साइकोलॉजिस्ट चिकित्सक ब्रायन शार्पलेस का दावा है कि खून चूसने वाले वैंपायर्स और इंसानी भेड़ियों की कहानियां झूठी नहीं हैं। ऐसे लोग होते हैं और कई बार ये हमारे आसपास ही रहते हैं और हमें पता ही नहीं चल पाता।
डॉक्टर ब्रायन शार्पलेस का मानना है कि पिशाच, वैंपायर, जॉम्बी या इंसानी भेड़ियों के नाम भले ही ज़रा अजीब हों, लेकिन ये वाकई होते हैं। ये ऐसे लोग हैं, जिन्हें रेनफील्ड सिंड्रोम यानि खून चूसने वाली रोग है। इस रोग में मरीज़ शारीरिक और मानसिक संतुष्टि के लिए खून पीता है। मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार दुर्लभ मानसिक विकार क्लिनिकल लाइकेंथ्रोपी से पीड़ित लोगों को ऐसा लगने लगता है कि वे भेड़ियों में बदल गए हैं। वहीं चिकित्सक ब्रायन का दावा है कि वे ऐसे लोगों से बी मिले हैं, जो स्वयं को जॉम्बी समझते हैं और उन्हें हर समय लगता है कि उनके अंग अंदर से खराब हो रहे हैं।
बीमारी में खून पीने लगते हैं लोग
डॉ। ब्रायन ‘मॉन्स्टर्स ऑन द काउच’ नाम की एक पुस्तक लिख चुके हैं। उनका बोलना है कि रेनफील्ड सिंड्रोम ऐसी मानसिक स्थिति है, जिसमें लोग गैर-पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए इंसानी खून पीने लगता है। ऐसे लोग रोमांटिक होने पर भी खून पीते हैं। वहीं कोटार्ड सिंड्रोम में मरीज़ों को भ्रम होता है कि वो मर चुके हैं और उनके शरीर में कोई अंग ही नहीं है। ऐसे में वो स्वयं को अधिक हानि पहुंचा सकते हैं। ब्रायन का दावा है कि ब्रिटेन में ऐसे लोग आसपास ही घूमते रहते हैं, लेकिन किसी को पता भी नहीं चलता।