बिहार

बिहार जातिगत जनगणना होने के वावजूद जनगणना के आंकड़े जिलावार नहीं किये गये जारी

 

बिहार की गया (आरक्षित) सीट पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है. बाकी प्रत्याशी मैदान में क्या किरदार निभाएंगे, वह बाद में पता चलेगा. अभी ध्यान एनडीए और महागठबंधन पर ही है. दोनों के कद्दावर नेता अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने के लिए गया का दौरा पूर कर चुके हैं. मंगलवार को पीएम मोदी भी एनडीए के सहयोगी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्युलर) के प्रत्याशी जीतन राम मांझी को जिताने के लिए बहुत कुछ कह गए हैं. लेकिन, अब जब चुनाव प्रचार थमने वाला है तो यह देखने वाली बात होगी कि किसकी वाहन कहां भाग और कहां फंस सकती है.

अपने विधानसभा क्षेत्र को कवर कर रहे?

 

यह अहम प्रश्न इसलिए है कि जीतन राम मांझी और कुमार सर्वजीत अपने जिले से लोकसभा चुनाव के प्रत्याशी हैं. अपने जिले, इस लिहाज से कि यहीं से विधायक हैं. इसमें कुमार सर्वजीत का पलड़ा भारी है, क्योंकि वह बोधगया के राजद विधायक हैं. यह विधानसभा क्षेत्र गया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है. दूसरी तरफ, जीतन राम मांझी इमामगंज से विधायक हैं. इमामगंज विधानसभा औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर है.

जाति के हिसाब से क्या स्थिति बन रही?

 

बिहार जातिगत जनगणना करा चुका है, हालांकि जनगणना के आंकड़े जिलावार नहीं जारी किए गए. इसलिए, सारी राजनीति जातियों की अनुमानित संख्या के आधार पर है. इस अनुमान के मुताबिक सबसे बड़ी जनसंख्या भुइयां (महादलित) की है. इससे जीतन राम मांझी आते हैं. मौजूदा जदयू सांसद विजय मांझी भी इसी जाति से हैं. वह विरोध में नहीं, इसका लाभ मांझी को मिल रहा है. संख्या के हिसाब से उसके बाद दुसाध, यानी पासवान बताए जाते हैं. इससे कुमार सर्वजीत हैं. मतलब, पीठ पर ही हैं. तीसरे नंबर पर राजपूतों की संख्या बताई जाती है. फिर मुसलमान और पांचवें नंबर पर वैश्य-बनिया बताए जाते हैं. मतलब, अपनी जाति और बीजेपी के पारंपरिक वोटरों की बड़ी जनसंख्या के हिसाब से मांझी लाभ में दिखते हैं. कुमार सर्वजीत की जाति वही है, जो चिराग पासवान की है. क्षेत्रीय राजनीति को समझने वाले इसी आधार पर कह रहे कि यदि चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस ने मिलकर मेहनत कर दी होती तो गारंटी की आसार बन सकती थी.

कैडर के मुद्दे में कौन लाभ में है?

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को अपने समर्थकों से बार-बार अपील की कि वह हर बूथ पर उन्हें जिताएं. उन्हें यह क्यों बोलना पड़ा? इसे समझना बहुत कठिन नहीं है. इस सीट पर हम-से प्रत्याशी उतरे हैं और इस पार्टी के पास कार्यकर्ताओं का वैसा नेटवर्क नहीं है. एनडीए में बीजेपी और जनता दल यूनाईटेड के पास ही नेटवर्क है. बीजेपी को वैसे बिहार की 40 में से 40 सीटों पर जीत की गारंटी चाहिए, इसलिए उसे कैडर की ताकत झोंकनी होगी. इसके अतिरिक्त जदयू से भी जमीनी योगदान उसी तरह लेना होगा. इधर, महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल और वामदलों के पास कैडर है. यह दोनों पूरी ताकत के साथ लगे हैं.

 

विधानसभा के हिसाब से क्या गणित है?

