बिहार

इस फल की खेती कर किसान हो जाते है मालामाल, कम लागत में होता है ज्यादा मुनाफा

किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर बागवानी की तरफ तेजी से रुख कर रहे हैं इससे किसानों को कम लागत में अधिक फायदा तो होता हीं है साथ हीं किसानों का समय भी बच जाता है इसी तरह कैमूर के कुछ हिस्सों में किसान पानी फल सिंघाड़े की खेती करने में मशगूल हैं सिंघाड़े की खेती किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है इसमें मेहनत तो थोड़ा अधिक है, लेकिन फायदा पारंपरिक फसलों की मुकाबले कहीं अधिक है

कैमूर जिला भीतर भगवानपुर प्रखंड स्थित रामगढ़ के रहने वाले किसान बीरबल चौधरी बेतरी गांव के पास भभुआ-चैनपुर मुख्य मार्ग के किनारे सिंघाड़ा की खेती किए हुए हैं किसान बीरबल के अनुसार एक एकड़ में करीब 1 लाख तक की बचत हो जाती है बड़ी बात यह है कि यह खेती महज दो महीने की होती है

40 रुपए प्रति किलो बिक रहा है पानी फल सिंघाड़ा
बीरबल ने कहा कि जमीन ठेके पर लेकर पारंपरिक फसल के बजाय सिंघाड़े की खेती कर रहे हैं सिंघाड़े की खेती में थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन इससे आमदनी अधिक होती है क्षेत्र के किसान सिंघाड़े की खेती से बेहतर उत्पादन कर अच्छा फायदा कमा रहे हैं किसान बीरबल ने कहा कि सड़क किनारे खेती करने से दोहरा लाभ मिल रहा है

दोहरा लाभ इसलिए कि इस फल को बेचने के लिए बाजार नहीं जाना पड़ता है जिसे ढुलाई में लगने वाले रुपए की बचत हो जाती है यहां सड़क किनारे ही सिंघाड़ा बेच लेते हैं 30 से 40 किलो सिंघाड़ा प्रतिदिन सड़क किनारे हीं बिक जाता है उन्होंने कहा कि सीजन में लगभग 2 क्विंटल सिंघाड़ा की बिक्री हो जाएगी अभी अभी 40 रुपए प्रति किलो सिंघाड़ा बिक रहा है वहीं सिंघाड़ा की खेती करने में चार लोग लगते हैं

कृषि वैज्ञानिक ने नर्सरी में पौधे तैयार करने की सलाह
कृषि वैज्ञानिक मनीष कुमार ने कहा कि सिंघाड़ा एक जलीय फल है, जो तालाब या झील में फलता है इसका स्वाद भी मीठा होता है खास बात यह है कि पानी फल सिंघाड़ा शुगर फ्री होता है किसानों को इसकी सीधी बुआई ना करके नर्सरी में पौधे तैयार करने की राय दी जाती है

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इसके लिए सबसे पहले सिंघाड़े के पौधे नर्सरी में तैयार किए जाते हैं जब पौधों की लंबाई 300 मीमी हो जाता है तो इसकी रोपाई तालाब में कर दी जाती है पौधा लगाने के डेढ़ से दो महीने बाद सिंघाड़े के पौधे में फलन प्रारम्भ हो जाता है

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