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इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस की याचिका पर NCLT ने सुभाष चंद्रा के खिलाफ इस कार्यवाही का दिया आदेश

नई दिल्ली . राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण(एनसीएलटी) ने सोमवार को इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस की याचिका पर मीडिया कद्दावर सुभाष चंद्रा के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही का आदेश दिया. एनसीएलटी की दो सदस्यीय दिल्ली पीठ ने जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लि (जेडईईएल) के मानद चेयरमैन चंद्रा के विरुद्ध कॉरपोरेट दिवाला निवारण प्रक्रिया (सीआईआरपी) प्रारम्भ करने का निर्देश दिया. उन्होंने एस्सेल समूह की कंपनी विवेक इंफ्राकॉन लिमिटेड को दिए गए ऋण के लिए गारंटी दी थी.

हालांकि, एनसीएलटी पीठ ने दो अन्य वित्तीय संस्थाओं आईडीबीआई ट्रस्टीशिप और एक्सिस बैंक की तरफ से दाखिल ऐसी ही याचिकाओं को खारिज कर दिया. एनसीएलटी केविस्तृत निर्णय का अभी प्रतीक्षा है. साल 2022 में विवेक इंफ्राकॉन के लगभग 170 करोड़ रुपये का भुगतान न करने के बाद इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (आईएचएफएल) ने एनसीएलटी का दरवाजा खटखटाया था. विवेक इंफ्राकॉन, चंद्रा द्वारा प्रवर्तित एस्सेल ग्रुप का एक हिस्सा है. हालांकि कुछ समझौता वार्ताएं हुई थीं, लेकिन आईएचएफएल को कोई भुगतान नहीं किया गया था.

सीआईआरपी की आरंभ के बाद, चंद्रा दिवाला और कर्ज शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के प्रावधानों के अनुसार आ जाएंगे और उन्हें किसी भी संपत्ति को बेचने, निपटान करने या अलग करने की अनुमति नहीं होगी. दिवाला न्यायाधिकरण द्वारा एक निवारण पेशेवर नियुक्त किया जाएगा, जो सभी कर्जों का मिलान करेगा और वित्तीय कर्जदाताओं को अपना पैसा वसूलने में सहायता करेगा. इससे पहले, चंद्रा ने दलील दी थी कि पर्सनल तौर पर गारंटी देने वाला दिवाला कार्यवाही के लिए उत्तरदायी नहीं हो सकता है और एनसीएलटी के पास उसके विरुद्ध प्रक्रिया प्रारम्भ करने की कोई शक्ति नहीं है. हालांकि, मई 2022 में एनसीएलटी ने इसे खारिज कर दिया और न्यायाधिकरण ने माना कि उसके पास पर्सनल दिवाला कार्यवाही पर निर्णय करने का अधिकार है.

इसके बाद, इसे चंद्रा ने अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के समक्ष चुनौती दी. हालांकि, मुद्दा वापस ले लिया गया क्योंकि सभी पक्षों ने मुद्दे को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का निर्णय किया. हालांकि, इस वर्ष की आरंभ में आईएचएफएल ने मुद्दे को फिर से उठाया क्योंकि चंद्रा के साथ समझौता नहीं हो पाया था. गवर्नमेंट ने साल 2019 में, आईबीसी के प्रावधानों में संशोधन किया, जिससे कर्जदाताओं को पर्सनल गारंटी देने वालों के विरुद्ध दिवाला कार्यवाही दाखिल करने की अनुमति मिल गई. इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. शीर्ष न्यायालय ने नवंबर 2023 में इन प्रावधानों की वैधता को बरकरार रखा.

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