यूं ही नहीं लीची को मिला है फलों की रानी का खिताब…
फलों का राजा आम है, यह तो हर कोई बचपन से जनता है। लेकिन, आज हम आपको बताएंगे कि फलों की रानी कौन है। जी हां, लीची को ही फलों की रानी बोला जाता है। उसमें भी यदि लीची शाही नस्ल की हो, तो स्वाद का अंदाजा आप स्वयं ही लगा सकते हैं।
शाही लीची की राजधानी बिहार के मुजफ्फरपुर को बोला जाता है। यहां से दिल्ली-मुंबई से लेकर दुबई, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और इस बार तो न्यूजीलैंड तक लीची भेजी जाएगी।लेकिन क्या आप जानते हैं कि पौधे लगाने के बादशाही लीची का फलन कितने वर्ष में प्रारम्भ हो जाता है। इससे बागवानों को कमाई कितनी हो जाती है। आज हम इन्हीं प्रश्नों के उत्तर इस समाचार में दे रहे हैं।
एक एकड़ में लगता है मात्र 50 पेड़
जिले के मुशहरी प्रखंड में लीची की बागवानी सबसे अधिक अधिक होती है। यहीं के लीची बागान में उपस्थित किसान साहिल कुमार से मीडिया बिहार ने इसकी बागवानी का पूरा गणित जाना। साहिल बताते हैं कि अब तो हाइब्रिड फसलों का जमाना आ गया है। इसमें फलन अधिक आता है। वे बताते हैं कि यदि किसान हाइब्रिड लीची का कलम लगाते हैं, तो 2 से 3 वर्ष में पेड़ में फलन होने लगता है।
जैसे-जैसे पेड़ बड़ा होते जाएगा, वैसे-वैसे पेड़ो में फलों की संख्या भी बढ़ती जाएगी। वे बताते हैं कि लीची के पेड़ में छोटी-छोटी टहनियां अधिक होती है। इसलिए एक एकड़ में आप 50 से 60 पौधे ही लगा सकते हैं। ऐसा होने से सभी पेड़ों को पर्याप्त धूप मिलती है।
जून के पहले हफ्ते से चख पाएंगे लीची
साहिल बताते हैं कि लीची से कमाई का गणित फिक्स नहीं है। पेड़ में जिस तरह से फलन होगा, उसी हिसाब से कमाई होगी। फिर भी औसतन एक पेड़ से 5 से 10 हजार की कमाई तो हो ही जाती है। वे बताते हैं कि व्यापारी बागान से ही उनलोगों से लीची खरीद लेते हैं। इसके बाद ही सभी स्थान सप्लाई करते हैं। साहिल ने कहा कि अभी लीची का ग्रोथ हो रहा है। जून के पहले हफ्ते से लोग इसका स्वाद चख पाएंगे।