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द्वापर युग से इंतजार कर रहे हैं अश्वत्थामा

कल्कि 2898 फिल्म में अमिताभ बच्चन का अश्वत्थामा का रोल कर रहे हैं. उनके लुक के चर्चे हैं साथ ही दर्शकों के मन में फिल्म को लेकर उत्सुकता जाग गई है. क्लिप में अमिताभ बच्चन की झलक दिखाई गई है उसमें वह शिवलिंग की पूजा कर रहे हैं. उनके घाव दिखाए गए हैं और सिर पर मणि चमक रही है. वह स्वयं को द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा बताते हैं और कह रहे हैं कि युद्ध का समय आ गया है. क्या आपको पता है महाभारत के अश्वत्थामा की कहानी?

द्वापर युग से प्रतीक्षा कर रहे हैं अश्वत्थामा?

प्रभास की अपकमिंग कल्कि 2898 एक बार फिर से हेडलाइन्स में है. अब मूवी में अमिताभ बच्चन के रोल की झलक दिखाई गई है. फिल्म में वह अश्वत्थामा के रोल में दिखाए गए हैं जो महाभारत में द्रोणाचार्य के पुत्र थे. अमिताभ बच्चन टीजर में बोलते हैं, द्वापर युग से दशावतार का प्रतीक्षा कर रहे हैं. मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा हैं. यदि आपको उनके अमर होने की कहानी नहीं पता है तो जान लें कि महाभारत कथा में अश्वत्थामा के बारे में क्या कहा गया है.

अश्वत्थामा ने भी सीखा था युद्ध कौशल

अश्वत्थामा द्रोणाचार्य और कृपि के पुत्र थे. वह योद्धा थे जिन्हें ताकतवर अस्त्र-शस्त्रों को चलाने का ज्ञान था. बस गुस्सैल मिजाज के थे और तुरंत आपा खो देते थे. उनकी वजह से लाखों लोगों की जानें भी गईं. द्रोणाचार्य ने पांडवों और कौरवों को युद्ध कौशल सिखाया था. अश्वत्थामा ने भी उन लोगों के साथ युद्ध की कलाएं सीख ली थीं. अश्वत्थामा को धनुष-बाण भी चलाना आता था लेकिन अर्जुन को द्रोणाचार्य ने इस कला में सबसे श्रेष्ठ बनाया था. अर्जुन को ब्रह्मास्त्र चलाना आता था जो दुनिया को नष्ट कर सकता था.

बेटे को भी सिखाया था ब्रह्मास्त्र चलाना

सबको ये पता था कि द्रोणाचार्य ने केवल अर्जुन को ब्रह्मास्त्र चलाना सिखाया है लेकिन बेटे से मोह के चलते उन्होंने अश्वत्थामा को भी इसका ज्ञान दे दिया था. इसके बाद अश्वत्थामा का घमंड बढ़ गया था. कुरुक्षेत्र के युद्ध में अश्वत्थामा कौरवों की तरह थे. युद्ध के दसवें दिन भीष्म की मृत्यु के बाद द्रोणाचार्य को युद्ध का सेनापति बना दिया गया था. द्रोणाचार्य अस्त्रों-शस्त्रों में माहिर थे. उनसे बचने के लिए कृष्ण ने पांडवों के साथ मिलकर उनको कमजोर करने का प्लान बनाया. यह तय हुआ कि भीम अश्वत्थामा नाम के हाथी को मार देंगे और यह बात फैला दी जाएगी कि अश्त्थामा मारा गया. हाथी मरने के बाद जब द्रोणाचार्य ने सुना कि अश्वत्थामा मारा गाया तो वह कमजोर पड़ गए और मारे गए. उन्हें द्रुपद के बेटे दृष्टद्युम्न ने मार दिया था.

गुस्से में भड़क गए अश्वत्थामा

जब अश्वत्थामा को पांडवों और कृष्ण की इस चाल का पता चला तो वह गुस्से में आ गए और नारायाणास्त्र चलाने का निर्णय लिया, जबकि उन्हें चेतावनी दी गई थी कि इसका इस्तेमाल तब करना है जब कोई चारा न बचे. अश्वत्थामा के ऐसा करते ही आसमान से हर पांडव और सारी सेना के लिए एक-एक तीर निकल आया जिससे सब उसी समय समाप्त हो सकते थे. कृष्ण को इसका तोड़ पता था. उन्होंने सभी सैनिकों को हथियार फेंकने को बोल दिया क्योंकि नारायणास्त्र केवल उनको मार सकता था जिनके पास हथियार होते. इसका इस्तेमाल केवल एक बार ही किया जा सकता था तो नारायणास्त्र बर्बाद गया और सारे पांडव बच गए.

 

मिली इस बात की सजा

महाभारत का युद्ध समाप्त होने लगा, कौरव हारने लगे तो अश्वत्थामा ने पांडवों को समाप्त करने की योजना बनाई. उसने धृष्ट्द्युम्न की जान लेने के बादग 5 सोए हुए लोगों को पांडव समझकर मारा वे द्रौपदी के पुत्र थे. पांडवों ने सुबह ये सब देखा तो त्राहिमांम मच गया. इसके बाद अश्वत्थामा को खोजकर उसके साथ युद्ध किया. अश्वत्थामा ने गर्भवति उत्तरा को भी मारने की प्रयास की ताकि अर्जुन का वंश समाप्त हो जाए. कृष्ण ने गुस्से में अश्वत्थामा को शाप दिया कि वह कोढ़ी होकर अमर हो जाएगा. ऐसी तड़पता रहेगा और इससे मुक्ति नहीं मिलेगी. माना जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा है और एक अजन्मे बच्चे को मारने की प्रयास की सजा भुगत रहा है.

 

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