बिहार के इस गांव की होली में शामिल होते हैं सिर्फ बुजुर्ग
एक ओर जहां मथुरा के बरसाने में खेली जाने वाली लठमार होली राष्ट्र भर में मशहूर है। वहीं दूसरी ओर सुपौल जिले के बसंतपुर प्रखंड भीतर संस्कृत निर्मली स्थित बुजुर्ग संसाधन केंद्र में बुजुर्गों द्वारा खेली जाने वाली फूलों की होली भी मशहूर है। यहां सभी समुदाय के 4000 से अधिक बुजुर्ग भेदभाव भूलकर आपस में फूलों की होली खेलते हैं और एक साथ सामूहिक भोज खाते हैं। इसका आयोजन स्वयंसेवी संस्था हेल्पेज इण्डिया के योगदान से किया जाता है।
अक्षयवट बुजुर्ग संघ के अध्यक्ष सीताराम मंडल बताते हैं कि 12 वर्ष से उनका समूह चल रहा है। इसी समूह के बल पर हर साल फूलों की होली मिलन कार्यक्रम और महाभोज का आयोजन किया जाता है। हर वर्ष क्षेत्र के हजारों बुजुर्ग इस होली मिलन कार्यक्रम में शामिल होकर भाईचारे की मिशाल कायम करते हैं।
वर्ष 2012 से हो रहा आयोजन
वे बताते हैं कि हमलोग साल 2012 से ही होली मिलन कार्यक्रम का आयोजन करते आ रहे हैं। इसमें क्षेत्र के हजारों मुसलमान भाई भी शामिल होते हैं और एक-दूसरे पर फूलों की बरसात कर होली मनाते हैं। वे बताते हैं कि हमलोग जात-पात और मजहब में कोई फर्क नहीं करते हैं। हम सब एक हैं और एक साथ होली खेलते हैं। इस होली में रंगों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
रमजान के इस पाक महीने में हिंदू के साथ मुसलमान बुजुर्गों ने फूलों की होली खेल मिसाल पेश की है। हमलोग मिलकर एक साथ खाते हैं। हिन्दू अपने मुस्लिम भाई को और मुसलमान अपने हिन्दुओं भाइयों को खाना खिलाते हैं। हमारे बीच किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता है।
चार सौ समूह में चार हजार से अधिक बुजुर्ग
वे बताते हैं कि बुजुर्गों के होली मिलन में क्षेत्र के जन प्रतिनिधि सहित अधिकारी भी शामिल होते हैं। दरअसल, साल 2008 में जब कोसी बांध टूट गया तो बाढ़ ने जमकर प्रलय मचाया था। उस समय स्वयंसेवी संस्था हेल्पेज इण्डिया ने बाढ़ में फंसे बुजुर्गों की सहायता कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया और जीने का तरीका सिखाया। सुपौल में बाढ़ से सताए बुजुर्गों का 400 समूह है। इसमें चार हजार से अधिक सदस्य हैं, जो अपने खर्च पर हर वर्ष फूलों की होली का आयोजन करते हैं।