 

गया जिले में 10 विधानसभा सीटें हैं. इनमें से एक अतरी जहानाबाद लोकसभा और तीन- इमामगंज, गुरुआ और टिकारी सीटें औरंगाबाद लोकसभा सीट के मातहत हैं. बची छह सीटों में 1. बेलागंज से आठ बार के विधायक राजद कोटे के पूर्व मंत्री सुरेंद्र यादव हैं. 2. शेरघाटी में जदयू को हराकर राजद की मंजू अग्रवाल विधायक हैं. 3. गया शहरी सीट पर बीजेपी के आठ बार के विधायक डाक्टर प्रेम कुमार 2020 में जीते तो हैं, लेकिन पहले के मुकाबले अंतर कम रहा है. 4. बोधगया से राजद विधायक कुमार सर्वजीत ही लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. 5. वजीरगंज से बीजेपी विधायक हैं. 6. बाराचट्टी से जीतन राम मांझी की समधन ज्योति मांझी विधायक हैं, लेकिन उनके क्षेत्र में भारी विरोध दिख रहा है. इसी के कारण जिला परिषद् के कई सदस्य राजद में आ चुके हैं.

निगम की राजनीति के क्या अर्थ हैं?

 

गया नगर निगम क्षेत्र में 53 पार्षद हैं. इनमें से कुछ हिस्सा जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र में आता है, वैसे ज्यादातर गया लोकसभा क्षेत्र के दायरे में है. लगभग आधे पार्षदों ने पत्ता खोला है और आधे खामोशी साधे हुए हैं. आधे में कितने ने किसके पक्ष में कितना विश्वास जताया है और दोनों प्रत्याशी उनपर कितना विश्वास कर पाते हैं, यह उम्मीदवारों पर छोड़ देना चाहिए. जो आधे चुप हैं, वह भी चुपचाप जिसके साथ जाएंगे- प्रभावित करेंगे.

अपना नंबर कितना मिल रहा किन्हें?

 

जीतन राम मांझी ने सीएम रहते जो काम किया, उनमें कई लोकलुभावन प्रोजेक्ट रहे. उसका आज भी असर दिखता है. इसी तरह, कुमार सर्वजीत ने कृषि मंत्री रहते हुए 28 जनवरी तक बिहार में रही महागठबंधन गवर्नमेंट में जो काम किया, उसका माइलेज उन्हें मिले तो आश्चर्य नहीं.

पिछली बातों के अर्थ स्वयं निकालें

 

2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से एनडीए समर्थित जदयू के विजय कुमार मांझी जीते थे. उन्हें 4.67 लाख वोट मिले थे. तब जीतन राम मांझी महागठबंधन समर्थित हम-से के प्रत्याशी थे और उन्हें 32.85 लाख वोट मिले थे. दूसरी तरफ महागठबंधन से मांझी के अतिरिक्त उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी निकलकर एनडीए में है. महागठबंधन के इंडी एलायंस का रूप धरने से किसी नए दल का प्रवेश नहीं हुआ है इस बार. पिछली बार इस सीट पर बसपा ने 13 हजार वोट काटा था. इसमें दोनों मुख्य प्रत्याशियों का वोट हिस्सा था. दो प्रत्याशियों को यहां दो से ढाई फीसदी वोट मिला था, जबकि 3.14 फीसदी वोट NOTA के नाम पर गया था.

दिग्गजों का असर आखिरी ताकत

 

गया लोकसभा सीट पर ऊपर बताए गए सात प्रश्नों का उत्तर प्रत्याशी यदि अगले कुछ घंटों में असली रूप से समझ लें और जमीनी तौर पर आखिरी कोशिश कर लें तो मतदान के साथ ही वह स्वयं को पक्का कर सकेंगे कि क्या होने वाला है. रही बात दिग्गजों के असर की तो महागठबंधन में लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की छवि का फायदा-नुकसान उनके कोर वोटर भली–भाँति समझते हैं. दूसरी तरफ, एनडीए में पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार ही निर्णायक असर हैं. लोग मोदी की अपील और नीतीश की बातों पर चलते हैं तो मांझी की नैया पार लग सकती है. दूसरी तरफ यदि लालू-तेजस्वी की बातों पर भरोसा करते हैं तो जदयू के विजय मांझी से लेकर हम-से को दी गई सीट फंस सकती है.

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